कोयल की कुहू कुहू ने 
ध्यान मेरा भंग किया
 लगा कोई बुला रहा है 
बाहर झांका देखा देखती ही रह गई 
न जाने कब पेड़ लदा कच्ची केरियों से 
अपनी उलझनों से बाहर निकल कर 
जब भी झांकती हूँ खिड़की से बाहर 
कुछ परिवर्तन होते दीखते हैं  अमराई में
कल को आम बौराया था 
आज फूलों में फल लगे हैं 
वह भी कोई कच्चे कोई अधपके  पीले
देख खाने को मन ललचाया 
इधर उधर देखा भाला 
एक पत्थर डाली पर मारा 
पर निशाना चूक गया   
दूसरे निशाने  की तैयारी की 
 पर मन में शंका जागी 
कहीं किसी को लग गई तब 
घर बैठे मुसीबत आ जाएगी 
मन मारा  माली का किया इन्तजार 
पर निष्ठुर ने एक न  सुनी मेरी 
कहा बीमारी और बढ़ जाएगी 
क्या लाभ खटाई खाने का 
ललचाई निगाहों से 
मन मार देखती रही 
 कैरी से लदे उस  वृक्ष  को
सोचा कोई बात नहीं 
  हम देख कर ही 
मन में  भाव भर लेंगे संतुष्टि का 
हर सामग्री यदि
 उपलब्ध होगी जीवन में 
प्रलोभन शब्द ही नहीं रहेगा 
जिन्दगी के शब्द कोष  में |
आशा 
 
  
 





