यह क्षत- विक्षत पहुँच मार्ग
पर है सेतु
तेरे मेरे बीच का |
पग पग आगे बढूँ
ना रुकूं ना ही विश्राम करूं
फिर भी मंथर गति
तीव्र न हो पाती
किरणे तेजस्वी अरुण की
भी मलिन हो जातीं
अरुणोदय से सांझ तलक
कुछ दूरी भी तय न कर पाती
है यह कैसी विडंबना
तेरी छाया तक न छू पाती
पर हूँ दृढ प्रतिज्ञ
कदम मेरे पीछे न हटेंगे
तुझे पा कर ही दम लेंगे
अब आपदाओं का न भय होता
माया मोह से ना कोई नाता
ध्यान तुझी में रहेता
इष्ट मेरा है तू ही
जिसमें सिमटा जीवन मेरा |
आशा