13 जुलाई, 2020

आराधना





हुई क्यूँ देर मुझे?
इस ग्रंथि को सुलझाने में 
किसे पूजूं किससे फरियाद करूं
है  ईश्वर एक  पर नाम अनेक |
मुझे बस इतना ही सोचना है
कौनसा नाम मुझे आकृष्ट करता है
उस पर अपनी सहमती जताना है 
 उस पर ही सारी श्रद्धा रखनी है |
हर बार किसी नाम विशेष पर
ध्यान केन्द्रित करती हूँ
जब मन नहीं मानता 
संतुष्टि नहीं होती  किसे नित ध्याऊँ |
आराधना प्रभू की जीवन में
बहुत महत्व रखती है
कठिन से कठिन कार्य
मिनटों में दूर कर देती है  |
सच्चे मन से मांगी गई मुराद  
 तभी पूर्ण हो पाती है
 उसके प्रति समर्पण और आस्था  
हो जब  पूर्ण रूप से |
जब हो आराधना उसकी मन से
श्रद्धा हो प्रभु के उसी  एक नाम में
सभी फलों की प्राप्ति हो जाती है
जीवन को   सफल कर जाती है|
आशा

12 जुलाई, 2020

हुस्न की बिजली

 
                                    बैठे रहिये दिल को थाम कर
कोई और नहीं है वह है वही
 जो हुस्न का बहता दरिया था कभी  
 हुस्न की बिजली दिलों पर
 फिर से  गिराने आ गया |
मन में था एक शगल जिसे
वह भूल नहीं   पाया था  
इधर उधर भटकता रहा
 पर राह न मिल पाई  
उसी लीक पर चल दिया
जिस पर पहले चला था |
बादल से बादल टकराए
चमकी  बिजली आसमान में
 लो हुस्न की बिजली दिलों पर
वह फिर से गिराने  आ गया |

आशा

11 जुलाई, 2020

अफवाहें





हर समय बाजार गर्म रहता   
अफवाओं के प्रसार में  
प्रत्येक व्यक्ति आनंद लेता  
उनके प्रचार प्रसार में |
निंदा रस में जो आनंद आता है
उससे बंचित क्यूँ रहें  ?
और कुछ नहीं तो हंसने  का
 अवसर तो मिल जाता है |
जब भी अवसर मिल जाए
बहुत आनंद आता है सबको  निंदा  रस में
चटकारे ले कर अफवाओं को
 बेल की तरह  परवान चढाने में  |
झूटी सच्ची बातों को बढ़ चढ़ कर फैलाने में
यदि यह भी हांसिल ना हो पाया
 तो कोई बात नहीं कुछ समय तो गुजरता है
लोगों को सोचने का अवसर तो  मिलता है
 नया शगूफा छोड़ने का  |
आशा

09 जुलाई, 2020

पर्यावरण संरक्षण


                                         हरियाली है आवश्यक
 पर्यावरण बचाने के लिए
 शुद्ध वायु का महत्व वही जानता
  जिसे घुटन भरे वातावरण में जीना होता |
हरे भरे वृक्षों के नीचे खेलना
 कितना सुखकर होता
 बालक मन ही पहचानता
गर्मीं में पंथी को छाया देते वृक्ष |
बहुत बेरहमीं से अनवरत  उन्हें काटना
 ईंधन की तरह उनका  अती का  उपयोग 
 इमारत बनाने में बल्लियों का उपयोग हो या
 लकड़ी का सामान बनाने को होती आवश्यक  लकड़ी |
 निजी स्वार्थ में लिए अत्यधिक दोहन से
प्राकृतिक संतुलन को नष्ट किया है मानव ने
नदी किनारे से काटे  गए वृक्षों  से होती तवाही
 वर्षा से किनारे कटते बहा  ले जाते मिट्टी को |
किनारों की  मिट्टी बंधी नहीं रह पाती
 पेड़ों की जड़ों  के ना होने से
 बहती नदी का प्रवाह धीमा होता
नदियां उथली होती जातीं मिट्टी के जमने से |
जल में मिलती  गंदगी नालों की
बड़े  कारखानों का अपशिष्ट भी वहीं मिलाया जाता  
जल दूषित होने से पर्यावरण कैसे स्वच्छ रह पाएगा 
तभी कहा जाता  वृक्ष लगाओ पर्यावरण बचाओ |
निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर सोचो
एक तो बढ़ती जनसंख्या तले देश दबा  है
 दूसरा निजी स्वार्थों के लिए
 अति का दोहन संसाधनों का हुआ है |
प्रकृति कब तक साथ देगी
 वह भी तो विद्रोह करेगी   
तभी तो यह बुरा  हाल हुआ है पर्यावरण का
है मनुष्य ही जिम्मेदार इस स्थिती  तक पहुँचने का |
मानव की लापरवाही से कैसे बचा जाए
प्रकृति के अनावश्यक दोहन से कैसे उबरा जाए
किस  तरह सामंजस्य स्थापित हो दौनों में
हो गया है अब आवश्यक इस पर विचार हो |
आशा



   


08 जुलाई, 2020

गरीबी एक अभिशाप






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है गरीबी एक अभिशाप
जब से जन्म लिया
यही अभिशाप सहन किया
मूलभूत आवश्यकताओं के लिए
भूख शांत करने के लिए
पैसों का जुगाड़ करने के लिए
मां कितनी जद्दोजहद करती थी
सुबह से शाम तक
यहाँ वहां भटकती थी
खुद भूखी  रह कर
 बच्चों का पेट भरती थी
कभी कभी दिन भर
 एक रोटी भी नसीब न होती थी
कडा दिल कर
बच्ची को  गोदी में ले कर  
बाहर काम करने निकली
पहले तो दुत्कार मिली
यह काम तुम्हारे बस का नहीं
अभी आराम करो
काम बहुत से मिल जाएंगे
पर बड़ी  मिन्नतों के बाद 
काम मिल पाया
सुबह से शाम तक हाथ
काम करते नहीं थकते
पर गरीबी ने मुंह फाड़ा
कम न हुई बढ़ती गई
कहावत सही निकली
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया
पैसों की आवक बढ़ी
अब बुद्धि का हुआ ह्रास
बाहरी दिखावे नें  हाथ बढाया
कर के उधारी
की आवश्यकताएं पूरी
वह भी उधार चंद हुई
फिर आए दिन की उधारी रंग लाई
मांगने वाले घर तक आ पहुंचे
भरे समाज में इज्जत नीलाम हुई
झूट के चर्चे सरेआम हुए
सारा सुकून खोगया
क्या ही अच्छा होता
यदि झूट का दामन न  थामा होता
कठिन समय तो गुजर जाता
पर शर्मसार तो न होना पड़ता |
आशा