१-हम दम हो
करीब रहो तुम
यही क्या कम
२-हर बात की
सीमा नहीं होती है
कोई है सीमा
३--चाँद आधा है
पर चमक कम
मुझे पसंद
४-नींद ना आए
रातें आँखों में कटी
बेचेन होती
५-कविता लिखी
सदा एक सी नहीं
कुछ नया है
आशा सक्सेना
१-हम दम हो
करीब रहो तुम
यही क्या कम
२-हर बात की
सीमा नहीं होती है
कोई है सीमा
३--चाँद आधा है
पर चमक कम
मुझे पसंद
४-नींद ना आए
रातें आँखों में कटी
बेचेन होती
५-कविता लिखी
सदा एक सी नहीं
कुछ नया है
आशा सक्सेना
तुम भोले शिव शंकर
कैलाश वासी कण कण में बसे
सरल संहज सब के दुख हरता
जगत के पालन हार |
धरती वासी हो अविनाशी
तुम्हारी दया सब पर होती
बहुत सरलता से
किसी को कठिन तपस्या नहीं
करनी पड़ती |
होते तुम प्रसन्न थोड़ी सेवा
से
तभी तो सारे भव सागर में
तुमको ही अधिक पूजा जाता
तुम्ही मार्ग दिखाते भवसागर
से पार उतरने का |
सब सोचते भवसागर तर जाएंगे
जब
तुमको पूजेंगे
पूरी श्रद्धा से, आस्था से
जब
याद करेंगे|
तुम्हारी चरण रज पा कर
सारी बुराइयां धुल जाएंगी
यही एक विश्वास रहा
मन में सब
के |
आशा सक्सेना
वह देखती राह तुम्हारी
द्वार खुलते ही सड़क पर
नजर जाती वह झांकती
दूर तक सड़क दिखाई देती |
पर तुम्हारा पता ना होता
फिर वही क्रम जारी रहता
अचानक कोलाहल होता
आहट दरवाजा खुलने की होती
वह जान
जाती खवर तुम्हारे आने की
जो खुशी उसको होती किसी और
को नहीं
बड़ी मुश्किल से अवकाश मिलता तुम्हें
पर मन मार कर इन्तजार करती
आने पर इतनी खुश होती
खुद को ही भूल जाती|
आशा सक्सेना
तुम्हारे बचपन की हर घटना याद है मुझे
भूल नहीं पाती वे दिन कैसे कटे
रात भर जाग कर गुजरती
सोने ना दिया तुम्हारे रोने ने |
कितने लालच दिए तुम को
तुम अड़े रहे अपनी जिद्द पर
यह रोज की आदत थी तुम्हारी |
कहना ना मानना
अपनी जिद्द पर अड़े रहना
आज भी किसी बच्चे को
जब रोते देखती हूँ
तुम्हारी याद आती है
खोजाती हूँ अपनी यादों में तुम्हारा बचपन
कभी याद आता है तुम्हारा नृत्य
मेरी' तिल्लेवाली साड़ी खराब हो गई ''
छत पर कभी गीत' गाना
मम्मीं ओ मम्मी तू कब सास बनेगी '|
तुम्हारा पीछे के मकान में
बर्तनों पर गिरना बेहोश होना
मुझे पसीना आया था डाक्टर को घर बुलाया था
ऐसे हादसे चाहे जब हो जाते थे
यह जरूर था तुम एक रुपया हाथ में लेते ही
चुप हो जाते थे हर बात मान लेते थे |
ना किसी से भय ना ही चोट की फिक्र
यही जीवन का सबसे सुन्दर समय था
तुम्हारा बचपन भूल नहीं पाती
आशा सक्सेना
सारी दुनिया देख रही
आज के वातावरण को
किसी ने मन ना मारा
खुल कर जिए बिना
दवाव के |
उनको कभी घुटन ना
हुई वे जीते रहे
आज के माहोल मैं
जीवन हुआ बेरंग
यह करो यह ना करो में
उलझे रहे
कहीं के ना रहे
हुई स्थिती ऎसी धोबी के कुत्ते जैसी |
किसी ने समझाया भी
सुनो सबकी करो मन की
पर मन ने कहा यह तो
गलत होगा
क्या किसी का अपमान
नहीं होगा
इसमें कोई क्या करे
?
आखिर अपनी जिन्दगा
में
कभी तो खुल कर जीना
हो
अपने अनुसार चल पाएं
किसी के आश्रित नहीं
हों |
जाग्रति समाज में आई
जरूर पर दिखावा है
मंच पर भाषण अलग और
धर में अलग व्यवहार
यही यदि किसी ने
ध्यान दिया होता
किसी ने खुशी ना जताई
होती
व्यवहार कथनी और करनी में
अलग ना होता |
यही तो आज का जीवन
है
उसे ऐसा ही जीवन
जीना है
फिर मन में क्लेश
क्यूँ ?
आज गुरू पूर्निमा है सभी गुरू जन को शत शत नमन-
प्रथम गुरू माता , जिसने जन्म दिया
धरती पर आने का मार्ग प्रशस्त किया
पिता ने उंगली पकड़ चलना सिखाया
बचपन में सहारा दिया ज्ञान दिया |
किशोरवय में मित्रों ने राह दिखाई
सही या हालत जान ना पाई
यौवन आते ही अनुभवों से बहुत कुछ सीखा
कभी गलत अनुभवों से बच कर रहने की |
सीख से भी नहीं मुह मोड़ा
यही शिक्षा जीवन में मैं ली
जीवन के अंतिम भाग में
एक अच्छे नागरिक बन के रहे |
जाने कितने लोगों ने मेरा
अनुकरण करने की कसम खाई
मझे गर्व है अपने गुरुओं पर
जिनने मुझे काबिल बनाया
उनको शत शत नमन |
आशा सक्सेना
१-हम तुम हैं
एक
डाल के पंछी
साथ रहते
२- वीरों की जान
सीमा
पर तैनात
आँखें नम हैं
३-
तुम रक्षक
देश
के रखवाले
हमें
गर्व है
४-गहन
सीमा
तैनात
सैनीक हैं
रक्षक
रहे
५-गहरी
खाई
अलग
किला किया
कठिन
मार्ग
६-
सरल नहीं
देश की रक्षाकरें
ये
सैनिक हैं |