05 मार्च, 2020

होली के रंग





होली के रंग
 फीके नहीं लगते 
प्रिया के संग 

रंग रसिया 
तुमसे ही मैं हारी 
श्याम बिहारी 

सरस भंग 
चढ़ा नशा इतना 
भूल न पाया 

सनम तुम 
आज न आए तो क्या 
भूल न जाना 

होली आई रे
खेलों रंग वासंती 
अवीर संग

                                                                            आशा

03 मार्च, 2020

आँगन


बदले समय के  साथ में  
बढ़ती जनसंख्या के भार से
बड़े मकानों का चलन न रहा  
रहनसहन का ढंग बदला |
पहले बड़े मकान होते थे
उनमें आँगन होते थे अवश्य
दोपहर में चारपाई डाल महिलाएं
 बुनाई सिलाई करतीं थीं
 धूप का आनंद लेतीं थीं |
अचार चटनी मुरब्बे में धूप लगातीं
गर्मीं में ऊनी कपडे सुखाना 
सम्हाल कर रखना नहीं भूलतीं थीं
आँगन  ही  थी  कर्मस्थली उनकी |
बच्चों के  खेल का मैदान भी वही था  
 रात में चन्दा मांमा को देख कर  खुश होने  को कैसे भूलें
तारों  के संग बातें करना
 मां से  कहानी सुनना    छूटा कभी |
जब कोई तारा टूटता
 मांगी   मुराद पूरी करता
हाथ जोड़    कभी  मन की  मुराद  माँगते
या चाँद पकड़ने के लिए बहुत बेचैन रहते  |
मां थाली में जल भर कर 
चान्द्रमा के   अक्स को  दिखा कर हमें बहलातीं 
फिर थपकी दे कर हमें सुलातीं | 
आज  शहरों के बच्चे रात में
बाहर निकलने से भयाक्रांत होते है
शायद उन्हें यही भय रहता है
 कहीं चाँद उन पर ना  गिर जाए |
कारण समझने में देर न लगी
बढ़ती आबादी ने आँगन सुख से दूर किया है
छोटे मकानों में आँगन की सुविधा कहाँ  
  यादें भर शेष रह गईं है घर के बीच आँगन की | 
आशा 

अभिसारिका




 पलक पसारे बैठी है
 वह तेरे इन्तजार में
हर आहट पर उसे लगता है
कोई और नहीं है  तेरे सिवाय 
हलकी सी दस्तक भी
दिल के  दरवाजे पर जब होती 
 वह बड़ी आशा से देखती है
 तू ही आया है 
मन में विश्वास जगा है
चुना एक फूल गुलाब का
 प्रेम के इजहार के लिए
      काँटों से भय नहीं होता
स्वप्न में लाल  गुलाब देख
 अजब सा सुरूर आया है 
वादे वफ़ा  का नशा
 इस हद तक चढ़ा है कि
उसे पाने कि कोशिश  तमाम हुई है
चर्चे गली गली में सरेआम हो गए
पर उसे इससे कोई आपत्ती नहीं
मन को दिलासा देती है
तेरी महक से पहचान लेती है
आशा

01 मार्च, 2020

अब क्या सोचना


जीवन बढ़ता जाता 
 कन्टकीर्ण मार्ग पर
 अकेले चलने में
 दुःख न होता  फिर भी |
क्यूँ कि आदत सी
 हो गई  अब तो
  सब कुछ  झेलने की
 अकेले  ही  रहने  की  |
कोई नहीं अपना
 सभी गैर लगते हैं
एक निगाह प्यार भरी
 देखने को तरसते हैं |
कुछ  कहने सुनाने  का 
अर्थ नहीं किसी से
ना ही किसी को  हमदर्दी 
मेरे मन को लगी ठेस से |
तब क्यूँ अपना समय
 व्यर्थ  बर्बाब करूँ
नयनों से मोती से 
  अश्कों को  बहाऊँ  |
गिरते पड़ते सम्हलते लक्ष्य  तक
 पहुँच ही जाऊंगी
अभी तो साहस शेष है
 दुःख दर्द को  सहन कर पाउंगी  |
यदि कोई अपना हो तब
 दर्द भी बट जाता है
अपने मन की बात कहने से 
मन हल्का हो जाता है |
 अब कंटक कम  चुभते हैं
 घाव उतने  गहरे नहीं उतरते  
 जितना गैरों का कटु भाषण
 मन विदीर्ण  करता  |
आशा

 
  

28 फ़रवरी, 2020

इंतज़ार


हरे पीले रंग सजाए थाली में
 श्याम न आए आज अभी तक
 रहा इन्तजार उनका दिन और रात
निगाहें टिकी रहीं दरवाजे पर |
हुई उदास छोड़ी आस उनके आने की
पर आशा  रही शेष  मन के किसी कौने में
 शाम तक उनके आने की
अपना वादा निभाने की |
टेसू के फूल मंगा  रंग बनाया
गुलाल अवीर भी नहीं भूली
कान्हा का झूला  खूब सजाया
फूलों की होली की की तैयारी |
 कहीं कोई कमी न रह जाए
गुजिया पपड़ी और मिठाई
दही बड़े से काम चलाया
नमकीन बाजार से मंगाया |
 उनके न आने से उदासी बढ़ने लगी   
सभी तैयारी फीकी लगने लगी
याद हमारी  शायद उन्हें खीच लाएगी
 मन के किसी कौने से आवाज उठने लगी |
हलके से हुई आहट पट खुलने की
जल्दी से खोला दरवाजा
पा कर  समक्ष उन को
प्रसन्नता का रहा न ठिकाना |
बड़े उत्साह से जुटी शेष काम में
होली का रंग हुआ दो गुना
बिना उनके घर घर नहीं लगता था
अब त्यौहार त्योहार सा लगने लगा  |
आशा