16 मार्च, 2014
14 मार्च, 2014
फागुनी तरंग (जापानी ताका )
ताका :-
(1)
बाट जोहती
टेसू के रंग बना
रंगती उसे
गुलाल लिए साथ
कि फागुन आया रे |
(2)
भंग तरंग
मिलन की उमंग
मिला फगुआ
मुंह सुर्ख हो रहा
फागुन मन भाया |
(3)
(1)
बाट जोहती
टेसू के रंग बना
रंगती उसे
गुलाल लिए साथ
कि फागुन आया रे |
(2)
भंग तरंग
मिलन की उमंग
मिला फगुआ
मुंह सुर्ख हो रहा
फागुन मन भाया |
(3)
दिल ने कहा
गुनगुनाओ गाओ
बोल जिसके
मनोभाव छू जाते
फागुन में पलाश
खिल मन रिझाते |
(4)
गुनगुनाओ गाओ
बोल जिसके
मनोभाव छू जाते
फागुन में पलाश
खिल मन रिझाते |
(4)
फूलों की होली
मथुरा नगरिया
आ चलें वहां
है लठ्ठ मार होली
आज बरसाने में |
(5)
मथुरा नगरिया
आ चलें वहां
है लठ्ठ मार होली
आज बरसाने में |
(5)
मटकी टूटी
स्वाद है भरपूर
इस चोरी में
खुद खाया खिलाया
मित्र भाव निभाया |
स्वाद है भरपूर
इस चोरी में
खुद खाया खिलाया
मित्र भाव निभाया |
(6)
मुकर गया
माँ ने पूंछ लिया
माखन खाया
मैंने नहीं उतारी
फिर भी टूट गयी |
(६)
होली की मस्ती
भाँग मिली ठंडाई
साथ मिठाई
गुजिया भी साथ है
वाह क्या बात है |
(7)
गुलाल लगा
आशा
मुकर गया
माँ ने पूंछ लिया
माखन खाया
मैंने नहीं उतारी
फिर भी टूट गयी |
(६)
होली की मस्ती
भाँग मिली ठंडाई
साथ मिठाई
गुजिया भी साथ है
वाह क्या बात है |
(7)
गुलाल लगा
जोरा जोरी राधा से
फाग खेलता
नटखट कन्हिया
बांसुरी का बजैया
फाग खेलता
नटखट कन्हिया
बांसुरी का बजैया
12 मार्च, 2014
10 मार्च, 2014
सैलाव विचारों का
भयावह काली रात में
विचारों का सैलाव है
एक अजनवी साया
चारों ओर से घेरे है |
अनसुनी आवाज
बहुत दूर से आती है
एक कहानी लुका छिपी करती
फिर लुप्त हो जाती है |
पर जिन्दगी खामोश है
ना कोइ आस ना उमंग
न जाने क्या सोच है
मन में बहुत आक्रोश है |
मन में बहुत आक्रोश है |
यह शाम यहीं तो
नहीं थम जाएगी
काली रात के बाद
कभी तो सुबह आएगी |
दूर सड़क पर
है कुछ गहमागहमी
पर रात के अँधेरे में
यहाँ भी सन्नाटा होगा|
|
क्या यही भयावह स्वप्न
मुझ से दूर हो पाएगा
इस तन्हाई में
सजीव रंग भर पाएगा |
09 मार्च, 2014
होली
वही अवीर वही
गुलाल
हंसी खुशी और
खुमार
बस चेहरे बदल गए
हैं
होली के अर्थ बदल
गए हैं |
होली तो होली है
रंग में सभी लाल
पर कुछ फर्क हुआ
है
रिश्ते बदल गए
हैं |
हर वर्ष बड़े
उत्साह से
दहन होलिका का
करते
खेली जाती होली
ओ मेरे हमजोली |
गले मिलते फाग
गाते
चंग की थाप पर
ठुमके लगाते मीठा खाते
बैर भाव भूल जाते |
ना बड़ा ना छोटा
कोई
समभाव मन में
रहता
तन मन रंगता जाता
मन का कलुष फिर भी
दूर न हो पाता |
दूर न हो पाता |
आशा
07 मार्च, 2014
तस्वीर कुछ कह गयी
(१)
है चन्दा या सूरज यह तो पता नहीं
पर जल से है यारी इस में शक नहीं |
(२)
रात कितनी भी स्याह क्यूं न हो
चाँद की उजास कम नहीं होती
प्यार कितना भी कम से कमतर हो
उसकी उन्सियत कम नहीं होती |
(3)
महकता मोगरा
महकता उपवन
बालों में यूं सजता
झूमता योवन |
(४)
खेतों में आई बहार
पौधों ने किया नव श्रृंगार
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता
आशा
(3)
महकता मोगरा
महकता उपवन
बालों में यूं सजता
झूमता योवन |
(४)
खेतों में आई बहार
पौधों ने किया नव श्रृंगार
रंगों की देखी विविधता
उसने मन मेरा जीता
आशा
खेतों में आई बहार
06 मार्च, 2014
साधना का उत्तंग शिखर
साधना का उच्च शिखर
दूर दिखाई देता
दूर दिखाई देता
वहां पहुँच साधना करना
सरल नहीं लगता |
सरल नहीं लगता |
पहुँच मार्ग खोजा भी
पर कंटकों से भरा
पर कंटकों से भरा
दो कदम आगे बढ़ते
लहूलुहान होते
समझाने की कोशिश करते
लहूलुहान होते
समझाने की कोशिश करते
इतना सरल नहीं
उस ऊंचाई को छूना|
उस ऊंचाई को छूना|
पर मन को हार
स्वीकार नहीं
स्वीकार नहीं
की संचित शक्ति
उसी मार्ग पर चलने की |
उसी मार्ग पर चलने की |
पक्षियों से साहस लिया
खुले अम्बर में उड़ने का
फिर भी हारे थके पंथी से
कई बार रुके
कई बार रुके
काश मध्य मार्ग मिलता
शिखर पर जाने का |
शिखर पर जाने का |
उत्सुकता जागी
उसे पाने की
उसे पाने की
अन्य मार्ग कोइ न था
बहुत देर से जाना ।
बहुत देर से जाना ।
प्रयत्न कभी विफल नहीं होते
विफलता मार्ग दिखाती
आगे बढ़ने की चाहत
और अधिक बढ़ जाती |
आगे बढ़ने की चाहत
और अधिक बढ़ जाती |
वही बनी मेरी प्रेरणा
आधा मार्ग तय भी किया
आधा मार्ग तय भी किया
पर उत्तंग शिखर पर
परचम ना फैला पाया ।
परचम ना फैला पाया ।
यही बात मुझे सालती है
फिर भी हिम्मत नहीं हारी है
फिर भी हिम्मत नहीं हारी है
मिशन सफल हो
आशा अभी बाक़ी है |
आशा अभी बाक़ी है |
आशा
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