12 जनवरी, 2012

मृग तृष्णा

जल देख आकृष्ट हुआ 
घंटों  बैठ अपलक निहारा 
आसपास  था जल ही जल
प्यास जगी बढ़ने लगी |
खारा पानी इतना कि 
बूँद  बूँद जल को तरसा  
गला  तर न कर पाया 
प्यासा था प्यासा ही रहा |
तेरा प्यार भी सागर जल सा 
मन  ने जिसे पाना चाहा 
पर  जब भी चाहत उभरी 
 खारा जल ही मिल पाया |
रही  मन की प्यास अधूरी 
मृग  तृष्णा सी बढती गयी 
जिस जल के पीछे भागा 
मृग  मारीचिका ही नजर आई |
सागर  सी गहराई प्यार की
आस अधूरी दीदार की 
वर्षों बीत गए
नजरें टिकाए द्वार पर|
मुश्किल से कटता हर पल
तेरी राह देखने  में
आगे  होगा क्या  नहीं जानता 
फिर  भी बाकी है अभी आस
 और प्यास तुझे पाने की |
आशा 


















10 जनवरी, 2012

गहन विचार

गहन गंभीर जटिल विचार 
बहते   जाते  सरिता जल से 
होते प्रवाह मान  इतने
रुकने का नाम नहीं लेते |
है गहराई कितनी उनमें 
नापना भी चाहते 
पर अधरों के छू किनारे 
पुनःलौट लौट आते |
कभी होते तरंगित भी 
तटबध तक तोड़ देते
मंशा रहती प्रतिशोध की 
तब किसी को नहीं सुहाते |
तभी  कोइ विस्फोट होता 
हादसों का जन्म होता 
गति बाधित तो होती 
पर पैरों की बेड़ी न बनती |
सतत अनवरत उपजते बिचार 
गति पकड़ आगे बढ़ते 
बांह समय की थाम चलते 
प्रवाहमान बने रहते |

आशा




07 जनवरी, 2012

स्याही रात की

जब गहराती स्याही रात की
बेगानी लगती कायनात भी
लगती चमक तारों की फीकी
चंद्रमा की उजास फीकी |
एक अजीब सी रिक्तता
मन में घर करती जाती
कहर बरपाती नजर आती
हर आहट तिमिर में |
सूना जीवन उदास शाम
और रात की तनहाई
करती बाध्य भटकने को
वीथियों में यादों की |
बढ़ने लगती बेचैनी
साँसें तक रुक सी जातीं
राह कोई फिर भी
नहीं सूझती अन्धकार में |
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
इस गहराते तम से
सूरज की किरण झाँकेगी
बंजर धरती से जीवन में |
कभी तो रौशन हो रात
शमा के जलने से
यादों से मुक्त हो
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
आशा



04 जनवरी, 2012

अफवाहें

उडाती अफवाहें बेमतलब 
तुमने शायद नहीं सुनीं 
जब सामने से निकलीं 
लोगों ने कुछ सोचा और |
मन ही मन कल्पना की 
कोइ सन्देश दिया होगा 
तुम मौन थीं तो क्या हुआ 
आँखों से व्यक्त किया होगा |
कुछ  मन चले छिप छिप  कर
सड़क किनारे खड़े हुए 
इशारों से बतियाते रहते 
छींटाकशी से बाज न आते |
हम तुम तो कभी भी
आपस  में रूबरू न हुए
ना कभी आँखें हुईं चार
ना ही उपजा कभी प्यार |
फिर  भी ऐसा क्यूँ ?
मनचलों बेरोजगारों की
शायद फितरत है यही
कटाक्ष  कर प्रसन्न होने  की |
मन  ही मन ग्लानी होती है
उनकी सोच कितनी छोटी है
यदि अफवाहें तुम तक पहुंची
तुम भी क्या वही सोचोगी
जो मैं सोच रहा हूँ ?
आशा






01 जनवरी, 2012

शब्द

शब्दों का दंगल आस पास 
अस्थिर करता मन कई बार 
दंगल का कैसे ध्यान धरें 
आकलन  शब्दों का कौन करे |
नहीं  सरल शब्दों को तोलना 
उन  वाणों से बच रहना
सत्य असत्य की पहिचान कर 
सही  अर्थ निकाल पाना |
कभी होता शब्द भी उदास 
देख   अपनी अवहेलना
है वह उस तारे सा 
जो टूटा खंड खंड होगया 
जाने  कहाँ विलुप्त हो गया |
उस शब्द का है महत्त्व अधिक 
जो कुछ बजन रखता हो 
जिस पर कोई अमल करे 
मूल्य  उसका समझ सके |
अनर्गल कहे गए शब्द 
बदलते  रहते शोर में 
और खो जाते भीड़ में 
सिमट जाते किसी आवरण में |
अनेक  शब्द अनेक अर्थ
कैसे ध्यान सब का रहे
हैं  अनेक तारे अर्श में
गिनने की कोशिश कौन करे |
आशा











29 दिसंबर, 2011

आने को है नया साल

आने को है नया साल 
कुछ नया लिए 
कल सुबह आए
खुशियों की सौगात लिए |
तैयारी  की स्वागत की 
जागे सारी रात 
अनोखा उत्सार जगा 
नया साल कुछ खास  लगा |
स्वप्नों के तानेबाने से 
एक नया संसार बुना 
जहां न हो भेदभाव 
हो  भाई चारा बेमिसाल |
हर ओर अमन चैन फैले 
प्रेममय सब जग लगे
तभी तो आने वाला कल 
आएगा  उज्वल भविष्य लिए |
संभावनाएं  होंगी अनेक 
लिए उत्साह हर क्षेत्र में 
है कामना आए यह साल 
समृद्धि की मशाल लिए |
आशा 







27 दिसंबर, 2011

सुगंधित बयार

है प्रेम क्या उसका अर्थ क्या
वह हृदय की है अभिव्यक्ति
या शब्दों का बुना जाल
या मन में उठा एक भूचाल |
होती आवश्यक संवेदना
आदर्श विचार और भावुकता
किसी से प्रेम के लिए
कैसे भूलें त्याग और करुना
है यह अधूरा जिन के बिना |
कुछ पाना कुछ दे देना
फिर उसी में खोए रहना
क्या यह प्यार नहीं
लगता है यह भी अपूर्ण सा
कब आए किस रूप में आए
है कठिन जान पाना |
जिसने इसे मन में सजाया
इसी में आक्रान्त डूबा
मन में छुपा यही भाव
नयनों से परिलक्षित हुआ |
रिश्तों की गहराई में
दाम्पत्य की गर्माहट में
यदि सात्विक भाव न हो
 तब सात फेरे सात वचन
साथ जीने मरने की कसम
लगने लगते सतही
या मात्र सामाजिक बंधन |
जिसके हो गए उसी में खो गए
रंग में उसी के रंगते गए
क्या यह प्यार नहीं ?
यह है बहुआयामी
और अनंत  सीमा जिसकी
यह तो है सुगन्धित बयार सा
जिसे बांधना सरल नहीं |