26 जनवरी, 2021

रंग मौसमी

 

03 फ़रवरी, 2017

रंग मौसमी




हरी भरी धरती पर
पीले पुष्पों से लदे वृक्ष
जल में से झांकती 
उनकी छाया
हिलती डुलती बेचैन दीखती
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती
तभी पत्थर सट कर उससे
यह कहते नजर आते
हमें कम न आंको
हम भी तुम्हारे साथ हैं
आगया है वासंती मौसम
उस के रंग में सभी रंग गए
फिर हम ही क्यूं पीछे रह जाते 
हम भी रंगे तुम्हारे रंग में
जब पर्वत तक न रहे अछूते
दूर से धानी दीखते
फिर हम कैसे पीछे रह जाते |
आशा

25 जनवरी, 2021

ओ प्रवासी पक्षी


 

ओ प्रवासी पक्षी

 हम थके हारे राह देखते

हुए क्लांत से

तुम क्यूँ न आए ?

हर समय  आहट तुम्हारी

पंख फैला कर उड़ने की 

किस लिए बेचैनी  होती

मन में हमारे |

क्या तुम राह में भटक गए

या किसी महामारी से

भयभीत हुए पथ भूले

तुम समय पर न आए |

न जाने क्यूँ हमारे नयन तरसे

 तुम्हारे दर्शन को

हम भूले तुम्हें भी तो कई कार्य

संपन्न करने होते हैं | 

तुम्हारी अपने साथियों  के प्रति

अपने किये वादों को

 निभाना पड़ता है

शयद तभी तुम न आए |

समय पर तुम्हारे आने की

हमारे साथ समय बिताने की

आदत सी हो गई है

पर तुम भूले |  

ओ प्रवासी  हमारी भी इच्छा का

कुछ तो ख्याल करो

हमें यूँ न अधर में छोडो आजाओ

 अब इंतज़ार नहीं होता |

आशा 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

24 जनवरी, 2021

हाईकू

 


१-मन उदास
हुए नम नयन
यह देखते
२-नयन वर्षा
मन को नहीं चैन
यह हाल है
३- मन से त्रस्त
वह अनमनी है
प्रसन्न नहीं
४- क्यूँ दिया नहीं
सम्मान उसको ही
नाइंसाफी है
५-मन न मिला
बेचैन हो गया है
लगाव नहीं
आशा
Rakesh Pathak and Radhika Tripathi

23 जनवरी, 2021

मन में संग्राम छिड़ा है


मन में संग्राम छिड़ा है

समाज में विघटन हुआ है

पर कारण समझ ना आया

समान विचार धारा के लोगों में

आपस में आतंरिक मन मुटाव क्यूँ ?

जब भी  बहस होती है

निजी स्वार्थ आपस में टकराते है

यही कारण समझ आता है

आतंरिक कलह का |

पर अक्सर ऐसा भी नहीं होता

कोई कारण नहीं होता बहसबाजी का

यह तो निश्चित होता है

व्यर्थ बहस से कोई हल नहीं निकलता |

पर तिल का ताड़ बनाने में

 जो मजा आता है

एक नया समूह

 विधटन कारियों का

बन ही जाता है |

यही आदत घर से जन्मती है

 पहले घर में जोराजोरी

फिर उसी तरकीब को समाज में

नया रंग दिया जाता है |

अब दो हिस्सों में बट जाने से

नया बखेड़ा प्रारम्भ हो जाता है

मन में तटस्थ भाव नहीं आता

मन  के भाव हुए जग जाहिर |

विघटित समाज को मुंह चिढाते

कमजोरियों से विरोधी  लाभ लेते

जो भी एकता की बात करता

हंसी  का पात्र बन जाता |

 

आशा

 



  

शिक्षा एक विचार

 

03 सितंबर, 2012

शिक्षा एक विचार



व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा का बहुत महत्व है |शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो अनवरत चलती रहती है जन्म से मृत्यु तक |जन्म से ही शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है |शिशु अवस्था में माता बच्चे की पहली गुरु होती है |यही कारण है कि संस्कार जो मिलते हैं मा से ही मिलते हैं |जैसे जैसे वय  बढती है  बच्चे पर और लोगों का प्रभाव पडने लगता है |आसपास का वातावरण भी उसके विकास में एक महत्वपूर्ण  कारक होता है |
स्कूल जाने पर शिक्षक उसका गुरू होता है |बच्चों में अंधानुकरण की प्रवृत्ति होती है
जो उन्हें सब से अच्छा लगता है वे उसी का अनुकरण करते हैं और उस जैसा बनना चाहते हैं |
यही कारण है कि बच्चा अपने शिक्षक का कहा बहुत जल्दी  मानता है |
      जब वह कॉलेज में पहुंचता है तब मित्रों से बहुत प्रभावित होता है और उनकी संगत से बहुत कुछ सीखता है |इसी लिए तो कहते हैं :-
         पानी पीजे छान कर ,मित्रता कीजे जान कर 
शिक्षा में यात्रा का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान है |यात्रा करने से भी कुछ कम सीखने को नहीं मिलता |कई लोगों के मिलने जुलने से ,विचारों के आदान प्रदान से ,कई संस्कृतियों को देखने से ,प्रकृति के सानिध्य से बहुत कुछ सीखने को मिलता है  |  केवल वैज्ञानिक सोच ,अनुकरण ,बौद्धिक विकास ही केवल शिक्षा नहीं है |सच्ची शिक्षा है अपने आप को जानना सुकरात ने कहा था
कि सही शिक्षा है know thyself “ चाहे जितना पढ़ा लिखा पर यदि वह अपने आपको  न जान् पाए तो सारी शिक्षा व्यर्थ है |
यही कारण है कि शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बच्चे में छिपे
सद् गुणों को  समझे और उनके विकास में सहायक हो |वह बालक को,उसके गुणों को , सीपी में छिपे मोती को बाहर निकाले और तराशे ऐसा कि बालक जान पाए कि आज के दौर में वह कहाँ खडा है और उसका सम्पूर्ण विकास कैसे  हो सकता है |
आशा

22 जनवरी, 2021

बहुत दूर से लिए गए कश्मीर घूमने जाते समय के दृश्य

(चश्में शाही )


(फूलों से सजा बागीचे का रंगीन समा )
                                                                    (ड़लझील में हाउस बोट)

 

दूसरे दिन होटल की खिड़की से झांक कर देखे झील के दृश्य बहुत सुहाना मौसम था |इतने में बैन वाला हमें पिकअप करने आ गया |सारे दिन घूमें शाम को चार  चिनार बोट में बैठ कर गए और छोटे से बागीचे में घूमें |फिर तीसरे दिन कश्मीर के बाहर केसर के खेत देखे |वहां सहकारी बाजार से केशर भी खरीदी |सच में बहुत आनंद आया जन्नत के दृश्य  दर्ख कर  |लग रहा था कि काश और अवकाश होता |या ये मनोभावन पल मन के कैनवास में  उकेर लिए जाते | 

आशा













































दृध्य  डल  का होटल से