कलह का प्रभाव जीवन पर
कब हुआ वह समझ ना पाई
कलह जीवन में कब आई
वह जान नहीं पाई |
अब सूना सूना घर लगता
सब ने उससे मुँँह फेर किया
कारण भी नहीं बताया
यही उसके सोच का कारण बना
खुशियों ने मुँँह फेरा
अब रही उदास जिन्दगी
यही नहीं भाया उसको
नयनों में अश्रुओं का तालाब भरा
इसमें एक कलसा जल भी
और नहीं समा पाया
मन बेचैन हुआ |
और यह अब समझ आया
किसी पर अति विश्वास करे या नहीं
अपने पर भरोसा अवश्य रखें
या उसे भी दर किनारे करें
किसी बहकावे में नहीं आएं|
अपने विवेक का सदुपयोग करें पर धैर्य से
दस बार सोचें तब ही कोई निर्णय लें
इसकी ही आवश्यकता है
सफलता को हासिल करने के लिए |
आशा सक्सेना