24 जून, 2010

पल दो पल की खुशियाँ

संघर्ष रत इस दुनिया में ,
उलझनों से भरा हुआ जीवन ,
फूलों की सेज सा दिखता है ,
पर काँटों की कमी भी नहीं है ,
समस्याओं का पिटारा है वह ,
जिन्हें सुलझाना ही होता है ,
शिकायतों के लिए जगह नहीं होती |
पल दो पल की खुशियाँ ,
इस में यदि झाँक पायें ,
उलझनों से दूरी रख कर ,
समस्याओं से भी निपट पायें ,
जीवन इतना भी सहज नहीं ,
जितना कि दिखाई देता है ,
सच तो यही है ,
दूर का ढोल सुहावना लगता है ,
कुछ क्षणों की प्रसन्नता की चाहत ,
हर किसी को होती है ,
वह भी यदि ऐसा ही चाहे ,
इसमें हानि ही क्या है ,
खुशियाँ जब जीवन में होंगी ,
कष्टों की पीड़ा कुछ तो कम होगी ,
तब जीवन असफल नहीं रहेगा ,
कुछ करने की चाह बढ़ेगी |


आशा

23 जून, 2010

एक सत्य चित्रण (केरीकेचर)

जब उसको देखा परखा ,
तभी उसे जान पाये ,
उसकी अजीब आदतों का ,
कुछ मज़ा उठा पाये ,
हीनता से भरा हुआ वह ,
अपने दोष छुपाता था ,
कमज़ोर हुआ तो क्या ,
पहलवान सा चलता था,
यदि कोई देख रहा हो ,
दुगुना तन कर चलता था ,
कभी हिन्दी तो कभी अंग्रेजी में ,
अपना रौब झाड़ता था ,
यदि इसका भी प्रभाव न हो ,
चंद किताबों के संदर्भ बताता था ,
सबसे आगे रहने की चाहत ,
उसके मन में रहती थी ,
सब करने की क्षमता थी ,
ऐसा सब को जतलाता था ,
एक बार कड़ाके की ठण्ड में ,
सब को शान बताने के लिये ,
नदी में तैरने उतर गया ,
ठण्ड से दाँत बजने लगे ,
हाथ पैर भी रुकने लगे ,
जैसे तैसे बचाया गया ,
बुखार से हाल बेहाल हुआ ,
आदत शान बताने की ,
खुद को बहुत समझने की ,
उससे दूर न होती थी ,
रोज नये करतब करता था ,
चर्चा में खुद को रखता था ,
जब भी खेलों की चर्चा होती ,
वह हरफनमौला हो जाता था ,
जब भी मैदान में उतरता ,
कुछ देर भी न टिक पाता था ,
चोट यदि भूल से भी लगती ,
दूसरों को दोषी ठहराता था ,
पर बहस करने की आदत ,
वह छोड़ नहीं पाता था ,
सवा सेर जब कोई मिल जाता ,
वह पतली गली से निकल जाता था ,
सभी लोग पीठ पीछे ,
उसकी हँसी उड़ाते थे ,
वह एक ऐसा नमूना था ,
हँसी का पात्र बन कर भी जो ,
खुद में सुधार न कर पाया ,
वह क्या है क्या चाहता है ,
यह भी नहीं समझ पाया ,
पासिंग शो से अच्छा उन्वान,
जिसके लिए नहीं मिलता ,
उससे मिलने के लिए,
किसका जी नहीं होता |


आशा

22 जून, 2010

आज के संदर्भ मै

भ्रष्टाचार का दानव पनपा ,
महँगाई सीमा लाँघ गयी
जमाखोरी और रिश्वतखोरी भी ,
सारी हदें पर कर गई ,
कई लोग लिप्त हुए इसमें ,
सिक्ता कण से रमे सब में |
विषमता की विभीषिका ने ,
पग-पग पर कदम बढ़ाये अपने ,
गरीबों की जमीन हथिया कर ,
चालाक किसान धनवान हो गया ,
छोटा किसान बिना ज़मीन के ,
केवल मजदूर बन कर रह गया |
संख्या गरीबों की बढ़ी है ,
आवाज बुद्धिजीवी की ,
दवा दी जाती है ,
स्थिति देश की बिगड़ती जाती है ,
चंद हाथों में धन के सिमटने से ,
धनिक अधिक धनाढ्य हो गया ,
इस मकड़ जाल में फँस कर ,
जीना आम आदमी का कठिन हो रहा |
नेतागिरी एक धंधा बनने से ,
कई गुंडे नेता बन बैठे हैं ,
करते हैं देश हित की बातें ,
पर जेब अपनी भरते हैं ,
जब भी क्रांति आयेगी ,
जागृति समाज में लायेगी ,
सत्य की आवाज न दबाई जाएगी ,
गरीबों और अमीरों के बीच की ,
खाई पटती जायेगी ,
देश में खुशहाली आयेगी |



आशा

21 जून, 2010

एक झलक तेरी

चूड़ियों की खनक ,
मेंहदी की महक ,
पैरों से पायल की छन-छन,
मन में मिश्री घोल रही ,
एक झलक पाने को तेरी ,
मन की कोयल बोल रही |
मीठी मधुर हँसी तेरी ,
घूँघट से झाँकती चितवन तेरी ,
क्यों बार-बार खींच लाती मुझको ,
तेरे दामन को छूती हवा ,
और करीब लाती मुझको |
लाल रंग के जोड़े में ,
लहरा कर जब चलती है ,
दामिनी सी दमकती है ,
और अधिक सम्मोहित करती है |
तू चपला है या मुखरा है ,
यह तो मुझे पता नहीं ,
पर यह तेरा सुन्दर चेहरा ,
जो छिपा हुआ अवगुंठन में ,
अपनी ओर खींचता मुझको |
मन पंछी उड़ना चाह रहा ,
पंखों को अपने तोल रहा ,
तेरी एक झलक पाने के लिये ,
मन का पिंजरा छोड़ रहा |


आशा

20 जून, 2010

क्या तुम मेरी बैसाखी बनोगी

भावुकता से भरा हुआ मैं ,
अपनी सुधबुध खो बैठा ,
आगा पीछा कुछ न देखा ,
जीवन संग्राम में कूद पड़ा ,
मेरे आहत मन की पीड़ा की ,
क्या तुम गवाह बन पाओगी ,
मेरी उखड़ी साँसों का ,
कैसे हिसाब रख पाओगी |
जीवन का सफर काँटों से भरा है ,
यह मैं अब जान पाया ,
समस्याओं से जब जूझा ,
तभी उन्हें पहचान पाया |
कठिन डगर पर चलते-चलते ,
कई बार गिरा, गिर कर सम्हला ,
जब से तुम्हारा साथ मिला ,
मैं बहुत कुछ सोच पाया |
जब कभी मैं याद करूँगा ,
क्या तुम मेरी बैसाखी बनोगी ,
ऊँची नीची पगडंडी पर ,
क्या तुम मेरे साथ चलोगी ?


आशा

शेर

इस सुरमई शाम में ,
दिल में, महफिल सजाये बैठा हूँ ,
कोई आये या न आये ,
शमा जलाये बैठा हूँ ,
तुम तो ज़रूर आओगी ,
यह आस लगाये बैठा हूँ |


आशा

19 जून, 2010

जीवन मेरा

जाने कितने सपनों से
अपनी रातों को सजाया मैंने
जब उनकी सच्चाई जानी
एक भी आँसू न बहाया मैंने
हर  आँसू है मोती जैसा
उसका मोल नहीं भूली
अनमोल मोतियों की माला से
अपना गला न सजाया मैंने
सारा वैभव छोड़ दिया
जब धरातल पर पैर रखे
सहज भाव से सारे रिश्तों को
जी जान से निभाया मैंने
जीवन के अंतिम पड़ाव पर
जब भी सोचा दुःख पाया
जाने क्या खोया क्या पाया
अवसाद ने सिर उठाया
सपनों का मोल भी समझाया
तब आँखों से गिरा एक मोती भी
बहुत अनमोल नजर आया |


आशा