देख प्रकृति की छटा
खोया-खोया उसमें ही
जा रहा था अपनी धुन में
ध्यान गया उस पीपल पर
था अनोखा दृश्य वहाँ
खड़खड़ा रहे थे पत्ते
आपस में बतिया रहे थे
मंद पवन को संग ले
आकाश में उड़ना चाह रहे थे
हरे रंग के कुछ पक्षी
यहाँ वहाँ उड़-उड़ कर
पीपल के फल खाते
पहले सोचा तोते होंगे
पर उत्सुकता ने ली अंगड़ाई
छुपता छुपाता आगे बढ़ा
दुबका एक झाड़ी की आड़ में
अब था दृश्य बहुत साफ
वे तोते नहीं थे
लगते थे कबूतर से
पर कबूतर नहीं थे
वे हरे थे
एक डाल से दूसरी पर जाते
शांत बैठना मनहीं जानते
पीली चोंच, पीले पंजे
उन्हें विशिष्ट बना रहे थे
मैं अचम्भित टकटकी लगा
उनके करतब देख रहा था
निकट के जल स्त्रोत पर
झुकी डाल पर बैठ-बैठ
गर्दन झुका जल पी तृप्त हो
पत्तियों में ऐसे छुपे
मानो वहाँ कोई न हो
एक व्यक्ति जब निकला
वृक्ष के नीचे से
सारे पक्षी उड़ गये
रोका उसे और पूछ लिया
थे ये कौन से पक्षी
लगते जो कबूतर से
पर रंग भिन्न उनसे
उसने ही बताया मुझे
ये वृक्ष पर ही रहते हैं
वही है बसेरा उनका
मुड़े हुए पंजे होने से
धरती पर चल नहीं पाते
हरे रंग के हैं
हरियाल उन्हें कहते हैं (ग्रीन पिजन )
वह तो चला गया
मैं सोचता रह गया
प्रकृति की अनोखी कृति
उन पक्षियों के बारे में
तभी एक विचार मन में आया
मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन नहीं है
पक्षी भी भय खाते उससे
तभी तो उसे देख
उससे किनारा कर लेते हैं
शरण आकाश की लेते हैं |
आशा