04 अक्तूबर, 2022

गली गली में रावण रहते


                                                      

                                                                    जाने कितने रावण 

गली गली में घूंम रहे 

इनका कोई अंत नहीं 

 हुआ अब  तक |

सडकों पर घूमने वाले 

रावण में कोई सुधार नहीं

 हुआ अब  तक 

सब को हैरानी होती है |

हर वर्ष जलाया जाता उस को 

 फिर से  जी उठता है

शायद गया श्राद्ध  

न किया गया हो उसका | 
हर  बार जी उठता है 

कलियुग का आभास कराता है 

कहीं शांति नहीं हो पाती यहाँ वहां 

 और भ्रष्टाचार की कमीं नहीं |

हम भी उसी गली में रहते 

पर दूरी बनाए रखते 

 किसी से नहीं मिलते जुलते 

किसी का अन्धानुकरण नहीं करते |

अपने आप में  व्यस्त रहते 

जाने कब छुटकारा मिलेगा 

इस कलियुग के प्रपंचों से 

मुक्ति होगी या नहीं 

किसको पता |

आशा सक्सेना 


03 अक्तूबर, 2022

किससे करूं शिकायत


 ना किसी से कुछ चाहा 

ना किया अलगाव  ही 

सब से समता का भाव रखा 

पर सुनी सब की करी मन की |

कभी सोचा न था लोग 

कहेंगे कटू भाषी मुझे 

मन को बड़ा झटका लगा 

मैंने आत्म मंथन किया |

सोचा विचारा कहाँ कमीं 

रही  स्वभाव में मेरे 

 कोई सही उत्तर न मिल पाया |

जिसदिन मन मेरा रहा शांत 

फिर से उसी प्रश्न ने दिया झटका मुझे 

फिर सोचा शायद मुझमें ही 

कहीं कमीं थी तभी मुझसे 

किसी को लगाव न रहा मुझसे |

किसीने कहा मगरूर मुझे 

किसी ने कहा बहुत सर उठाया है 

पर किसी ने न समझाना चाह 

मझ से शिकायत है क्या ?

 उस प्रश्न का उत्तर

 न किसी ने सुझाया मुझे

मैं किससे सलाल लूं या

 किस से शिकायत करूं |

                                                            प्रश्न बार बार मुझे उलझाए रहा

                                                                    पर कोई हल न निकला  

                                                                नाही कोई मेरी मदद करता                                                                                                   न कभी आएगा  मुझे समझाने |


                                                                        आशा सक्सेना 



  





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01 अक्तूबर, 2022

संतुष्टि मन की

 










क्या मुझसे ही मनावारे करवाओगे 
क्या कोई और न मिला तुम्हें मेरी जगह 

मुझे  सताने के सिवाय मुझे  रुलाने के लिए 

मैंने सोचा न था तुम्हारा व्यबहार

 ऐसा भी हो सकता है  |

पहले किसी के संपर्क में

 आयी न थी  तुम्हारे सिवाय 

तुमसा स्वभाव  किसी का भी न देखा

 चेहरा दोरंगा देख न  पाई 

जब पहली बार  मिली 

मेरा  मन उत्फुल हुआ |

अब सोचती हूँ

तुम्हारा चहरे  का ऐसा  भाव 

  किसी का न देखा

 मन शुब्ध हुआ |


ऎसी भी क्या बात हुई 
 मुझसे दूरी बढ़ती गई  

मन चाही रंगों की तस्वीर मेरी अधूरी रही 

पर फिर सोचा मन को कुछ

  संतुष्टि मिली यही क्या कम है 

जो मिला उसी में संतुष्ट होना चाहिए |

कोई सम्पूर्ण नहीं होता

 इस याद को भूलना न चाहिए

याद करो  अपने आपमें भी 

कुछ तो कमी रही होगी 

पहले खुद को देखो फिर

 किसी से शिकायत करो 

अधिक अपेक्षा भी रखना उचित न

 जो जैसा है उसी जैसा होन का 

प्रयत्न होना चाहिए |


आशा सक्सेना 

 


30 सितंबर, 2022

किसी से क्या कहिये

 

 

 

 



जीवन हुआ है भार

किसी से क्या कहिये

मन हुआ बेहाल

किसी से क्या कहिये  |

 जन्मदिन था आज तुम्हारा 

पर तुमने याद न किया

ना ही फोन किया

भूलीं सभी  संस्कार |

 मन को लगी ठेस मैं सह न पाई

मेरे दुःख को तुमने न समझा

केवल अपने तक सीमित रहीं 

है कैसा अन्याय तुम्हारा तुम भूलीं | 

यह है कैसा व्यबहार वाह

किसी से  क्या कहिये

बात मन की मन में रही

राई का पहाड़ बनाया तुमने |

हमने भी प्यार किया था तुमको

धन दौलत नहीं दी थी पर मन में

जगह तुम्हारी थी सबसे ऊपर

यह  तुम भूलीं पर मैं नहीं भूल पाई |

तुम्हें भी याद तो आई होगी हमारी

थोड़ी औपचारिकता भी न निभा पाई तुम 

हो आज की पैदाइश हम यह तो भूले 

केवल हमारी मुन्ना ही याद रही मुझको |

मन को ठेस लगी मेरे सोच न पाई 

यह माया मोह किस लिए

किस के लिए आज की दुनिया मैं

सच कहा है सोचा  समझा है

 देवी के पूजन अर्चन में |



आशा सक्सेना

27 सितंबर, 2022

कविता के कई रूप

कविता के कितने रूप 

तुम्हें कैसे गिनवाऊँ 

कुछ होतीं अकविता 

पढने में रुचिकर लगतीं |

कुछ होतीं छंद रूप में 

पढने में बहुत रोचक लगतीं 

पर लिखने में बहुत क्लिष्ट 

कभी मात्राओं  में त्रुति हो जाती  

कभी लय भंग हो जाती 

पर सही लिखी न जाती 

दोहा ,सौराठ ,छंद चौपाई 

लेखन है कठिन बड़ा |

जब सही नहीं लिख पाती 

मन क्षोभ में डूबा रहता 

अपने से वादा करती

छंदबद्ध रचना  अब नहीं लिखूंगी |

अधूरा ज्ञान होता है घातक 

पर जब प्रयत्न ही नहीं करूंगी 

कैसे सीख पाऊंगी उन्हें लिखना 

भावों को छंदबद्ध करना |

मैंने सोचा कई बार प्रयत्न भी किया 

पर असफल रही 

फिर भी कोशिस करती रही 

हार नहीं मानी |

आशा सक्सेना 

26 सितंबर, 2022

देवी आराधना

देवी मैया ओ  अम्बे मैया 

कर दो मेरा बेड़ा पार भव सागर  से 

तुम तक सरलता से पहुंचूं    

खाऊँ न  हिचकोले मध्य भवर   में |

बड़ी बड़ी लहरें आई हैं  मुझे डरानें 

भव सागर से  कैसे बेड़ा पार लगाऊँ 

तुम्हारी शरण आई हूँ माता 

दिन रात तुम्हारा ध्यान करूं 

 दो मुझे मुक्ति इस दुनिया से 

अपनी शरण में  लेलो मेरी अम्बे 

चोला आज चढाऊं मैं जगदम्बे 

 भजन तुम्हारे गाऊँ माता 

कभी भुला न पाऊं तुम्हें 

जीवन भर सेवा करती रहूं तुम्हारी 

तुमसे दूर न जा पाऊँ माँ |

आशा सक्सेना 

एक पत्र

 

एक  पत्र लिखा था कभी

जब लिखने का अभ्यास न था

पत्र लिख पाया  था कभी

परीक्षा में बस पांच अंकों के लिए |

उसमें प्रारंभ किया था आदरणीय सर

मुझे बुखार आया है

मैं कक्षा में हाजिर न हो सकूंगी

अंत  में अपना नाम लिखा था

कक्षा लिखी थी फिर स्कूल का नाम |

सोचा सभी को ऐसा ही पत्र लिखा जाता होगा

जब मुझे अवसर मिला पत्र लिखा

बड़े प्यार से प्रारम्भ किया उसी प्रकार

मध्य में लिखा हम अच्छे हैं आप भी ठीक होंगे |

हमें आपकी याद आती है |

सब को नमस्ते कहना |हम दर्शन करने गए बताना

अब कब आओगे |हम दूसरे मंदिर चलेंगे

फिर समाप्त किया ऐसे सोचा कितना सुन्दर पत्र लिखा

आपकी विद्द्यार्थी

कु आशा लता सक्सेना

कक्षा १२-बी

सागर ग्राम म.प्र.

अरे पत्र पर पता तो लिखा ही नहीं

पत्र यहीं रह गया मेरी किताब में |

आशा सक्सेना 

आशा सक्सेना