02 सितंबर, 2011

कई सौपान


है जीवन का नाम

एक एक सौपान चढना

साथ किसी का मिलते ही

बढ़ने की गति द्रुत होना |

इस दुनिया में आते ही

ममता मई गोद मिलती

माँ के प्यार की दुलार की

अनमोल निधि मिलती |

आते ही किशोरावस्था

कोइ होता आदर्श उसका

अनुकरण कर जिसका

अपना मार्ग प्रशस्त करता |

होती कठिनाई तरुणाई में

फंसता जाता दुनियादारी में

कोल्हू के बैल सा जुता रहता

खुद को स्थापित करने मैं |

यदि भूले से पैर फिसलता

गर्त में गिरता जाता

फिर सम्हल नहीं पाता

फँस कर रह जाता मकड़जाल में |

जीवन के अंतिम सौपान पर

जैसे ही कदम रखता

भूलें जो उससे हुईं

प्रायश्चित उनका करता |

फिर दिया जलाता वर्तिका बढाता

जब स्नेह समाप्त होता

हवा के झोके से लौ तेज होती

फिर भभक कर बुझ जाती |

फिर न कोइ सौपान होता

ऊपर जाने के लिए

उसके जीवन की कहानी

बस यूँ ही समाप्त होती |

आशा

प्रार्थना है


हार्दिक शुभ कामनाए इस शुभ अवसर पर

'प्रार्थना है '


हें गण नायक सिद्धि विनायक
हर वर्ष की तरह इन्तजार तुम्हारा
बहुत किया था
इस वर्ष भी आए अच्छा किया |
तुमसे मिलता बल
हर कार्य सिद्ध करने का
कुछ नया करने का
आ कर मनोबल बढ़ाया
अच्छा किया |
रिद्धि सिद्धि के स्वामी
तुम्हारा आशीष पा कर
जो कुछ भी किया जाता है
शुभ लाभ देख कर
मन सुख पाता है |
पहले की तरह
सुख आए
कामना पूर्ण हो जाए
है यही प्रार्थना आज भी |
सब को सुखी करना
देश के सारे विघ्न हरना
मनो कामना पूर्ण हों
ऐसा आशीष देना |


आशा




01 सितंबर, 2011

कुछ कदम


कुछ कदम वह चले
और कुछ तुम भी चलो
है इतनी लम्बी डगर
फासले कुछ तो कम होंगे |
तुम्हारी ये नादानियां
जी का जंजाल हों गईं
समझौता विचारों में
किस तरह हों पाएगा |
यदि चल पाए दौनों
चार कदम भी साथ साथ
जिन्दगी का बुरा हाल
ऐसा न हों पाएगा |
जब भी वह झुके
और तुम ना झुक पाओ
बनती बात बिगड़ जाएगी
फिर कुछ भी न हों पाएगा |
आशा

31 अगस्त, 2011

माँ की ममता


माँ ने ममता से
पलकों पर बिठाया तुम को
हो तुम क्या
अहसास दिलाया तुम को |
हर पल तुम्हे याद किया
पलकों को छूते ही
अहसास तुम्हारा पा
बाहों में झुलाया तुमको |
जब बाहर पैर रखा
अपना अस्तित्व खोजा
तुमने पलट कर न देखा
कुछ जानना न चाहा |
यह बेरुखी ऐसा व्यवहार
ह्रदय में गहरे जख्म कर गया
तुम नहीं जानतीं
तुमने कितना रुलाया उसको |
उसूलों पर खरी नहीं उतरीं
ना ही कभी सोचा
होती है ममता क्या
और उसकी अपेक्षाएं क्या ?
उसके मन की पीड़ा को
अभी न जान पाओगी ,
समझोगी तब ,
जब स्वयं माँ बनोगी |
आशा

30 अगस्त, 2011

श्री अन्ना हजारे


अपने हृदय की बात उसने ,
इस तरह सब से कही |
सैलाब उमढ़ा हर तरफ से ,
मंच की प्रभुता रही |
ऊंचाई कोइ छू न पाया ,
आचरण ऐसा किया |
सम्मोहनात्मक भावनाओं से ,
भरम डिगने ना दिया |
अपनी बातों पर अडिग रहा ,
अहिंसा पर जोर दिया |

आशा



28 अगस्त, 2011

यह पड़ाव कब पार हो


जीवन की लंबी डगर पर
देखे कई उतार चढ़ाव
अनेकों पड़ाव पार किये
फिर भी विश्वास अडिग रहा |
कभी हार नहीं मानी
जीवन लगा न बेमानी
जटिल समस्याओं का भी
सहज निदान खोज पाया |
आशा निराशा के झूले में
भटका भी इधर उधर
कभी सफलता हाथ लगी
घर असफलता ने घेरा कभी |
अनेकों बार राह भूला
फिर उसे खोज आगे बढ़ा
ऊंची नींची पगडंडी पर
जीवन यूँ ही चलता रहा |
जीवन इतना दूभर होगा
इस अंतिम पड़ाव पर
 कभी सोचा न था
ना ही कल्पना की इसकी |
आज हूँ उदास ओर बेचैन
यह राह कब समाप्त हो
कर रहा हूँ इन्तजार
यह पड़ाव कब पार हो |

आशा




27 अगस्त, 2011

सादगी


थी नादान बहुत अनजान
जानती न थी क्या था उसमे
सादगी ऐसी कि नज़र न हटे
लगे श्रृंगार भी फीका उसके सामने |
थी कृत्रिमता से दूर बहुत
कशिश ऐसी कि आइना भी
उसे देख शर्मा जाए
कहीं वह तड़क ना जाए |
दिल के झरोखे से चुपके से निहारा उसे
उसकी हर झलक हर अदा
कुछ ऐसी बसी मन में
बिना देखे चैन ना आए |
एक दिन सामने पड़ गयी
बिना कुछ कहे ओझिल भी हो गयी
पर वे दो बूँद अश्क
जो नयनों से झरे
मुझे बेकल कर गए |
आज भी रिक्त क्षणों में
उसकी सादगी याद आती है
मन उस तक जाना चाहता है
उस सादगी में
श्रृंगार ढूंढना चाहता है |

आशा