26 सितंबर, 2022

एक पत्र

 

एक  पत्र लिखा था कभी

जब लिखने का अभ्यास न था

पत्र लिख पाया  था कभी

परीक्षा में बस पांच अंकों के लिए |

उसमें प्रारंभ किया था आदरणीय सर

मुझे बुखार आया है

मैं कक्षा में हाजिर न हो सकूंगी

अंत  में अपना नाम लिखा था

कक्षा लिखी थी फिर स्कूल का नाम |

सोचा सभी को ऐसा ही पत्र लिखा जाता होगा

जब मुझे अवसर मिला पत्र लिखा

बड़े प्यार से प्रारम्भ किया उसी प्रकार

मध्य में लिखा हम अच्छे हैं आप भी ठीक होंगे |

हमें आपकी याद आती है |

सब को नमस्ते कहना |हम दर्शन करने गए बताना

अब कब आओगे |हम दूसरे मंदिर चलेंगे

फिर समाप्त किया ऐसे सोचा कितना सुन्दर पत्र लिखा

आपकी विद्द्यार्थी

कु आशा लता सक्सेना

कक्षा १२-बी

सागर ग्राम म.प्र.

अरे पत्र पर पता तो लिखा ही नहीं

पत्र यहीं रह गया मेरी किताब में |

आशा सक्सेना 

आशा सक्सेना 

24 सितंबर, 2022

हाइकू

 


१-कितने दिन

यूँ ही सोचती रहूँ 

हूँ परेशान 

 

२-नहीं जानती

क्या कहा  कब मैंने

बिना विचारे

 

३-तेरे ख्यालों में

मैं भी जी रही 

क्या है सच

 

४-हार गई हूँ

खुद के विचारों से

भटक रही

 

५-कभी सोचना

मैंने की कोई मांग

तस्वीर से ही

 

६- यह जिन्दगी

 तुम्हारे आसपास

यही है ख्याल

७-कब जागती

सोती किस समय

मालूम नहीं

 

 

रहूँ उदास


                                                      रहूँ  उदास और सोच में  डुबी रहूँ  

क्या रखा है इस  जिन्दगी में 

कोई अरमा अब शेष नहीं हैं 

जिन्दगी जी ली है पर्याप्त |

कोई कार्य अधूरा नहीं छोड़ा 

यह है ख्याल मेरा या सत्यता 

अब जीने से क्या लाभ 

जितना  समय शेष है

 प्रभु चरणों में अर्पित करूं  |

और आगे की सोचूँ 

क्या मैं ऐसा कर पाऊंगी 

इतनी शक्ति मुझे दो परमात्मा 

अपने ध्येय में सफल रहूँ |

कोई बाधा बीच में न आए 

अपने सोच में सफल रहूँ 

भव सागर को पार करूं |

मेरी  नैया पार लगादो 

 मझदार में न  रह पाऊँ  

पार लगा दो मेरा जीवन 

इतना उपकार करो मुझ पर |

जीवन क्षणिक रह गया है 

उसका भी सदुपयोग  करूं पूरा 

अब जीवन भार सा हुआ है 

क्या करूं  इसका |

आशा सक्सेना 


































 

23 सितंबर, 2022

व्यबहार एक जैसा


                                                           न किया किसी से बैर    

ना ही प्रीत अधिक ही पाली 

बस यही किया मैंने 

समान व्यबहार रखा सब से |

कभी भेदभाव न  रखा 

ना ही   अपने तुपने का 

 सतही सम्बन्ध  रखा 

सब को अपना समझा |

जिन्दगी में दोगला

 कहलाने का अवसर  

 किसी को न दिया 

सब को एक जैसा समझा |

किया  व्यबहार

 सब से  एक सा 

किसी को कभी 

धोखा न दिया 

है यही विशेषता 

मेरे मन के  

संयत व्यबहार की |

 सब को अपनाता 

ज़रा भी अंतर नहीं करता  

बस प्यार ही प्यार 

बरस रहा आसमान से |

 मन को रखा है

संयत अपने 

 शुद्ध  एक दम 

नहीं प्रभावित किसी से |


आशा सक्सेना 


22 सितंबर, 2022

ना हो अधीर इतना

 


रख धीरज ना हो अधीर इतना

 इतनी भी जल्दी क्या है

अंत समय आते ही यह नश्वर शरीर

 पञ्च तत्व में मिल जाने के लिए 

धरा पर धरा ही रह जाएगा |

आत्मा साथ छोड़ शरीर का

 कहीं विलीन हो जाएगी

नया घर तलाशने के लिए  

चल देगी दूसरे घर की तलाश में

या मुक्ति को प्राप्त हो जाएगी

जैसे भी कर्म होंगे उसके

वैसा ही फल मिलेगा उसको |

आशा सक्सेना

बातें दो बच्चों की

एक दिन दो बच्चे अपने दरवाजे  पर बैठे बहुत गंभीरता से आपस में बातें कर रहे थे | अंशु ने कहा आज मेरा जन्म दिन है |तुम  जरूर आना |हर्ष ने कहा  हाँ मैं जरूर आऊँगा पर एक समस्या है मेरे आने में| मेरे पास तुम्हें देने के लिए उपहार तो है नहीं  |हाँ यह तो मैंने सोचा ही नहीं था |ठहरो मैं कुछ जुगाड़ करता हूँ |वः दौड़ा दौड़ा अपने कक्ष में गया          अपने बैग  से एक छोटी सी डायरी निकाली और  हर्ष के हाथ में थमा दी और कहा  ले यह ही दे देना अखवार में लपेट कर ||अरे नहीं इसमें तो कुछ लिखा है |अंशु ने लिखे हुए पन्ने फाड़कर डायरी फिर से हर्ष को देते हुए कहा ले अब तो खाली है यही देने के लिए ठीक रहेगी |मैंने बाहर झाँक कर देखा और अपनी हंसी रोक नहीं पाई |खैर बाहर जाकर उनकी समस्या का निदान किया और कहा  कोई आवश्यकता नहीं होती उपहार देने की | औपचारिकता निभाने की  |आने का ही महत्व होता है |एक खुशी की चमक हर्श के चहरे पर आई और दौड़ कर अपने घर की ओर चल दिया शाम को आने का वादा करके |

आशा 

21 सितंबर, 2022

है दोष किसका


                                                                आज रात सपने में खुद को 

आसमान में उड़ते देखा 

साथ थे   कई परिंदे  चहचहाते 

साथ उड़ते बड़े प्यारे लगते |

जब भी नीचे आना चाहा 

मेरे पंख सिमट न पाए 

 धरा पर आने में असफल रहा 

सूर्य की तपती धूप से 

भूख प्यास से बेहाल हुआ

 तरसती निगाहों से धरा को देखा 

मन में गहन उदासी छाई 

खुद को असहाय पाकर 

तभी अचानक घना पेड़

 बरगद का देखा  |

फिर से जुनून पैदा हुआ 

उस पेड़ पर उतरने का 

हिम्मत जुटाई फिर कोशिश की 

 जब  सफल रहा मन प्रसन्न हुआ |

मैंने सोचा न था कभी मेरी 

उड़ान समाप्त हो पाएगी 

मैं हरी भरी धरती को 

स्पर्श तक कर पाऊंगा |

अपनी इस सफलता पर 

मुझे अपार गर्व हुआ 

फिरसे यहीं  घर अपना बनाया 

उड़ने का सपना छोड़ दिया |

 लगने लगा जो   जहां का है प्राणी 

उसे वहीं रहना चाहिए 

ऊंची दूकान फीके पकवान के 

स्वप्न न देखना  चाहिए |

सपनों में जीने से है क्या  लाभ 

 क्या कमीं रही सब कुछ तो है यहाँ 

मेरी  दृष्टि हुई है संकुचित 

इस में है  दोष   किसका ?

आशा सक्सेना