१-वर्षा आई है
बहार बरसाई
मौसम ने
२-किसने कहा
आत्म शक्ति नहीं है
मेरे भीतर
जब मन को आई
मन खुश था
४-कविता छुए
मन की गहराई
उसके भाव
5-बचपन है
अनमोल तुम्हारा
बीते यादों में
आशा सक्सेना
१-वर्षा आई है
बहार बरसाई
मौसम ने
२-किसने कहा
आत्म शक्ति नहीं है
मेरे भीतर
जब मन को आई
मन खुश था
४-कविता छुए
मन की गहराई
उसके भाव
5-बचपन है
अनमोल तुम्हारा
बीते यादों में
आशा सक्सेना
कहने को दसशीस से सजा है दशानन
पर यह तो कभी देखा नहीं
अन्दर क्या है
हमने तो पढ़ा है उसके
पांच शीश सुन्दर विचारों से भरे
पर बाक़ी बचे बुराइयों में डूबे
उनका ही संहार किया जाता हर वर्ष
यही कहा जाता
बुराइयों का वध होता हर वर्ष
खुशियों की होती बढ़त
बुराइयों के ऊपर |
यही कारण है हर वर्ष दशहरा मनाने का
खुशियों से बुराइयों को हारने का |
सभी बहुत सजधज कर आते
सब से मिलते जुलते सोना पत्ती देते
राम की सवारी आती पूजन अर्चन उनका होता
रावण दहन करते मन को सुकून मिलता |
आशा सक्सेना
आज भुवन भास्कर
सुबह से है उत्साहित
सजाया सप्त अश्वों से रथ,
आसीन हो उस पर चले
दसों दिशाओं में भ्रमण किया
वही दिखा पूरा नजारा प्रकृति का
हरे भरे वृक्षों के सारे पत्ते
नहाए लहराए रश्मियों से
उनकी खुशी झलकी
उन पर पड़े हरे सुनहरे रंग से |
आसमान में उड़ते परिंदे
गीत गा दर्शाते अपनी खुशी
दादुर मोर पपीहा बोले
अपनी खुशी दर्शाई
उनकी खुशी में शामिल हुए
प्रकृति जीवंत हो गई
उन सब के चहकने से |
आशा सक्सेना
काली कमली पहन पीली कछोटीकमर में बांधी
हाथ में बांस की बाँसुरिया जब बजाते कान्हां
गाँव की ग्वालिन दौड़ी चली आतीं
हाथों का काम छोड़
राधा रानी राह देखतीं जमुना के तट पर
कुंजन में कान्हां के इन्तजार में
सब ने एक साथ नृत्य किया
पूरे दिल से रमें उसमें
फिर से जब न्रत्य बंद होता
सब लौटते अपने घरों को |
पर राधा को बहुत ईर्ष्या हुई
कान्हां की बासुरी से
उसे अपनी सौतन ठहराया
अपनी नाराजगी दर्शाई
मीठी मुस्कान लिये कान्हा ने
राधा की बांह पकड कहा बहुत प्यार से
तुम ही तो मेरी शक्ति हो
यह बॉसुरी सात सुरों की प्रतिछाया
मै तुम बिन हूँ अधूरा
तभी तो तुम्हारा नाम
मेरे नाम के पहले लिया जाता |
आशा सक्सेना
मन की राह है अनूठी
नीलाम्बर से आगे जाए
हर व्यक्ति खोज ना पाए
जो बाटखोजता इधर उधर
हार कर रह जाएँ पहुच ना पाए
मन को कैसे समझाए |
जब भी हलकी सी आहट हो
वायु की सरसराहट हो
मन खिचता जाए उस ओर
जब नजरों के समीप आए
नीलाम्बार की ओर से ही
वह उस राह तक पहुंचे |
खुशियों की सीमा न रहे
अन्तरिक्ष में पंख पसारे
पंखियों से आगे रहे
अपनी मंशा पूरी करे |
कोई नहीं जानता
मन के सिवा
राह कहाँमिल पाएगी
अपना वजूद सब को दिखाएगी |
आशा सक्सेना
बहती नदिया क साथ
बहती नदिया के साथ बहा
एक छोटा
सा तिनका घास का
कभी डूबता कभी उतराता
जीवन का आनंद भरपूर लिया
वह भूला
नहीं नदी के किनारों को
जाने कहाँ कब भवसागर का छोर मिलेगा
वह हार नही मानेगा अंत तक
किनारा खोज कर ही दम लेगा |
आशा सक्सेना
तुमने तोड़ा दिल किसी का
प्यार का सौदा किया है है
यह भी ना सोचा कि
उसके दिल को ठेस लगेगी |
कितने वादे किये उससे
पर पूरा ना किया उनको
यही बताती तुम्हारी असलियाए
मन को ठेस लगी उसके |
क्या तुमने न्याय किया
उसके व्यवहार से साथ
यह तुम्हारा कैसा सोच
क्या यह अन्याय नहीं |
उसके मन को ठेस लगी
दिल को टुकड़े टुकडेकिया
मन को कोई दिलासा
कहीं से ना मिल पाई
यह दिन कितनी कठिनाई से बीता |
पर तुमपर किसी बात का
प्रभाव ना हुआ
क्या यही कियागया
कर्तव्य था तुम्हारा |
आशा सक्सेना