आये स्वेद कण माथे पर
कुछ तो ऐसा है अवश्य
जो शब्द बन्धक हो गए
लवों तक आ कर रुक गए
यह दुविधा यह बैचैनी
क्यूं लग रही व्यर्थ सी
भाव कहीं अपनत्व का
दिखाई नहीं देता
व्यवहार तुम्हारा रूखा
लगता बेगानों सा
क्या कुछ घटित हुआ
इन चंद दिनों में
जिसकी कोइ खबर तक नहीं
फिर भी अपनों से
यह दुराव कैसा
लाख भावों को छुपाओ
हम से यह अलगाव कैसा
अपने दिल की सुनो
कुछ मन की कहो
तभी होगा निदान
हर उस समस्या का
जो सात पर्दों में छिपी है
कस कर थामें है बांह
उन शब्दों की उन बिम्बों की
जिन्हें बाहर आने नहीं देती
आज तुम्हारी यह उदासी
बहुत कुछ कह गयी
कुछ अनकहा रहा भी तो क्या
गैरों सा व्यवहार तुम्हारा
सब कुछ बता गया |
आशा
क्या कुछ घटित हुआ
इन चंद दिनों में
जिसकी कोइ खबर तक नहीं
फिर भी अपनों से
यह दुराव कैसा
लाख भावों को छुपाओ
हम से यह अलगाव कैसा
अपने दिल की सुनो
कुछ मन की कहो
तभी होगा निदान
हर उस समस्या का
जो सात पर्दों में छिपी है
कस कर थामें है बांह
उन शब्दों की उन बिम्बों की
जिन्हें बाहर आने नहीं देती
आज तुम्हारी यह उदासी
बहुत कुछ कह गयी
कुछ अनकहा रहा भी तो क्या
गैरों सा व्यवहार तुम्हारा
सब कुछ बता गया |
आशा