खामोशी तुम्हारी
कह जाती बहुत कुछ
नम होती आँखें जतातीं
कुछ कुछ
अनायास बंद होती
आँखें
ले जातीं अतीत के
गलियारे में
वर्षा
अश्रु जल की गर्द हटाती
धुंधली यादों की
तस्वीरों से
पन्ने खुलते डायरी के
वे दिन भी क्या थे ?
थे दौनों साथ लिए
अटूट विश्वास
सलाहकार बनते मन की
बातें करते
उन्हें आपस में
बांटते
बदली राहें फिर भी न
भूले उन पन्नों को
होता है दर्द क्या
किसी अपने से बिछड़ने
का
है महत्त्व कितना स्नेह
के पनपने का
सौहाद्र के पलने का
है जो सोच आज
क्या तुमने भी कभी उसका
अहसास किया होगा
लंबे अंतराल ने उन
लम्हों को
बिसरा तो न दिया
होगा
कभी तो तुम्हारी
यादों में
कोइ अक्स उभरता होगा
यदि वह हो समक्ष
तुम्हारे
हालेदिल बयां करने
की
मन की परतें खोलने
की
क्या कोशिश न करोगे
या अनजानों सा व्यवहार
रखोगे
अतीत की उन तस्वीरों
को
झुठला तो न दोगे
जो आज भी झांकने
लगती हैं
कभी कभी दिल के झरोखे से |
आशा