ले ज्योत्सना साथ में
मयंक चला भ्रमण करने
अनंत व्योम के विस्तार में
सभी चांदनी में नहाए
ज्योतिर्मय हुए
क्या पृथ्वी क्या आकाश
पर पास के अभयारण्य में
यह सब कहाँ
धने पेड़ों की टहनियां
आपस में बात करतीं
आपस की होती सुगबुगाहर
विचित्र सी आवाज से
मन में भय भरती
सांय सांय चलती हवाएं
आहट किसी अनजान के
पद चाप की
अदृश्य शक्ति का अहसास करा
भय दुगुना करती
कभी छन कर आती रौशनी में
कोई छाया दिखाई देती
मन में भय उपजता
सही राह न दिखाई देती
एकाएक ठिठकता सोचता
कहीं यह भ्रम तो नहीं
साहस कर कदम आगे बढाता
फिर भी अकेलापन सालता
काश कोइ साथ होता
राह तो दिखाता
चांदनी रात में तब घूमने का
आनंद कुछ और ही होता |
आशा