09 नवंबर, 2023

शब्दों की रीढ़

 

शब्दों की रीढ़

है अधूरा दीपक का जीवन

 अपने सहायकों के सिवाय

बिना तेल और  बाती के

जीने का अधिकार नहीं |

जब तक समीर ना हो तब भी

उसका भी है अधिकार

तेल और बाती के अलावा

दीपक के जलने में |

है आवश्यक चुने गए

शब्दों की रीढ़ अभिव्यक्ति के लिए

इनके बिना खड़े  होना

संभव नहीं होता अभिव्यक्ति के लिए |

यदि शब्दों की रीढ़ में कोई कमी हो

जीना कठिन हो जाता

हारा थका जीवन

 खिचता जाता  अभिव्यकि का |

आशा सक्सेना

 

रंग ही रंग

                                                                     १-सारी दुनिया 

रंगा रंग  हुई है 

कितनी प्यारी 

२-रगों की रात 

सज रही है कहीं 

देखो तो ज़रा  

३-रंग ही रंग 

बिखरे यहाँ वहां 

उसने देखा 

 ४- पांच  रंग हैं 

आसमान में सजे 

दो गौण रहे 

५-होली के रंग 

सजाए हैं  थाली में 

कान्हां को रंगा 


आशा सक्सेना 


कितने रंग जीवन में बिखरे

 

कितने रंग जीवन में बिखरे

जिन्दगी के कई रंग

 देखने को मिले इस जहां मे |

कोई रंग कैसा कहाँ  ठहरा

या लहराया जाने कहाँ |

जो रंग मन को भाया

पहले पास नजर आया

जब पास जाना चाहा

और दूर होता गया |

मन को ठेस लगी दूरी देख

पर फिर मन को समझाया

हर वह वस्तु जरूरी नहीं  कि मिले

यदि बिना कष्ट मिल जाएगी

कितना आनंद आएगा यह  मालूम नहीं|

यही रंग जीवन में जब  दिखाई देगा

अदभुद नजारा होगा

जबबिखरे रंग  दिखाई देगे  चारो ओर  

लोग जानना चाहेगे यह प्राप्ति कैसे मिली

बताने का  आनन्द कुछ और ही होगा |

आशा सक्सेना

 

08 नवंबर, 2023

अभी तक कुछ ना कहा

 

.अभी तक कुछ न कहा

मन को नियंत्रण में रखा 

ना ही कोई आवश्यकता का इजहार किया

यह नहीं भूलो कि मैं भी हूँ मनुष्य

मेरी भी कुछ अपेक्षाएं हैं तुमसे |

जब भी दूसरों को देखा मन में असंतुलन हुआ

इससे मुझे दूर रखो सामान्य सा जीवन जीने दो

मेरी बहुत आवश्यकताएं नहीं होगी

जीवन सहज रूप से चलेगा |

तुमसे ही अपेक्षा रहती है

 उस पर भी नियंत्रण हो जाएगा

पर समय लगेगा है यह कठिन पर असंभव नहीं

यह मैं जान गई हूँ खुद पर ही नियंत्रण रखूंगी |

यही हितकर होगा मेरे लिए

एकाग्र चित्य होना होगा आवश्यक

यह हो पाएगा प्रभु की शरण में जाकर

मन पर नियंत्रण रख कर |

यही है  जीवन की खुश हाली का राज

मुझे खुद पर ही संतुलन बनाकर रखना होगा

यही साझ में आया है मेरे

इसी से भवसागर से पार उतर पाऊंगी

आशा सक्सेना  

 

 

07 नवंबर, 2023

कहानी करवा चौथ की -सात भाइयों की एक बहिन की

 

 

एक दिन मेरी छोटी बहन ने मुझसे पूंछा आपको इतनी कहानी कैसे याद हैं |मैंने अपनी यादों की किताब खोली और एक पन्ना खोला |देखी लिस्ट उन कहानियों की जो कभी रात को मम्मीं सुनाया करतीं थी |

दिमाग पर जोर डाला तब कहानियों  का पिटारा खुला |मैंने उसे रोज एक कहानी सुनाने का वादा किया |

नजाने कितनी पुरानी कहानियां याद आईं उसे बड़ी प्रसन्नता होती थी कहानी सुन कर |उसने मुझे प्रोत्साहित किया उन कहानियों को लिपिबद्ध करने के लिए फिर भी मेरी हिम्मत नहीं हुई कहानी लिखने की |बार बार कहने से अब कोशिश करूंगी सोचा |मेरख्याल  था ये सुनी सुनाई कहानी जाने किसने लिखी होंगी उनको अपने नाम से कैसे लिखूंगी |पर बार बार की जिद्द ने प्रयत्न करने के लिए बाध्य किया है –

  सात भाइयों की एक ही बहिन थी |सातों उससे बहुत प्यार करते थे |
वय  प्राप्ति के बाद उसका बिवाह उसी शहर में एक संपन्न परिवार में हुआ |ससुराल में कोई कमीं  न थी |पर भाई बहुत चिंता करते थे उसकी| 
    जब पहली करवा चतुर्थी आई बहन ने निर्जला व्रत रखा |
उसे व्रत चाँद देख कर ही खोलना था |भाई बहुत परेशान थे कि बिना जल के बहिन उपास कैसे रखेगी |उन्हों ने आपस में विचार विमर्श किया |कोई तरकीब निकाली जाए कि बहिन का व्रत जल्दी समाप्त हो जाए |
   आँगन में एक अखैवर का वृक्ष लगा था |भाइयों में से एक
शाम होते ही पेड़ की  सबसे ऊंची  डाल पर एक छलनी ले कर चढ़ गया |उसमें एक जलता हुआ दिया रख लिया |
  सबसे छोटा भाई  बहिन के पास जा कर बोला “चाँद निकल आया है”चलो बहिन व्रत खोलो | बहिन बहुत सीधी थी |उसने पानी पी कर
व्रत तोड़ा |इतने में उसकी ससुराल से समाचार आया कि न जाने उसके पति को क्या हो गया |वह खबर सुनते ही अपनी ससुराल चल दी |वहाँ  सब  हिचकियाँ ले कर रो रहे थे |आसपास के लोग ले जाने की तैयारी करने लगे |उससे रहा नहीं गया और पति की अर्थी को ठेले पर रख घर से निकली |
सबसे पहले घूरे के पास गई उससे कहा “घूरे मामा मैं तुम्हारे पास
आऊँ”|घूरे ने कहा “बेटी तेरे दिन भारी हैं मेरे पास न आ” उसे बुरा लगा और कहा “जाओ१२ वर्ष बाद भी तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे”| थोड़ा और आगे चली|राह में एक गाय मिली उससे कहा “क्या मैं तेरे पास आऊँ”|गाय ने भी उसे अपने पास ठहराने से मना कर दिया और कहा “बेटी तेरे दिन भारी है मेरे पास कैसे रहेगी”|उसे बहुत दुःख हुआ और श्राप दिया जिस मुंह से गाय ने मना किया था उसी मुंह से गाय  विष्ठा पान करेगी |
हारी थकी वह एक गूलर के पास पहुंची “गूलर भैया मैं  तुम्हारे पास
रुक जाऊं”|पर गूलर से भी निराशा ही हाथ लगी |उसने गूलर को श्राप दिया की तुम्हारा फल कोई नहीं खाएगा उसमें कीड़े पड़ जाएंगे |
   आगे जा कर वह एक बरगद के नीचे बैठने लगी और पूंछा  “क्या मैं आपके आश्रय में रह सकती हूँ”|बरगद ने जबाब दिया “जहां इतने लोगों ने आश्रय लिया है तुम्हारे लिए क्या कमी है”|वह पेड़ के नीचे छाँव देख कर बैठ गई और प्रार्थना करने लगी  मेरी क्या भूल थी जो मुझे यह कष्ट दिया है|एक ने सलाह दी तुमसे कोई भूल हुई है
देवी की प्रार्थना करो और अपने सुहाग की भिक्षा मांगो |पूरा साल होने को आया जब बारहवी चतुर्थी आई उसने माँ के चरण पकड़ लिए और
कहा पहले मेरा  सुहाग लौटाओ तभी तुम्हारे पैर छोडूंगी |देवी का मन पसीजा और अपनी छोटी उंगली सेउसके पती को  छुआ |उसका पती राम राम कह कर उठ कर बैठ गया |वे दौनों खुशी खुशी घर आए और अपने परिवार के साथ रहने लगे |
आशासक्सेना 

   

  

   

सपने

 

आज की रात सपनों ने डेरा डाला 

मेरी नींद पर जब तक दिन ना हुआ

सुबह होते ही वे कहाँ गुम हो गये

बहुत  खोजा मैंने पर असफल रही |

सब क्या क्यूँ कैसे  में उलझे रहे

 जिससे भी पूंछा कारण सपनों के आने का

सब ने गोलमाल  उत्तर दिया

मेरी क्षुधा कोई शांत न कर पाया |

मेरी बेचैनी इतनी बढी

कि डाक्टरों तक तारों तक जा पहुंची

जो लोग बहुत चिंता करते हैं

उनका  मन शांत नहीं रहता सपने देखते हैं | 

आशा सक्सेना