22 जून, 2010

आज के संदर्भ मै

भ्रष्टाचार का दानव पनपा ,
महँगाई सीमा लाँघ गयी
जमाखोरी और रिश्वतखोरी भी ,
सारी हदें पर कर गई ,
कई लोग लिप्त हुए इसमें ,
सिक्ता कण से रमे सब में |
विषमता की विभीषिका ने ,
पग-पग पर कदम बढ़ाये अपने ,
गरीबों की जमीन हथिया कर ,
चालाक किसान धनवान हो गया ,
छोटा किसान बिना ज़मीन के ,
केवल मजदूर बन कर रह गया |
संख्या गरीबों की बढ़ी है ,
आवाज बुद्धिजीवी की ,
दवा दी जाती है ,
स्थिति देश की बिगड़ती जाती है ,
चंद हाथों में धन के सिमटने से ,
धनिक अधिक धनाढ्य हो गया ,
इस मकड़ जाल में फँस कर ,
जीना आम आदमी का कठिन हो रहा |
नेतागिरी एक धंधा बनने से ,
कई गुंडे नेता बन बैठे हैं ,
करते हैं देश हित की बातें ,
पर जेब अपनी भरते हैं ,
जब भी क्रांति आयेगी ,
जागृति समाज में लायेगी ,
सत्य की आवाज न दबाई जाएगी ,
गरीबों और अमीरों के बीच की ,
खाई पटती जायेगी ,
देश में खुशहाली आयेगी |



आशा

21 जून, 2010

एक झलक तेरी

चूड़ियों की खनक ,
मेंहदी की महक ,
पैरों से पायल की छन-छन,
मन में मिश्री घोल रही ,
एक झलक पाने को तेरी ,
मन की कोयल बोल रही |
मीठी मधुर हँसी तेरी ,
घूँघट से झाँकती चितवन तेरी ,
क्यों बार-बार खींच लाती मुझको ,
तेरे दामन को छूती हवा ,
और करीब लाती मुझको |
लाल रंग के जोड़े में ,
लहरा कर जब चलती है ,
दामिनी सी दमकती है ,
और अधिक सम्मोहित करती है |
तू चपला है या मुखरा है ,
यह तो मुझे पता नहीं ,
पर यह तेरा सुन्दर चेहरा ,
जो छिपा हुआ अवगुंठन में ,
अपनी ओर खींचता मुझको |
मन पंछी उड़ना चाह रहा ,
पंखों को अपने तोल रहा ,
तेरी एक झलक पाने के लिये ,
मन का पिंजरा छोड़ रहा |


आशा

20 जून, 2010

क्या तुम मेरी बैसाखी बनोगी

भावुकता से भरा हुआ मैं ,
अपनी सुधबुध खो बैठा ,
आगा पीछा कुछ न देखा ,
जीवन संग्राम में कूद पड़ा ,
मेरे आहत मन की पीड़ा की ,
क्या तुम गवाह बन पाओगी ,
मेरी उखड़ी साँसों का ,
कैसे हिसाब रख पाओगी |
जीवन का सफर काँटों से भरा है ,
यह मैं अब जान पाया ,
समस्याओं से जब जूझा ,
तभी उन्हें पहचान पाया |
कठिन डगर पर चलते-चलते ,
कई बार गिरा, गिर कर सम्हला ,
जब से तुम्हारा साथ मिला ,
मैं बहुत कुछ सोच पाया |
जब कभी मैं याद करूँगा ,
क्या तुम मेरी बैसाखी बनोगी ,
ऊँची नीची पगडंडी पर ,
क्या तुम मेरे साथ चलोगी ?


आशा

शेर

इस सुरमई शाम में ,
दिल में, महफिल सजाये बैठा हूँ ,
कोई आये या न आये ,
शमा जलाये बैठा हूँ ,
तुम तो ज़रूर आओगी ,
यह आस लगाये बैठा हूँ |


आशा

19 जून, 2010

जीवन मेरा

जाने कितने सपनों से
अपनी रातों को सजाया मैंने
जब उनकी सच्चाई जानी
एक भी आँसू न बहाया मैंने
हर  आँसू है मोती जैसा
उसका मोल नहीं भूली
अनमोल मोतियों की माला से
अपना गला न सजाया मैंने
सारा वैभव छोड़ दिया
जब धरातल पर पैर रखे
सहज भाव से सारे रिश्तों को
जी जान से निभाया मैंने
जीवन के अंतिम पड़ाव पर
जब भी सोचा दुःख पाया
जाने क्या खोया क्या पाया
अवसाद ने सिर उठाया
सपनों का मोल भी समझाया
तब आँखों से गिरा एक मोती भी
बहुत अनमोल नजर आया |


आशा

18 जून, 2010

लद्दाख

पिछले साल गर्मियों में लद्दाख जाने का मन बनाया |जम्मू से सुबह ८ बजे की फ्लाईट थी |जब हम एअर पोर्ट पहुंचे
कुछ मजदूर बड़ी बड़ी पोटलियां लिए हुए बैठे थे |अधिक ताज्जुब तो तब हुआ जब वे लोग भी हमारे साथ हवाईजहाज में लद्दाख जाने के लिए चढे |ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी लोकल बस में सफर कर रहे हों |कुछ ने तो अपनी गठरी भी अपने ही साथ रख ली थीं |
हवाईजहाज बहुत छोटा था |अब हम रन वे से ऊपर आसमान मे थे |खिड़की से बाहर का दृश्य बहुत ही सुंदर दिख रहा था |बादलों पर पड़ती सूर्य की किरणे,बर्फ से ढके पहाड़ किसी परी के देश की सैर का मजा दे रहे थे |
लगभग एक घंटे बाद हम लेह हवाई अड्डे पर थे | कम दबाव वाले वायु मंडल से सामंजस्य स्थापित करने के लिए
(acclimatization )कुछ समय रुकने के बाद होटल की ओर रवाना हुए |होटल बहुत साफ सुथरा था |पर कमरे में न तो कोई पंखा था न ही ऐ.सी .|जून का महीना था पर ठण्ड ऐसी थी कि दांत कट कटाने लगे|
वहाँ जितने भी लोग ठहरे थे लगभग सभी विदेशी थे |कुछ यूरोपियन्स से बात हुई |वे भी हम से मिल कर बहुत खुश हुए| काफी देर तक लद्दाख की चर्चा होती रही |उन लोगों के घूमने की व खाने की अलग से ब्यवस्था थी |
सुबह नाश्ते के बाद कमरे के सामने गेलरी में जा बैठे |वहां धूप थी |धूप इतनी तेज थी कि बदन जलने लगा और छांव में कपकपा देने वाली ठण्ड |बड़ा अजीब सा अहसास हुआ |होटल मालिक ने इनर लाइन परमिट और घूमने के लिए टाटा
सूमो की ब्यवस्था करवा दी थी |
सुबह होते ही लेह के jokhang &Spitak बौद्ध गोम्फा देखने के लिए चल दिए |स्पितक बौद्ध गोम्फा एक पहाड़ी पर होने के कारण चढ़ते समय कुछ अधिक समय लगा | वहां भगवान बुद्ध की एक बहुत विशाल प्रतिमा देखी |इतनी सुंदर प्रतिमा थी
कि उस पर से नजर ही नहीं हटती थी |उसी परिसर में देवी तारा और उनके २३ अवतारों के भी दर्शन किये |वहां का रख रखाव करने वाले एक बौद्ध से कई बातें जानने को मिलीं |जब हमने उसे कुछ देना चाहा उसने लेने से इंकार कर दिया |हमने दान पेटी में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये ,और सिंधु उदगम स्थल जाने के लिए नीचे उतरे |
सिंधु नदी का उदगम स्थल देखना भी एक बहुत मन मोहक सपना सा था |वहां पर नदी बहुत तीब्र गति से बहती है |
नदी पर बने पुल पर खड़े हो कर आसपास का नज़ारा देखना बहुत सुंदर अनुभव था |पुल पर असंख्य पताकाएं बंधी हुईं थीं |
पूछने पर ड्राइवर ने बताया कि जब कोई मानता की जाती है तब लोग कपड़ों पर लिख कर उन पताकाओं को वहां बांध जाते है |
और जब मानता पूरी हो जाती है ,उनको खोल कर नदी में प्रवाहित कर देते है |रास्ते में एक हरे घास के मैदान में " याक और जो" को चरते देख हमने ड्राइवर से उनकी जानकारी ली |उसने बताया कि याक का उपयोग परिवहन के लिए किया जाता है तथा जो को दूध के लिए पाला जाता है |"जो" एक cross -breed चौपाया है |लौटते समय नाम्बियार राजा का ९मंजिला महल भी देखा | उसका रख रखाव बहुत अच्छे ढंग से किया गया है |शाम होते होते हम अपने आज के अंतिम पड़ाव शांती स्तूप पर थे | ऊपर से लेह का दृश्य बहुत सुंदर लग रहा था |जब हम वापस लौट रहे थे रास्ते में मिलने वाले कुछ लोगों ने"जुले" कह कर अभिवादन किया ,ड्राइवर ने बताया कि यहाँ पर अभिवादन के लिए जुले कहा जाता है | हमने भी नमस्ते की जगह लोगों का अभिवादन जुले कह कर किया |
अगले दिन सुबह नुब्रा घाटी जाने के लिए तैयार हुए |हमारे साथ चार अन्य यात्री भी थे उनमें से तीन बोम्बे से आई हुई
शिक्षिकाएं थीं और एक तमिल सज्जन थे |जैस जैसे आगे बढने लगे अपने को चारों ओर से बर्फ के पहाड़ों से घिरा हुआ पाया |
हरियाली का दूर दूर तक नामोंनिशान नहीं था |इसी लिए तो लद्दाख को बर्फ का रेगिस्तान कहा जाता है |
कुछ समय बाद हम दुनिया की highest motorable road पर से गुजर रहे थे |सड़क की कुल ऊंचाई १८300 फीट
है |इसे खारडुंग-ळा के नाम से जाना जाता है |एक तरफ ऊंची बर्फ से ढकी पहाड़ी और सड़क के दूसरी ओर बर्फ से ढकी खाई |यहां तक कि सडक पर भी हल्की सी बर्फ की परत थी |जगह जगह मिलिट्री की चौकियां बनी हुई थीं |
मिलिट्री के लोगों का ब्यवहार बहुत आत्मीयता से भरा हुआ था |मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया |
एकाएक हमारी गाड़ी पीछे की ओर स्किट होने लगी |ड्राइवर जल्दी से नीचे उतरा और पहियों पर रोक लगाई |सावधानी से हमारे साथ के लोग भी उतरे |तमिल राम स्वामी तो फिसल ही गए ,और बर्फ की दीवार से टिक कर खड़े हो गये |
पीछे से एक मिलिट्री की जीप आरही थी |उसकी मदद से सड़क पार कर पाए और खाई में गिरते गिरते बचे |एक बहुत बड़ा
हादसा होते होते बचा |
जब नुब्रा घाटी पहुचे दिन के १२ बज रहे थे |दो नदियों शायोक और नुब्रा की छोटी छोटी सी धाराओं से बनी यह घाटी
बहुत हरी भरी है |वहां का बौद्ध गोम्फा और मंदिर देखे |फिर एह फार्म हाउस पर दो कुब्ब वाला ऊँट भी देखा |क्यों कि
शाम हो गई थी, हम एक विश्राम गृह में रुक गए |वहां दो भाई बहन उस विश्रामगृह की देख रेख करते थे |वे इतने स्नेह से मिले कि घर सा लगने लगा |रात को हमारे साथ के लोगों ने वहां के लोकल पेय "छंग" का भी रसास्वादन किया |
अगले दिन सुबह होते ही लेह के लिए यात्रा शुरू की |थकान इतनी होगई थी कि सारे दिन होटल में आराम किया |
शाम को वहां के छोटे से मार्केट में कुछ खरीदारी की |उस समय एक बहुत बड़ा बौद्ध लोगों का जुलुस भी देखा |
फिर सुबह होते ही Pangong lake जाने के लिए जीप में सबार हुए |सोचा कुछ खाने के लिए ले लिया जाए |एक होटल पर बन रहे पराठों को पेक करवा लिया| यह रास्ता बहुत ऊबड़ खाबड़ होने के कारण रास्ते में बहुत कठिनाई हुई |जाते समय सेनडूल्स भी देखने को मिले |पर जब झील पर पहुंचे ,सारी थकान चारों ओर बर्फ से ढंकी पहाड़ियों से घिरी झील देख कर एक दम तिरोहित हो गई |इस झील कि लम्बाई १३० किलोमीटर है |अघिकांश भाग चींन के अधिकार में है तथा शेष भाग भारत में है|यह १४००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है |इतना साफ पानी इससे पहले कभी न देखा था |कचरे का तो नामो निशान तक नहीं था |सच पृथ्वी पर स्वर्ग नजर आ गया | वहां बने बंकरों में मिलिट्री के लोग सुरक्षा हेतु रहते है |
बादल घिर आए थे अतः लेह लौटना ही उचित समझा |समयाभाव के कारण चुम्बकीय घाटी नहीं जा पाए |जब कोई वाहन इससे से गुजरता है ,वाहन की गति अपने ही आप धीमी हो जाती है | मौसम खराब होने के कारण उस दिन की फ्लाईट रद्द हो गई थी |कुछ लोग तो सड़क मार्ग से कारगिल होते हुए श्री नगर चले गऐ |पर हम दूसरे दिन अपनी फ्लाईट का इंतजार करते रहे |हमारी फ्लाईट तीन घंटे लेट थी |एरोड्रम पर समय काटने के लिए लोगों से बातें करने लगे |
बातों ही बातों में बहुत सी और जानकारियाँ मिलीं |जुलाई माह में सिन्धु महोत्सव में वहां के लोग अपनी अपनीं पारंपरिक
वेश भूषा में आते हैं और उस समय वहां तरह तरह के सांस्कृतिक आयोजन और खेल होते हैं |लद्दाख के प्रत्येक गांव में पोलो खेला जाता है पर हर जगह अपने अपने नियम होते हैं|हमने उनलोगों से "जुले" कह कर अभिवादन किया और कुछ समय बाद हम अपने २ गंतव्य की ओर चल दिए |उस यात्रा में बहुत अच्छा लगा |सोचती हूं एक बार वहां जाने का
और प्लान बना लें तो कितना अच्छा हो |
आशा

17 जून, 2010

मेरी चाहत

समझदार हूँ
अपना अस्तित्व है मेरा
मेरी सोच सबसे जुदा
यह भी कोई खता नहीं 
बदलाव समाज में चाहूँ
अपने ढंग से रहना चाहूँ
ना मैं  हूँ मोम की गुड़िया 
ना ही भेड़ बकरी
 हूँ देन आज के युग की 
मेरे भी हैं  अपने सपने 
उनको पूरा करना चाहूँ
ऐरे गैरे चाहे जैसे से
विवाह मैं न कर पाऊँगी
दान दहेज के दानव से
खुद को  दूर रखना चाहूँगी 
मन चाहा रिश्ता जब होगा
तभी उसे स्वीकार करूँगी |
बड़ा परिवार ढेर से बंधन
हर समय दबाने की चाहत
बात-बात पर रोका टोकी
यह  मुझे स्वीकार न होगी
मन को सब से दूर करेगी 
सास ननद के ताने सुनना
घुटन भरे माहौल में रहना
हर पल मर-मर कर जीना
है  मेरी फितरत नहीं 
यह सब मैं सह न सकूँगी
सहज भाव से जी न सकूँगी
ठेस यदि मन को पहुँची
सब के साथ रह न सकूँगी
पहले भी अकेले रही 
अब भी मैं स्वतंत्र  रहूँगी |
यदि मेरा पढ़ना लिखना
उनको नहीं सुहाता है
पर मेरा है  जीवन वही 
उससे गहरा नाता है
ऐसे विचार रखने वालों से
ताल मेल न हो पायेगा
उन्नति  मार्ग अवरुद्ध होगा
जीवन नर्क हो जायेगा
हूँ  आज की नारी 
अपनी अस्मिता मिटने न दूँगी
जाग्रत हूँ जाग्रत ही रहूँगी |


आशा