07 अक्तूबर, 2012
04 अक्तूबर, 2012
दिया गुलाब का फूल
दिया गुलाब का फूल
किया इज़हार प्यार का
डायरी में रखा
बहुत दिन तक सहेजा
एक दिन डायरी हाथ लगी
नजर उस पर पड़ी
फूल तो सूख गया
पर सुगंध अपनी छोड़ गया
अहसास उन भावनाओं का
उसे भूलने नहीं देता
याद जब भी आ जाती
भीनी सी उस खुशबू में
जाने कब खो जाती है
उन यादों के खजाने से
मन को धनी कर जाती है
फिजा़ओं में घुली
यादों की सुगंध
उसको छू जो आई
आज भी हवा में घुली
धीरे धीरे धीमें से
उस तक आ ही जाती है
कागज़ कोरा अधूरा
रहा भी तो क्या
सुगंध अभी तक बाकी है
उसी में रच बस गयी है
दिल में जगह काफी़ है |
आशा
02 अक्तूबर, 2012
अतीत के गलियारे
खामोशी तुम्हारी
कह जाती बहुत कुछ
नम होती आँखें जतातीं
कुछ कुछ
अनायास बंद होती
आँखें
ले जातीं अतीत के
गलियारे में
वर्षा
अश्रु जल की गर्द हटाती
धुंधली यादों की
तस्वीरों से
पन्ने खुलते डायरी के
वे दिन भी क्या थे ?
थे दौनों साथ लिए
अटूट विश्वास
सलाहकार बनते मन की
बातें करते
उन्हें आपस में
बांटते
बदली राहें फिर भी न
भूले उन पन्नों को
होता है दर्द क्या
किसी अपने से बिछड़ने
का
है महत्त्व कितना स्नेह
के पनपने का
सौहाद्र के पलने का
है जो सोच आज
क्या तुमने भी कभी उसका
अहसास किया होगा
लंबे अंतराल ने उन
लम्हों को
बिसरा तो न दिया
होगा
कभी तो तुम्हारी
यादों में
कोइ अक्स उभरता होगा
यदि वह हो समक्ष
तुम्हारे
हालेदिल बयां करने
की
मन की परतें खोलने
की
क्या कोशिश न करोगे
या अनजानों सा व्यवहार
रखोगे
अतीत की उन तस्वीरों
को
झुठला तो न दोगे
जो आज भी झांकने
लगती हैं
कभी कभी दिल के झरोखे से |
आशा
30 सितंबर, 2012
28 सितंबर, 2012
विचलन
मन होता विचलित फँस कर
इस माया जाल में
विचार आते भिन्न भिन्न
कभी शांत उदधि की तरंगों से
तो कभी उन्मत्त उर्मियों से
वह शांत न रह पाता
कहाँ से शुरू करू ?
क्या लिपिबद्ध करूं ?
मैं समझ नहीं पाता
है सब मकड़ी के जाले सा
वहाँ पहुंचते ही फिसल जाता
सत्य असत्य में भेद न हो पाता
आकाश से टपकती बूँदें
कराती नया अद्भुद अनुभव
पर दृश्य चारों और का
कुछ और ही अहसास कराता
कहीं भी एकरूपता नहीं होती
कैसे संवेदनाएं नियंत्रित करूं
मन विचलित ना हो जाए
ऐसा क्या उपाय करूं ?
कभी शांत उदधि की तरंगों से
तो कभी उन्मत्त उर्मियों से
वह शांत न रह पाता
कहाँ से शुरू करू ?
क्या लिपिबद्ध करूं ?
मैं समझ नहीं पाता
है सब मकड़ी के जाले सा
वहाँ पहुंचते ही फिसल जाता
सत्य असत्य में भेद न हो पाता
आकाश से टपकती बूँदें
कराती नया अद्भुद अनुभव
पर दृश्य चारों और का
कुछ और ही अहसास कराता
कहीं भी एकरूपता नहीं होती
कैसे संवेदनाएं नियंत्रित करूं
मन विचलित ना हो जाए
ऐसा क्या उपाय करूं ?
25 सितंबर, 2012
हताशा
असफलता और बेचारगी
बेरोजगारी की पीड़ा से
वह भरा हुआ हताशा से
है असंतुष्ट सभी से
दोराहे पर खडा
सोचता किसे चुने
सोच की दिशाएं
विकलांग सी हो गयी
गुमराह उसे कर गयी
नफ़रत की राह चुनी
कंटकाकीर्ण सकरी पगडंडी
गुमनाम उसे कर गयी
तनहा चल न पाया
साये ने भी साथ छोड़ा
उलझनो में फसता गया
जब मुड़ कर पीछे देखा
बापिसी की राह न मिली
बीज से विकसित
पौधे नफ़रत के
पौधे नफ़रत के
दूर सब से ले आए
फासले इतने बढ़े कि
अपने भी गैर हो गए
हमराही कोई न मिला
अकेलापन खलने लगा
अहसास गलत राह चुनने का
अब मन पर हावी हुआ
सारी राहें अवरुद्ध पा
टीस इतनी बढ़ी कि
खुद से ही नफ़रत होने लगी |
24 सितंबर, 2012
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