03 अप्रैल, 2019

शायद



                                   है शब्द  बहुत सामान्य सा
पर करतब इसके बहुत बड़े
जब भी उपयोग में लाया जाता
कुछ नया रंग दिखलाता
किन्तु परन्तु की उलझने
सदा  अपने साथ लाता
जब भी शायद का उपयोग होता
वह मन में बिछे उलझनों के जाल में
ऐसा फंसता जैसे
 मीन बिन जल के तड़पती
हरबार असमंजस होता हावी
क्या करे ? कैसे करे?
यह यदि किया होता
दुविधा से सरलता से  निकल पाता
उलझन से छुटकारा पाता
इस शब्द की आराधना
पड़ती बहुत मंहगी
उससे बच  कर जो रहता
दुखों से दूरी  बनाकर चलता
वही सफल हो पाता
किन्तु , परन्तु ,क्या, क्यों ,कैसे
के जाल से मन को मुक्त कर पाता
                                सहज भाव से जीवन  जी पाता 
                                             |आशा

02 अप्रैल, 2019

फलसफा प्रजातंत्र का

बंद ठण्डे कमरों में बैठी सरकार
नीति निर्धारित करती 
पालनार्थ आदेश पारित करती 
पर अर्थ का अनर्थ ही होता 
मंहगाई सर चढ़ बोलती 
नीति जनता तक जब पहुँचती 
अधिभार लिए होती 
हर बार भाव बढ़ जाते 
या वस्तु अनुपलब्ध होती 
पर यह जद्दोजहद केवल 
आम आदमी तक ही सीमित होती 
नीति निर्धारकों को 
छू तक नहीं पाती 
धनी और धनी हो जाते 
निर्धन ठगे से रह जाते 
बीच वाले मज़े लेते ! 
न तो दुःख ही बाँटते 
न दर्द की दवा ही देते 
ये नीति नियम किसलिए और 
किसके लिए बनते हैं 
आज तक समझ न आया ! 
प्रजातंत्र का फलसफा 
कोई समझ न पाया ! 
शायद इसीलिये किसीने कहा 
पहले वाले दिन बहुत अच्छे थे 
वर्तमान मन को न भाया !

01 अप्रैल, 2019

शरारत




















बच्चों की शरारतों की
बचपन की प्यारी बाते
जब भी याद आती हैं
हंसने के लिए काफी हैं|
जब अति हो जाती है
गुस्सा बहुत आता है
पर भोली सूरत देख कर
वह कहीं खो जाता है |
जब भी एक पर करते क्रोध
दूसरा बचाने आ जाता
अरे छोड़ो मां अभी बच्चा है
कहकर उसे बचा ले जाता |
फिर बाहर जा कर हँसी के मारे
लोटपोट होता जाता
कहता मां भी कितनी भोली है
जल्दी से पट जाती है |
शरारत और बचपन  का
आपस में रिश्ता है अनुपम 
दौनों एक दूसरे के अनुपूरक 
अधूरे एक दूसरे के बिना |
आशा



आशा

29 मार्च, 2019

नयनों की सुनामी




दो नैनों के 
नीले समुन्दर में 
तैरती दो सुरमई मीन 
दृश्य मनमोहक होता |
पर जब लहरें उमड़तीं 
पाल पर करतीं वार 
अनायास सुनामी सा कहर टूटता 
थमने का नाम नहीं लेता ! 
है ये कैसा मंज़र 
न जाने कब 
नदी का सौम्य रूप 
नद में बदल जाता |
अश्रु पूरित आखों से 
 जल का रिसाव कम न होता  
हृदय विदारक पल होता 
जब गोरे गुलाबी कपोलों पर
अश्रु आते, सूख जाते 
निशान अपने छोड़ जाते  ! 
आशा 

26 मार्च, 2019

क्या होता












 जब शाम ढलने को आती
सब घर पहुँचने की
करते तैयारी
पक्षी अपने  समूंह में
हो कर एकत्र
गंतव्य तक पहुँचाने की
करते तैयारी

 संचित  दाना एकत्र कर
जल्दी से घर पहुँचने की
इच्छा रखते
भूले से कोई यदि राह भटक जाता
क्या होती उसकी हालत
देखी नहीं जाती
बहुत बेचैन हो
वह खोजता अपने साथियों को
जब मिलते
प्रसन्न हो जोर जोर से चहकते
चुस्ती से घर की राह पकड़ते
रहता इन्तजार चूजों को
माता पिता के आने का
जोर से चूंचूं कर अपनों का
स्वागत करते
चाहते जानना
क्या उपहारआया
आज उनके लिए
मां सोचती क्या होता
यदि वह  राह भटक जाती
समय पर घर लौट न पाती |
आशा

20 मार्च, 2019

फागुन आया है







कान्हां संग राधा  खेलें फाग
 फागुन आया है 
यादों की सौगात लिए
आया महीना फागुन का
रंगों में सराबोर होने का
 आपस में प्यार बांटने का
रंग गुलाल लिए हाथों में
बच्चे ले पिचकारी आए
मनुहार की लगवालो रंग
न माने की बरजोरी
यूँ तो रंग से डर लगता है
पर रहता इन्तजार मनुहार का
अपनों का स्नेह पाने का
पर बहुत खालीपन है
किसी की याद कर के
इन्तजार रहा करता था
 रंगों की होली का
गुजिया पपड़ी खाने का
एक साथ मिल कर
वे दिन बीते कल की बात हो गए
जाने कहाँ खो गए
बस यादों में बस कर रह गए |
आशा




18 मार्च, 2019

होली( हाईकू )





१- रंग रंगीली
होली आ गई है
प्रेम से रंगों
२-फूलों की होली
खेली बनवारी ने
राधा के संग
३-विरही मन
रोज राह देखता
प्रियतम की
४-मलें गुलाल
प्यारे से मुख पर
है होली आज
५-उड़ा गुलाल
होली में बरसा रंग
जीना मुहाल
६-होली में होली
जल गई बुराई
विजयी सत्य
आशा