01 जून, 2015

तुम न आये

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रातें कई बीत गईं
पलकें न झपकीं क्षण भर को
निहारती रहीं उन वीथियों को
शमा के उजाले में |
कब रात्रि से सुबह मिलती
जान नहीं पाती
बस जस तस
जीवन खिचता जाता
एक बोझ सा लगता |
सोचती रहती
कोई उपाय तो होगा
बोझ कम करने का
उलझनें सांझा करने का |
मुझसे मेरी समस्याएँ
बाँट  लेते यदि तुम आते
बोझ  हल्का हो जाता
सुखद जीवन हो जाता |
तुम निष्ठुर निकले
मुझे समझ न पाए
मैं दूर तक देखती रही
पर तुम न आये |
आशा

30 मई, 2015

जल बरसा

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जल बरसा 
आँखों से छमछम 
रिसाव तेज |

रुक न सका 
लाख की मनुहार 
बहता रहा |

वर्षा जल सा 
कपोल की राह पर 
बहता गया |

अश्रु जल के 
निशान  बन गए 
सूखे कपोल |
आशा




29 मई, 2015

बूँद

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बूँदें स्नेह की
मन पर पड़तीं
प्यार जतातीं |

बूंदे जल की
धरा पर बरसीं
पृथ्वी सरसी  |


जल संचय
बूँद बूँद से होता
घट भरता |

जल से भरा
सर पर सोहता
घट छलका |

बूँदें जल की
नयनों से बरसीं
रुक न सकीं |

बहते अश्रु
सागर के जल से
कपोल भीगे |

बूँदें ओस की
पुष्पों पर दीखतीं
हुई सुबह |

नव पल्लव
हो गए शवनमी
ओस जल से |


आशा

28 मई, 2015

फ़साने कल के



जागती आँखों के आगे से
गुजरे बीते कल के फ़साने
एक के बाद एक
ठेस लगी मन को |
वह आहत हुआ
 चोटिल हुआ
आज तक भूल न पाया
गुजरे हुए कल  को|
जाने कैसे दबी आग से 
चिंगारी उठी
हवा ने उसको बहकाया
आग में परिवर्तित हुई |
मन धूं धूं कर जलने लगा
ठंडी बयार के एक झोंके ने
मलहम का काम किया
अग्नि को ठंडा किया |
समय तो लगा
पर मन की पीड़ा को शांत किया
धीरे धीरे सहज हुई
कटुता से मुख मोड़ा |
फिर भी मन के किसी कौने में
बीते कल ने पैर पसारे
फ़लसफ़े मन से न गए
कहीं दुबक कर रह गए |
अनुभव इतने कटु हों क्यूं
जो सुख चैन मन का हरें
रिश्तों में घुली कड़वाहट
बार बार आक्रामक हो  |
आशा