१-उलझा मन
आज का परिवेश
देखता रहा
२-किसने कहा
वहां न जाना होगा
हर हाल में
३-बीता नहीं है
कोविद काल हुआ
भयावह है
४-हैं वन्दनीय
प्रयत्न हैं तुम्हारे
१-उलझा मन
आज का परिवेश
देखता रहा
२-किसने कहा
वहां न जाना होगा
हर हाल में
३-बीता नहीं है
कोविद काल हुआ
भयावह है
४-हैं वन्दनीय
प्रयत्न हैं तुम्हारे
ना लीजिये परीक्षा मेरे सब्र की
आपने मुझे अभी परखा नहीं है
जब मेरे बारे में सोचेंगे मुझे समझेंगे
खुद ही जान जाएंगे मैं क्या हूँ |
यह तो अपना अपना नजरिया है
मंतव्य स्पष्ट करे न करे
कोई जोर जबरदस्ती नहीं है
खुद का विचार भी हो अन्यों जेसा |
मुझे सुहाता स्पष्ट दिया गया मत
किसी के विचारों से प्रेरित न हो
स्वनिर्णय पर अटल रहना चाहती
अन्यों से प्रभावित हो अपने विचार नहीं देती |
अपना व्यक्तित्व मुझे प्रिय है
स्वतंत्र हैं विचार मेरे किसी से प्रभावित नहीं
जब अन्य कोई ध्यान देता मेरे विचारों पर
खुश होता मेरे सोच के दायरों पर |
आशा
आशा
बढ़ेगी उमस बेचैनी होगी
यदि मौसम विभाग सफल न हुआ
आने वाले मौसम की
जानकारी देने में |
अब तक न आए बदरा
काले कजराते जल से भरे
तेज वायु बेग उड़ा ले चला
दूसरी दिशा में उन्हें
|
इस बार भी यदि
वर्षा कम होगी
लोग तरसेंगे भटकेंगे यहाँ वहां
कैसे कमी सहन करेंगे
खेती सूख जाएंगी
दाम बढ़ेंगे दलहन के |
हे परम पिता परमात्मा
कैसा है न्याय तुम्हारा
क्या तुम्हें दया
नहीं आती तनिक भी
आम आदमियों की
जल की आवश्यकताओं पर
|
प्रभु तुम क्यूँ ध्यान
रखोगे
इतनी छोटी बातों का
तुम्हें तो समय नहीं
होगा ना
क्यूँ कि बड़ी
समस्याओं में उलझे हो |
बाढ़ तूफान से कैसे
हो निपटारा
शायद हो इसी सोच में व्यस्त
कभी आम आदमी पर भी
रहमोंकरम करो |
तभी याद तुम्हारी आएगी उनको
हाथ जोड़ कर साष्टांग
झुक कर तुम्हें प्रणाम करेंगे
तुम्हारे गुणगान से
पीछे न हटेंगे |
आशा
तुम्हारा प्यार
दुलार कमतर
किसी से हो
मैं सह नहीं पाती
तुमसे आगे
निकल जाए कोई
कहर ढाए
मुझे स्वीकार
नहीं
है मेरा प्यार
बहुत अनमोल
किसी से बाटा जाए
सहन नहीं
हूँ बहुत कंजूस
तुम्हें भान है
है मेरी उलझन
तुम जान लो
मुझे पहचान लो |
आशा
जिन्दगी चली ट्रेन सी
पटरियों पर जैसे ट्रेन चली
कभी चलती सरपट
तो कभी रुक जाती स्टेशन पर |
चाय वाले की आवाज सुनाई देती
कभी आज की ताजा खबर
सुनाने को बेचैन अखवार वाले का
स्वर मुखर होता |
तभी धीरे से एक स्टेशन से
अगले पर जाने को
खिसकती ट्रेन सी जिन्दगी
गति पकड़ती |
स्टेशन से आगे जाने के लिए
कुछ कर्तव्य निभाने के लिए
जहां तक संभव हो कोई कार्य अधूरा
नहीं छोड़ना चाहती जिन्दगी |
एक समय ऐसा आता
अंतिम स्टेशन पर पहुँच कर
थम जाती जिन्दगी रुकी ट्रेन की तरह
है कमाल की जिन्दगी |
कितने भी व्यवधान आएं
आगे बढ़ती जाती
गंतव्य तक पहुँच कर ही
दम लेती जिन्दगी |
आशा
समय ने बनाया दास
हर सुविधा के साधन
का
आदि हो गए है उन सब के
जीना हुआ मुहाल उनके
बिना |
एक दिन यदि बिजली चली जाए
हर काम अटक जाता है
पंखा बंद होते ही
नींद बैरन हो जाती
है |
सब बिजली के उपकरण
जमाए बैठे अधिकार
घर के हर कार्य पर
बिना बिजली कुछ भी संभव
नहीं है |
यही आश्रित होने की
आदत
बहुत दुःख देती है
सामान्य जीवन जी नहीं पाते
आधुनिक संसाधनों के
बिना |
आशा
कभी गुनगुनाता
गाता नाचता
मगन होता
आनेवाले कल का
आगाज कर
अपनी दशा जता
स्वागत कर
दुगुनी प्रसन्नता
बाहों में भर
बल्लियों उछलता
है प्रतिक्रया
कोई खेल नहीं है
बेचैनी की अस्थिर
दशा का कोई
मेल नहीं है
है छोटी सी झलक
मन क्या सोचे
स्पष्ट होने लगा है
मन मयूर
नृत्य की प्रगति में
बढा के थिरकन
खुशी में धड़कन
वृद्धि हुई है |
आशा