27 सितंबर, 2020

सूनी सूनी महफिल है तुम्हारे बिना

बहार छाई है महफिल में

रात भर महफिल सजी है

तुम्हारी कमी खल रही है

बीते पल बरसों से लग रहे हैं

यह  दूरी  असहनीय लग रही है

पर क्या करूँ मेरे बस में कुछ नहीं है

जो तुमने चाहा वही तो होता आया है

मेरी सलाह तक नहीं चाहिए तुम्हें

फिर मैं ही क्यूँ दीवाना हुआ हूँ ?

तुम्हारे पीछे भाग रहा हूँ

है ऐसा क्या तुममें

आज तक जान नहीं पाया हूँ |

कभी सोच कर देखना

 क्या विशेष है तुम में

मुझे भी तो पता चले

जो तुममें है मुझमें नहीं |

क्या मेरी गजल में जान नहीं

या तुम्हें मेरी लिखाई पसंद नहीं

क्यों चाहती हो मेरा साथ नहीं

या मेरे मन में तुम्हारे लिए  लगाव नहीं |

कभी मन की बात कह देतीं

तुमने  मुझे बताया होता

तब मन को ठेस नहीं लगती

रात भर शमा मेरे दिल सी  जलती रहती 

सूनी सूनी महफिल है तुम्हारे बिना |

 

  

         आशा 

  

26 सितंबर, 2020

मेरी बेटी



मेरी बेटी मन मोहनी

बहुत प्यारी  सबकी  दुलारी

मुझे बहुत भाग्य से मिली है

उस जैसा कोई गुणी नहीं है |

है हर कार्य में निपुण

पढ़ने में सबसे आगे

कोई कार्य नहीं छूटा उससे

सब में है सबसे आगे |

हूँ बहुत भाग्यशाली

मुझे उस जैसी बेटी मिली है

मैंने  जाने किस जन्म में

 कोई पुन्य किये थे जो उसे पाया |

लोग तो जलते हैंमेरा भाग्य  देख कर

उस गुणों की टोकरी को

चाहते हैं वह उमके घर की रौनक बने

उनके घर को रौशन करे |

आज बेटी दिवस मना रहे हैं  

दुआ कर रहे हैं काश ऐसी  बेटी मिले

 हो  ऐसी गुण सम्पन जो

 दोनो कुलों का  नाम रौशन  करे |

                                                   आशा   

 

 

 

23 सितंबर, 2020

विश्व शान्ति दिवस

 

 

 अधिकाँश विश्व जूझ  रहा

समस्याओं के जंजाल से

युद्ध की विभीषिका से

कोरोना की मार ने भी

नहीं बक्शा उसे

कहाँ शान्ति खोजे

किससे उसे मांगे  

चारो और त्राहित्राही मची है

परमाणु  बम परीक्षण की तैयारी है 

हर और अशांति फैली है

समझ में नहीं आता की

 कैसे इससे बच निकलें

शान्ति की खोज अभी  जारी है

तभी तो विश्व शान्ति दिवस

मनाने की तैयारी है

शायद कोई सूत्र हाथ लग जाए

शान्ति कायम करने का और

 शान्ति से जीवन व्यापन हो

सारे विश्व के रहवासियों का

फिर धूमधाम से मने यह दिवस

हर वर्ष की तरह |

21 सितंबर, 2020

घर



 

 

घर तो घर ही होता है

देश में  हो या परदेश में

जहां चार जने अपने होते है

वहीं स्वर्ग हो जाता है |

एक दूसरे का सुख दुःख

अलग नहीं होता

आपस में बांट लिया जाता

ऐसा प्यार कहीं नहीं मिल पाता|

चार दीवारों से मकान तो बन जाता  

पर घर नहीं बन पाता

केवल एक छत के नीचे रहने से

पर मनों के ना मिलने से वह सराय  हो जाता |

सच्चा घर तो वही है जहां

अपनापन लिए हुए सब उलझनों का

समस्याओं का निदान हो  जाता है

दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता है |

सब मिल बाँट कर  भोजन कर लेते है

समस्याओं के हल खोज लेते हैं

मेरा तेरा नहीं करते वही अपने कहलाते

प्यार के दो बोल के लिए नहीं तरसाते |

घर को स्वर्ग कहा जाता है

यूँ ही नहीं उसमें है योगदान

घर के रहवासियों का भी 

वही मकान  को घर में बदल देते हैं |

आशा