04 जुलाई, 2019

वर्षा



                                                      कहाँ तो बेहाल  परेशान थे
वर्षा के अभाव से
गर्मीं तक सहन 
न कर पा रहे थे
सभी कार्य सुबह शाम ही करते थे
जब वर्षा हुई
 अब परेशान हैं
अति वर्षा से
खस्ता हाल सडकों से
जगह जगह गड्ढे भरे हैं
चलना मुश्किल हो गया है
आए दिन
 दुर्घटनाओं का भय
 बना रहता है
जीना मुहाल हो गया है
पर अस्त व्यस्त
  सभी कार्यों का
सिलसिला फिर भी  जारी है  |
आशा

03 जुलाई, 2019

किताब



 
किताब में छिपी है
 गहरे अहसासों की छुअन  
हर पन्ना सजा है
 अनुभवों के मोतियों से
कभी सत्यपरक
 कभी सत्य के करीब कथानक
या पूरी काल्पनिक
ऊंची उड़ाने भरती हुई कहानियां
यदि एक भी पन्ना छूट जाए
बहुत बेचैनी होती है
उसमें हर शब्द है वेशकीमती  
सागर की सीपी से
 खोज कर लाया गया है
वही एहसास वही अनुभव
गूथे गए है शब्दों की माला में
पुस्तक के रूप में
यही तो उसे बना देती है
अनमोल कृति जिसे
 सहेज कर रखते हैं
 धरोहर की तरह  
एक पीढ़ी से आने वाली पीढ़ी तक
किताबें है ऐसे दस्तावेज
जिन में लिखी इवारतें  है
 इतिहास अतीत का
जब भी पन्ने पलटो
 अतीत की घटनाओं में 
ऐसे खो जाते हैं
मन ही नहीं होता
 हाथों से पुस्तक छोड़ने का
कभी अपने से तुलना करते हैं 
और बीती यादों में खो जाते हैं |

आशा



02 जुलाई, 2019

उपहार






प्रकृति में छिपे हैं
उपहार अनगिनत
जब चाहो जैसा चाहो
भेट देने के लिए
पर सच्चे मन से खोजो
तभी उन तक पहुँच पाओगे 
अरमां होना चाहिए
और दिल में उमंग 
छोटा सा भी फूल बहुत है
उपहार में देने के लिए
जरूरी नहीं उपहार  कीमती हो
पर मन का प्रभुत्व
 होना चाहिए देने के लिए
केवल दें लें से कुछ नहीं होता
दिल में जगह चाहिए
उसे स्वीकार करने के लिए
उपहार कोई सौदा नहीं
 जब चाहो बापिस  करदो
या बदल दो लेने वाले को
यह तो दिल से दिल की बात है
जो पूरी होना चाहिए |
                                               आशा

30 जून, 2019

भवसागर में अकेली



मै एकाकी नौका पर सवार
खेलती लहरों के साथ
उत्तंग लहरों का संग
बहुत आकृष्ट करता था
जब अवसर हाथ आया
रोक न पाई खुद को
अकेले ही चल दी
बिना किसी को साथ लिये
तट छूटा तब भय न लगा
पर मध्य में आते ही
बह चली लहरों के संग
जाने कितनी दूर निकल आई
कब किनारे पर पहुंचूंगी
सोच न पाई
लिये प्रश्नों का अम्बार मन में
ज्वार सा उठाने लगा
कभी निराशा हावी होती
 फिर आशा का होता आभास
न जाने कया होगा ?
आई थी अकेली
 जाना भी है अकेले
कोई नहीं है साथ
सोच किस बात का
जो होगा देखा जाएगा
कभी तो किनारा मिलेगा
भवसागर पार हो जाएगा |
आशा

27 जून, 2019

स्वागत वर्षा का


बूँदें बारिश की 
टपटप टपकतीं
  झरझर झरतीं
धरती तरवतर होती
गिले शिकवे भूल जाती |
हरा लिवास  पहन ललनाएं
कई रंग जीवन में भरतीं 
हाथों में मेंहदी रचातीं
मायके को याद करतीं |
सावन की घटाएं छाईं 
आसमान हुआ  स्याह
पंछियों ने गीत गाया
गुनगुनाने का जी चाहा   |
झिमिर झिमिर वृष्टि जल की
ताप सृष्टि का हरती
वर्षा की नन्हीं बूंदें 
 थिरकती नाचतीं  किशलयों पर|
वे हिलते डुलते मरमरी धुन करते
हो सराबोर जल 
  नृत्य में सहयोग करते
आनंद  चौगुना करते |
नहाती बच्चों की  टोली वर्षा में
 है  यही आनंद वर्षा में नहाने का
सृष्टि के सान्निध्य का |