26 मई, 2021

हाइकु

 

१-जीवन गीत
मधुर है संगीत
मन भावन
२-उलझा मन
गहन विचारों में
सुख दुःख में
३-प्यार नहीं है
जीवन का अंग है
है आवश्यक
४-सूनी सड़कें
लौक डाउन हुआ
मन दुखी है

५-धर्म का नाम
केवल देश प्रेम
यही है नाम

६-कोरोना फैला
देश भर में जहां
मातम हुआ

आशा

शाम ढलने लगी है


 

 शाम ढलने लगी है 

सूरज चला  अस्ताचल को 

व्योम में धुधलका हुआ है 

रात्रि का इंतज़ार है |

हूँ प्रसन्न उस इंतज़ार से

जब नींद का आगमन होगा

 नींद में विश्राम मिलेगा

बहुत राह देखी सुख निंदिया की |

अब कोई चिंता नहीं है

स्वप्न  मधुर होंगे जब आएँगे

खुद की कल्पना होगी सजग

मन मुदित होगा जब रानी बनूंगी |

अपने आप  ताना बाना बुनूंगी मैं 

  लेखक और सूत्रधार बन कर

 रोमांचक दृश्य जन्म लेगा उसका 

रंगीन समा हो जाएगा  स्वप्न  में |

रहां  अरमां मेरा  कि

 प्रमुख  नायिका की भूमिका हो मेरी   

सारे पात्र घूमें मेरे इर्दगिर्द

 मेरा ही  महिमा मंडन हो |

स्वप्न में यह आकांक्षा  भी

 पूर्ण हो मेरे मन की

मैं सोजाऊं  सुख निंदिया में

 खो जाऊँ सपनों में

 

आशा


 

 

24 मई, 2021

छाई गरीबी

 

 




छाई   गरीबी

कैसे सही जाएगी

 होगा अब क्या 

कितना सोचा जाए

केवल सोच

कुछ कर न पाए

उठाने होंगे 

 आवश्यक कदम

सचमुच में  

यदि एक  भवन  हो

सर छिपाने   

रोटी खाने  के लिए

 सोच ही नहीं

कल्पना सतही हो

क्या लाभ होगा

कुछ भी नहीं  

वर्तमान में इनका

कुछ न  लाभ  

रोजी  है आवश्यक

हुए सक्रीय  

कुछ तो राहत हो  

 मीठा हो फल    

दूर हो दुःख दर्द 

न हो अधीर 

हो मन को  सुकून |

आशा 


23 मई, 2021

मन चंचल किसी का नहीं होता


 
हर समय

थिरकते कदम

झूमते रहे  

देखा न अवसर  

उचित नहीं

कभी सोचना नहीं

अन्यों  पर

सुख दुःख उनके  

बांटना  नहीं  

क्या बीतेगी उन पे

सोचा न कभी

अपना स्वार्थ देखो  

किससे जाना

है कितना कठिन

तुम्हें जानना  

 उसको पहचानो  

मन चंचल

किसी का नहीं होता

 पूरे समय  

 खुद व्यस्त रहता

सुख या  दुःख 

अकेले ही सहता

 है राज यही

मन की प्रसन्नता

 जन्म से नहीं

 भाग्य से बढ़ कर

कुछ भी  नहीं

हो  हाथ सर पर

प्रभू की देन  

 थिरकेंगे कदम

हर  बात पे  |

आशा  

जब समुद्र मंथन हुआ


जब हुआ समुद्र मंथन
महादेव ने
हलाहल पान किया
दी जगह विष को
अपने कंठ में |
निकले चौदह रत्न
और बहुत कुछ
अमृत से भरा
घट भी निकला
दानवों ने जिसे
झपटना चाहा |
मोहिनी एकादशी को
विष्णु ने
रूप धरा मोहिनी
घट अमृत को
छीना दानवों से
सब देवों को
अमृत पान कराया |
दानवों से
उन्हें बचाया
देवों को अजर
अमर बनाया |
आशा
सीमा वर्णिका and 4 others
9 Comments
Like
Comment

9 Comments

All Comments