26 मार्च, 2023

कान्हां तुम्हारी बांसुरी

 

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                                                                कान्हां तुमारी  बांसुरी से 

बहुत  ईर्षा होती है मुझे

रहती है  तुम्हारे पास सदा 

कभी अलग नहीं होती  |

तुम्हारे अधरों  को स्पर्श कर

वह जो सुख लेती है 

 मुझे नहीं मिलता

 मुझे सौतन सी लगती है |

 एक बात पूंछूं तुमसे 

उसने अधिकार जमाया तुम पर कैसे  

 कौन अधिक प्रिय है तुम्हें

मैं या बांसुरी या और कोई |

अपने मन की बात क्यों छिपाई   मुझसे

है यह कहाँ का न्याय

मुझ में क्या कमी है  

जो तुमने बिसराया मुझे |

तुम्हें वे सब अच्छे लगते हैं

जो मुझे तुमसे दूर करते हैं

जब जंगल में धैनूं चराते

ग्वाल बाल के संग

मेरी याद कभी ना करते

 क्या मैं उन सब से बुरी हूँ

मैंने कभी ना की शिकायत

 तुम्हारी माँ यशोदा से

शायद यही भूल की मैंने

 कोई बात ना बताई उनको  

यदि मुझसे दूर रहोगे

 मेरे मन को संतप्त करोगे

मेरे बिन तुम अधूरे रह जाओगे

पहले मेरा ही नाम लिया जाता है

मुंह से निकलता है राधे  श्याम |

मुझे क्रोध ना दिलाओ

अपने से दूर ना करो 

यही कामना है मेरी    

 

25 मार्च, 2023

सुख दुःख की दूरी समझी


 





किसी से क्या चाहिए जब

अपनों ने  ही साथ ना  दिया 

कभी दो शब्द स्नेह  के

सुनने को तरसते  हम  भी  |

हम  घर से दूर रहे

किसी से ना की अपेक्षा कोई

अपने में सक्षम रहे आज तक 

किसी पर बोझ  नहीं रहे |

जीवन भरा कठिनाइयों से

सुख के पल देखे ना देखे  

डेरा डाला दुःख ने जीवन में 

सुख दुःख की दूरी देखी |

  बात समझ में आई

सुख के सब साथी होते 

दुख में  कोई  साथ नहीं  देता 

तब साहस का ही सहारा होता  | 

कठिनाइयों से  भागने  से  लाभ क्या  

जब अकेले ही रहना है 

जब तक रहा साथ तुम्हारा जीवन में विविध रंग रहे

कभी किसी अभाव का हुआ ना एहसास |

कब सांस बंद हो जाएगी  मालूम नहीं 

सांस रुकने के पहले शेष काम करना हैं

 कोई कार्य अधूरा ना रहे यही सोचना है |

अपने तरीके से  जीवन जिया है अब तक

बंधन नहीं चाहिए कोई

 और यही है प्रार्थना प्रभू से 

उनकी कृपा रहे सब  पर 

आशा सक्सेना   |

24 मार्च, 2023

साथी कैसा हो





                                                                         साथी  ऐसा हो 

जिसे भले बुरे का हो ज्ञान 

समझाने का तरीका 

हो सरल प्रेम भरा |

जो मुझे समझे अपना 

दुनिया है मतलब की 

सब भूल जाते मतलब निकलते ही 

उनकी आवश्यकता नहीं मुझको |

व्यर्थ की बातों  में रूचि ना  हो जिसकी  

जिस पर हो पूरा विश्वास मुझे 

 मन की हर बात उसे बता पाऊँ 

इधर उधर की बातों से

 ना हो मन  विचलित उसका  

विचलित मन हो तब क्या करें   

समय यूँ ही व्यर्थ हो जाता है 

अपने हाथ कुछ भी नहीं आता 

   समय हाथ से फिसल जाता |

ऐसे  में मन उलझ जाए तो  वह  चेताए 

 ऐसे  जीवन का होगा क्या उपयोग 

जीवन का  रंग बे रंग हो जाएगा 

पृथ्वी  पर  भार बढ़ेगा |

आशा सक्सेना 

23 मार्च, 2023

करवटें बदलती जिन्दगी


जिन्दगी करवटें लेते गुजरी

कोइ काम किया ना किया

कुछ भी रचनात्मक न हो सका

खुशहाल जीवन जिया या ना जिया हमने  |

किसी भी आकर्षण ने बरबाद ना  किया  

मनमानी की आदत ने समाज से भी दूर किया

खेरियत यही रही सीधी राह पर चले  

यहाँ तक आते आते राह नहीं भटके |

बचपन में जो देखा सुना था

 वही  प्रभाव रहा मन में  बस एक बात अच्छी रही

 और किसी का प्रभाव नहीं पड़ा मन में

अपना वजूद ना खोया हमने |

हम तो हम थे अंधभक्त  नहीं 

जहां थे वहीं रहे आगे बढ़ने की चाह में

 कुछ नया नहीं सीखा सद्गुणों के सिवाय  

कुप्रभाव से दूर रहे यही क्या कम है |

किसी के गलत  प्रभाव में नहीं आए

कितनी बार मन में आया

अकेले जीवन गुजरेगा कैसे

किसी को समय नहीं हमारे लिए |

पुस्तकों से अच्छा मित्र कोई नहीं

उनके साथ समय कहाँ कट जाता है पता नहीं चलता 

घंटों व्यस्त रहती हूँ पढने लिखने में 

थकते ही कल्पना जगत में खो जाती हूँ |

आशा सक्सेना     

22 मार्च, 2023

गाड़ी के दो पहिये


अब तक कहाँ रहे 

       उसकी याद ना आई कभी 

       कभी बातें तक नहीं की 

       ऎसी क्या नाराजगी हुई |

        पहले कभी मनमुटाव नहीं होता था

     अचानक यह सब बखेड़ा हुआ कैसे

      क्या किसी से सलाह ली  तुमने

       तुमने जिसे अपना समझा हो |

       घर एक से नहीं बनता दो लोगों की आवश्यकता होती 

        ना ही एक छत के नीचे चार दीवारी में  रहने से बनता 

     घर पूर्ण होता एक विचार वाले होने से

एक दूसरे का सम्मान करने से |

       जब एक साथ रहते घर एक ही  रहता

      क्या यह सब तुमने नहीं सीखा 

किसने दी सलाह तुम्हें |

        जिसने दी  शिक्षा  अधूरी तुम्हें 

    उसने    यह तो बताया होगा 

    गाड़ी के दो पहिये होते हैं 

       दौनों को साथ ही रहना है स्वेछा से|

बैलगाड़ी चल नहीं सकती एक पहिये से 

यही है घर की परिभाषा

यहाँ है  बड़े छोटे का लिहाज है 

 एक  रहने के लिए |

जिनका हो समान सोच

  खुशहाल जिन्दगी के लिए 

आशा सक्सेना 

21 मार्च, 2023

कैसे लिखूं कविता

                

              कैसे लिखू कविता 

मुझे रस  छंद अलंकार  का ज्ञान नहीं

ना ही मुझे मीटर का बोध बड़ी कमी लगती है

लेखन मैं  परिपक्वता नहीं आई अब तक  |

 मन  है निराश क्यों अब समझ में आया

केवल शब्द चुनने से कविता नहीं बनती

  विचार लिपिबद्ध करने से

कविता का रूप नहीं सुधरता |   

मन पर  प्रभाव नहीं पड़ता

जब तक विचार सशक्त नही होता

उसे बिम्बों से सजाया नहीं जा सकता

छंदों में  ठीक से ढाला नहीं जाता |  

जो कहना चाहती हूँ कह नहीं पाती

वह खुशी नहीं मिलती जिसकी रहती अपेक्षा   

सीधी सच्ची बातों को लिपिबद्ध करने में

भावों को विशेष रूप से ढालने में चौपाई में |

रही असफल कविता लिखने में

पर कोशिश नहीं छोड़ी 

कभी सफलता आएगी  

सबने कहा किसी और विधा में लिखो|

 है कोशिश बेकार

मेरे मन ने नहीं स्वीकारा इसे

जैसा भी लिखूं

 सब मुझे अच्छा लगता है |

आत्मसंतुष्टि के लिए यह भी कम पड़ता है

विविध विचारों को रंग देती हूँ प्रसन्नता के लिए

खुद के मन की खुशी के लिए

सोचती हूँ कभी तो सफलता होगी  मेरे पास |

               आशा सक्सेना  

20 मार्च, 2023

चंचल चपल हिरणीजैसी


                                                                चंचल चपल हिरणी जैसी

उन्मुक्त घूमती वनमण्डल में

भय नहीं किसी का उसको

यही तो घर है उसका |

किसी की वर्जना नहीं सहती

रहती बंधन मुक्त होकर 

बिंदास बने रहना था अरमान उसका

किसी की बंदिश सहना

नहीं मंजूर उसे|

यदि उसने सोच लिया

उसने सही मार्ग चुना है  

वह  सही राह पर चल रही

तब अपनी बात पर अड़ी रहती |

कभी पीछे पैर नहीं करती

चाहे कोई कितना भी रोके टोके

मन से एक बार सोचती

 फिर पलट कर नहीं देखती |

यही है आत्म विश्वास का चरम

उसका जगता उन्नयन

वह है दीन दुनिया से कोसों दूर

आज के माहोल में बिलकुल सही |

आशा सक्सेना