03 अक्तूबर, 2021

काला कागा


 

वर्ष भर तो याद न किया
कागा अब क्यों याद आया
पहले जब भी मुडेर पर बैठते
बच्चे तक तुम्हें उड़ा देते थे
पर अब बहुत आदर सत्कार से
बुलाकर सत्कार किया जाता तुम्हारा
ऐसा क्यों किस लिए ?
क्या तुम में भी पितर बसते हैं
या यह मेरी केवल कल्पना है |
तुम भी काले कोयल भी काली
पर स्वर तुम्हारे कर्ण कटु होते
कोयल मीठी तान सूनाती
अमराई में जब गाने गाती
|उससे तुम्हारा मन भोला भाला
तुम्हारा घरोंदा ही उसके
बच्चों का पालना होता
कोई उसकी चालाकी जान न पाता
है ऐसा क्या तुममें विशेष
मैं आज तक जान न पाई
कागा कोयल एक् से
अंतर ना कर पाई |
आशा

02 अक्तूबर, 2021

किससे अपनी बातें कहूं

 

                  करवट बदल कर रातें गुजारी

पर  नींद न आई मैं क्या करूं

किससे  अपनी बातें कहूं

अपना मन हल्का करूं |

दिन तो व्यस्त रहने में गुजरता है

पर रातें होतीं पहाड़ जैसी लंबी

 आत्म विश्लेषण ही  हो पाता  

पर संतुष्टि को छू तक नहीं पाता |

 सही गलत पर विश्लेषण की

मोहर लगना अभी रहा शेष

ऐसा  न्यायाधीश न मिला

जो मोहर लगा पाता |

कम से कम रातों में नींद तो आती

स्वप्नों की दुनिया में खो जाती

भोर की प्रथम किरण जब मुंह चूमती

कुछ देर और  सोने का मन होता

नभ में पक्षियों की उड़ान और कलरव  

जागने को  बाध्य करते |

रात्री जागरण का कारण भूल

रात में चाँद  तारे गिनना छोड़  

मैं उठ जाती और सुबह से शाम तक

दैनिक कार्यों में व्यस्त हो हाती हूँ |


आशा   




01 अक्तूबर, 2021

जीने में क्या रखा है ?


 

वर्तमान में जीना ही

सच्चा जीना है

केवल बीतें कल को

ले कर रोना

 उन्हीं यादों में

 डूबे रहना

वर्तमान से दूर भागना

 बीते कल में

उलझे रहने में

 यादों में खोए रहने में

 क्या लाभ है

आज को भी बर्वाद

कर देता है

आने वाले कल की

 कल्पना के

स्वप्न देखने से

क्या फ़ायदा  है

जीना भार स्वरुप

लगने लगता है

जब उससे बाहर

 आना चाहो

लौट नहीं पाते

सांस लेने को जगह

 नहीं मिलाती

खुले आसमान में

उड़ नहीं पाते

बहुत घुटन होती है

जिन्दगी की चाह

 नहीं रह जाती

पर अपने हाथ में

कुछ भी नहीं है

जो लिखा है भाग्य में

वही सच्चाई है |

आशा  

  

 

30 सितंबर, 2021

क्षणिकाएं

 



ओ भ्रमर फूलों पर क्यों मडराते

उनके मोह में बंध कर रह जाते

कभी पुष्पों में ऐसे बंध जाते

आलिंगन  मुक्त नहीं हो पाते |

 

भोर की बेला में दृष्टि जहां तक जाती

 जहां मिलते दीखते धरा और आसमा

वहीं रहने का मन होता तुलसी का विरवा होता  

आँगन में आम अमरुद के  पेड़ लगे  होते  |

 

दोपहर में सूर्य ठीक सर के ऊपर होता

गर्म हवाओं के प्रहार से धूप से पिघल जाते

प्रातः  की रश्मियाँ छोड़ अपनी कोमलता

कहीं सिमट जातीं  विलुप्त हो जातीं |

 

सबसे प्यारा संध्या का आलम होता

सांध्य बेला में मंदिर की आरती में

जब भक्तगण हो भाव बिभोर वन्दना करते

आदित्य अस्ताचल को जाता लुका छिपी वृक्षों से खेलता

 कभी  स्वर्ण थाली सा हो दूर गगन में अस्त होता  |

 

तितली रानी अपने रंगों से सब का मन मोहतीं

विभिन्न रंगों की होतीं पंख फैला पुष्पों को चूमतीं

उनकी अटखेलियाँ मेरे  मन को बांधे रखतीं ऐसे

 कई रंगों की पतंगों का मेला लगा हो व्योम में जैसे |

आशा

29 सितंबर, 2021

मनोभाव मेरे


तुम मेरे ही रहो

मैं हूँ तुम्हारे लिए

 कोई और न हो दूसरा

 हम  दौनों के  मध्य |

कोई बाधा बन उभरे     

यह मुझे  सहन नहीं    

मन चाहे पर मेरा अपना ही

केवल  अधिकार रहे |

जिस पर हक हो मेरा  

उसे  किसी से बाटूं

नहीं स्वीकार मुझे

कमजोरी कहो या तंगदिली  |

अपने स्वभाव में  

परिवर्तन कैसे लाऊँ

कभी जाना नहीं

किसी ने भी  सुझाया नहीं |

यही कमीं रही मुझमें

जिसे आज तक

 बोझे सा उठाए रहती हूँ

उस से बच  नहीं पाई |

आशा

 

 

 

28 सितंबर, 2021

स्वप्नों का बाजार

 


स्वप्नों का बाजार सजा हैं

आज रात बहुत कठिनाई से

किसी की चाहत से बड़ा  

उसका कोई खरीदार  नहीं है |

दुविधा में हूँ जाऊं या न जाऊं

स्वप्नों के उस बाजार में

कुछ स्वप्न अपने लिए खरीदूं

या  चुनूं उपहार के लिए |

रात्री बिश्राम में तो बाधा न होगी

या चुनूं दिवा स्वप्नों को  

दिन मैं व्यस्त रहने के लिए

 खाली समय के सदुपयोग के लिए |

अभी तक निर्णय ले नहीं पाई

मुझे कोई बुराई नहीं दीखती दौनों में

 ये लूं या दूसरे को स्वीकारूं

सोच में हूँ उलझन से निकल न पाई |

कोई तो मुझ जैसा  सोचवाला हो

मुझ जैसा  विचार रखता हो

हो सहमत मेरे ख्यालों  से 

मेरा हम कदम हो हम ख्याल हो |

आशा 


मेरा हम कदम हो हमख्याल हो |

27 सितंबर, 2021

वर्ण पिरामिड

 है

मेरी

बिटिया

व्याही गई  

सब से  दूर

पराए देश में

बहुत याद आती

जब आ नहीं पाती

 विछोह सह न  पाती 

मन अधीर कर जाती |  


हो  

तुम  

वेदना 

   हो मेरी ही      

कभी गोण हो  

बेचैन कभी हो  

क्यों मुझे सताती हो  

यह  मुझ से  लगाव हो    

तुम से लगाव हो कैसे  |  

         है 

        वही 

        सुबह  

      और शाम

      व्यस्तता लिए 

       नहीं  है  आराम 

       सिर्फ रात्री  विश्राम  

        है तब भी चैन कहाँ   

     सो नहीं  पाती  स्वप्न बिना  | 

आशा 






 

मन