5सीमा वर्णिका and 4 others
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सूरज चला अस्ताचल को
व्योम में धुधलका हुआ है
रात्रि का इंतज़ार है |
हूँ प्रसन्न उस इंतज़ार से
जब नींद का आगमन होगा
नींद में विश्राम मिलेगा
बहुत राह देखी सुख निंदिया की |
अब कोई चिंता नहीं है
स्वप्न मधुर होंगे जब आएँगे
खुद की कल्पना होगी सजग
मन मुदित होगा जब रानी बनूंगी |
अपने आप ताना बाना बुनूंगी मैं
लेखक और सूत्रधार बन कर
रोमांचक दृश्य जन्म लेगा उसका
रंगीन समा हो जाएगा स्वप्न में |
रहां अरमां मेरा कि
प्रमुख नायिका की भूमिका हो मेरी
सारे पात्र घूमें मेरे इर्दगिर्द
मेरा ही महिमा मंडन हो |
स्वप्न में यह आकांक्षा भी
पूर्ण हो मेरे मन की
मैं सोजाऊं सुख निंदिया में
खो जाऊँ सपनों में
आशा
छाई गरीबी
कैसे सही जाएगी
होगा अब क्या
कितना सोचा जाए
केवल सोच
कुछ कर न पाए
उठाने होंगे
आवश्यक कदम
सचमुच में
यदि एक भवन हो
सर छिपाने
रोटी खाने के लिए
सोच ही नहीं
कल्पना सतही हो
क्या लाभ होगा
कुछ भी नहीं
वर्तमान में इनका
कुछ न लाभ
रोजी है आवश्यक
हुए सक्रीय
कुछ तो राहत हो
मीठा हो फल
दूर हो दुःख दर्द
न हो अधीर
हो मन को सुकून |
आशा
थिरकते कदम
झूमते रहे
देखा न अवसर
उचित नहीं
कभी सोचना नहीं
अन्यों पर
सुख दुःख उनके
बांटना नहीं
क्या बीतेगी उन पे
सोचा न कभी
अपना स्वार्थ देखो
किससे जाना
है कितना कठिन
तुम्हें जानना
उसको पहचानो
मन चंचल
किसी का नहीं होता
पूरे समय
खुद व्यस्त रहता
सुख या दुःख
अकेले ही सहता
है राज यही
मन की प्रसन्नता
जन्म से नहीं
भाग्य से बढ़ कर
कुछ भी नहीं
हो हाथ सर पर
प्रभू की देन
थिरकेंगे कदम
हर बात पे |
आशा