बहार छाई है महफिल में
रात भर महफिल सजी है
तुम्हारी कमी खल रही है
बीते पल बरसों से लग रहे हैं
यह दूरी असहनीय लग रही है
पर क्या करूँ मेरे बस में कुछ नहीं है
जो तुमने चाहा वही तो होता आया है
मेरी सलाह तक नहीं चाहिए तुम्हें
फिर मैं ही क्यूँ दीवाना हुआ हूँ ?
तुम्हारे पीछे भाग रहा हूँ
है ऐसा क्या तुममें
आज तक जान नहीं पाया हूँ |
कभी सोच कर देखना
क्या विशेष है तुम में
मुझे भी तो पता चले
जो तुममें है मुझमें नहीं |
क्या मेरी गजल में जान नहीं
या तुम्हें मेरी लिखाई पसंद नहीं
क्यों चाहती हो मेरा साथ नहीं
या मेरे मन में तुम्हारे लिए लगाव नहीं |
कभी मन की बात कह देतीं
तुमने मुझे बताया होता
तब मन को ठेस नहीं लगती
रात भर शमा मेरे दिल सी जलती रहती
सूनी सूनी महफिल है तुम्हारे बिना |