22 अप्रैल, 2015

पारा पारा हो गया


पा कर समक्ष उसे 

दिल बल्लियों उछला

बाहों की ऊष्मा पा

वह पारा पारा हो गया |

 चाहा तो बहुत था

कि ना आगे बढ़े

पर रुक न सका

अनियंत्रित हुआ

फिर फिसल गया

दिल के हाथों विवश

 पारे सा लुढ़कता गया

हाथों से निकल गया

पारा पारा हो गया |

आशा



20 अप्रैल, 2015

मिलाएं हाथ

 
नभ जल थल एक साथ 
मिलाएं  हाथ
उर्मियाँ सागर की शोभा 
प्रिय  हैं उसे
हरियाली धरा की साथी 
नयनाभिराम लगे
उड़ते परिंदे व्योम में
स्पंदित करें 
वाणी मुखर उनकी 
सुरांजलि दे  
सृष्टि का साम्राज्य अधूरा
बिना उनके
मन बंजारा चाहता कुछ पल 
ठहरने को
प्यार के पल जीने की चाह उसे
बाधित करे

अगर रुका बंजारा न रहेगा
स्थिर तो होगा |

आशा







18 अप्रैल, 2015

एक रूप प्रेम का


मीरा ने घर वर त्यागा 
लगन लगी जब मोहन में
 विष का प्याला पी लिया
शीष नवाया चरणों में |
सूर सूर ना रहे
कृष्ण भक्ति की छाया में 
सारा जग कान्हां मय लगता 
तन मन भीगा उनमें  |
तुलसी रमें राम भक्ति में 
रामायण रच डाली
राम रसायन ऐसा पाया 
भक्ति मार्ग अपनाया |
एक रूप प्रेम का भक्ति 
लगती बड़ीअनूप
नयन मूँद करबद्ध हो 
जब शीश झुके प्रभु चरणों में |

आशा






16 अप्रैल, 2015

नया माली





नया नया माली बना 
एक गमला लाया 
मिट्टी भरी 
खाद डाली 
बीज बोया 
जल से सींचा 
 उत्सुक था
जाने कब उगेगा 
प्रातः उठाता 
गुड़ाई करता 
पानी देता 
खरपतवार तो उगे 
पर बीज बेचारा
 सुप्त ही रहा 
अंकुरित ना हो पाया 
देखरेख में 
कमीं नहीं थी 
उपक्रम नित जारी था 
माली का धैर्य छूटा 
सारा श्रम व्यर्थ हो गया 
था हैरान परेशान 
किताब पढ़ कर 
 सब किया था
फिर असफल क्यूं 
बीज ना उगना था न उगा
समझ नहीं पाया 
था बीज नकली 
या वहअकुशल  |
आशा







13 अप्रैल, 2015

वास्तविकता



लोन कितना ले के लिए चित्र परिणाम
आधुनिकता की दौड़ में
पिछड़ने से डरते
दुनिया की चकाचौंध में
अपना वजूद खोजते |
दूसरों की होड़ में
उधारी में फंस जाते
असंतोष में जीते
वर्तमान भी बिगाड़ते |
एक धरा दूसरा आसमान
हो दौनों की क्या तुलना
तुम लोनची  वो लोन  फ्री
 सोच भिन्न दौनों का  |
तुमने पैर पसारे
अपनी चादर के बाहर
वो छोड़ नहीं पाया
 अपनी चादर की हद |
वर्तमान में  कठिनाई
भविष्य सुरक्षित रखतीं
खुश हाल जीवन होगा
यही सुनिश्चित करतीं |
जो केवल लोन  पर जीता
सदा  समस्याओं से घिरा
हंसना तक भूल जाता
जीवन को बोझ समझता |
लेनदेन की चिंता में
शरीर सुख भी जाता
चिंता चिता सामान
 सत्य नजर आता |

11 अप्रैल, 2015

जननी को कौन याद करता




 सागर में सीपी असंख्य
असंभव सब को एकत्र करना
फिर भी अपेक्षा रहती
मोती वाली सीपी की |
मोती तरह तरह के
छोटे बड़े सुडौल बेडौल
उन्हें तराशती नज़र पारखी
आभा तभी निखरती |
आव मोती की
 बनाती अनमोल उसे
और मूल्य बढ़ जाता
जब सजता  आकर्षक आभूषण में |
 मोती मुकुट के बीच दमकता
शीष हजारों नित झुकते
प्रभु के सजदे में
तब मान मोती भी पाता |
जब सजता प्यार के उपहार में
आव  द्विगुणित हो जाती
अनमोल नजर आती
 उंगली की अंगूठी में |
आकर्षण मोती का
दिन प्रति दिन बढ़ता 
जब मधुर चुम्बन मिलता
प्रेम को परिपक्व करता |
तब  सागर  की या सीपी की
किसी को याद न आती
मोती याद रहता
जननी को कौन याद करता |