25 फ़रवरी, 2020

छूटी हाथों से पतवार





 

 छूटी हाथों से पतवार
सह न पाई वायु का वार
नाव चली उस ओर
जिधर हवा ले चली |
  नदिया की धारा में नौका ने    
  बह कर किनारा छोड़ दिया
बीच का मार्ग अपना लिया
 चली उस ओर जिधर हवा ने रुख किया |
 वायु की तीव्रता ने उसको  
 बीच नदी की ओर खींच
 वह  मार्ग भी  भटकाया
हाथों से पतवार छूट गई |
नौका हिचकोले लेने लगी
कोई सहारा नहीं पा कर
आख़िरी सहारा याद आया
प्रभु को बार बार  सुमिरन किया |
हे नौका के खिवैया तारो मुझे
इस भवसागर से बाहर निकालो
पतवार हो तुम्ही मेरी
इतना तो उपकार करो |
मैं  तुम्हें भूली मेरी भूल हुई
 दुनिया की रंगरलियों में खोई
अब याद आई तुम्हारी
 जब उलझी इस दलदल में |
हे ईश्वर  मुझे किनारे  तक पहुंचा दो
क्षमा चाहती हूँ तुमसे
सुमिरन सदा तुम्हें  करूंगी
हाथों से तुम्हारी पतवार न छोडूंगी|
आशा

24 फ़रवरी, 2020

कांटे नागफणी के




 फूल  नागफणी के  लगते आकर्षण दूर से
छूने  का मन होता बहुत नजदीक से
पर पास आते ही कांटे चुभ जाते
जानलेवा कष्ट पहुंचाते |
लगते  उस शोड़सी  के समान
जिसका मुह चूम  स्पर्श सुख लेना चाहता  
पर हाथ बढाते ही सुई सी चुभती
कटु भाषण  की बरसात से |
है किसी की हिम्मत कहाँ
जो छाया को भी छू सके उसकी
बड़े पहरे लगे हैं आसपास
 नागफणी के काँटों  के  |
जैसे ही हाथ बढते हैं उसकी ओर
नागफनी के  कंटक चुभते हैं
चुभन से दर्द उठाता है
बिना छुए ही जान निकलने लगती है |
 वह है  नागफणी की सहोदरा सी
जिसकी रक्षा के लिए कंटक
दिन रात जुटे रहते हैं
भाई के रूप में या रक्षकों के साथ
कभी भूल कर भी अकेली नहीं छोड़ते |
 नागफणी और उसमें है गजब की समानता
वह शब्दों के बाण चलाती है डरती नहीं है
 काँटों जैसे रक्षकों की मदद ले
दुश्मनों से टक्कर ले खुद को बचाती है | 
आशा

23 फ़रवरी, 2020

काजल

                                 



                                     उनकी आँखों से पैगाम मिला है
 मेरी निगाहों को श्रंगार मिला है
कहीं धुल न जाए काजल
प्रिया का अक्स उसमें छिपा है |
कितनी कोशिश की है  नयनों को सजाने में
बहुत प्यार से उसके अक्स को  सजोने में
तब ही तो भय लगता रहता है
कहीं सुनामी  उसे बहा न ले जाए |
वह रूप की रक्षा में सदा सजग रहता
बचपन में माँ का आशीष बन  दिठोने में लगता
जब से मैं  बड़ा हुआ सीने पर माँ  उसे लगाती
कहती बुरी नजर से यही रक्षा करता |
 प्रिया के  सन्देश का वाहक बन काजल  
मुझे अब   प्रिय लगाने लगा है
बहुत इंतज़ार रहता है जब देर कहीं हो जाती है
मन में किसी अनिष्ट का भान कराती है |
सुनामी बहुत बेहाल कराती है उससे कैसे बचूं
कोई हल नहीं सूझ रहा  बेचैन कर रहा मुझे
पैगाम की रक्षा न की तो बेवाफाई होगी
उसकी रक्षा में छिपी है मेरी सारी वफा |
आशा  

18 फ़रवरी, 2020

वेदना






बहुत वेदना होती है
जब शब्दों के तरकश से
अपशब्दों के बाण निकलते हैं
अंतिम बाण  न चले जब तक
मन को शान्ति  नहीं मिलती  |
जब  नियंत्रण वाणी पर न हो  
अनर्गल प्रलाप बढ़ने लगे   
मन छलनी होता जाता फिर भी
 कोई हल नहीं निकल पाता |
तन की पीर सही जा सकती
घाव गहरा हो तब भी भर जाता
पर तरकश से निकला तीर
फिर बापिस नहीं आता
जब निशाना चूक नहीं पाता
 और भी विकृत रूप धारण कर लेता |
बहुत वेदना होती है जब
 अपने ही पीठ पर  वार करें
झूठ का सहारा लेकर शब्दों का प्रहार करें
अपना कष्ट तो समझें पर औरों का नहीं
केवाल अपना ही सोचें अन्य को नकार दें |
गहन वेदना होती है जब अपशब्दों का प्रयोग
सीमा पार करे बड़े छोटे का अंतर भूले
व्यर्थ की बकवास करे खुद को बहुत समझे
 अनर्गल बातों को तूल दे
अन्य सभी को नकार दे |
आशा

14 फ़रवरी, 2020

लेखनी

  है दिल  छोटा सा फिर भी
  रिक्त अभी भी हैं पर्ण   पुस्तिका में
बीते कल की  यादों को
 सहेजा जा सकता है जिनमें  |
लेखनी भी थकी नहीं है
यादों को लिपिबद्ध करने में फिर भी
उम्र दिखाई देने लगी है
 उस की रवानी में |
कभी चलते हुए जब थक जाती है
विश्राम करना चाहती है
यादें उसे पीछे हटने नहीं देतीं
बारम्बार लिखने को कहती है |
बड़े मनुहार के बाद लेखनी
 कदम अपने बढ़ाना चाहती है
कोशिशों की बैसाखी ले कर चलती है
पर वह प्रखरता अब कहाँ |
ह्रदय में  जगह की कमी नहीं है
लिखने को अंतस में पैनी लेखनी चाहिए
यादों का जखीरा रहा शेष लिपिबद्ध करने के लिए
 पुरानी लेखनी से  लिखने वाला चाहिए |
आशा