17 मार्च, 2012

रिश्ते कठिन पहेली से

घर बनाया
जोड़े तिनके तिनके
हमराज खोजा
 सोचते सोचते
रिश्ते जुड़े
कुछ खून के
कुछ बनाए हुए
उन्ही में खोते गए
खुद को भूल के
पर आज लगते
सब खोखले रिश्ते
ठेस पहुंचाते
कई सतही रिश्ते
जब पास होते
जला करते
दूर होते ही
शोशा  उछालते
कटुता भर जाते मन में
कभी जज्बाती
दुखी कभी  कर जाते रिश्ते
होते कुछ कपूर से
तुरत जल जाते
तरल हुए बिना ही
बस अहसास छोड़ जाते
अपना होने का
रिश्ते तो रिश्ते ही हैं
क्या सतही क्या गहरे
अलग अलग रंग लिए
 कितनी दूर
कितने करीब
रिश्ते कठिन पहेली से |
आशा










11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी रचना आशा जी ...

    रिश्तों तो कहाँ परिभाषित किया जा सकता है...समझ के परे होते हैं ये...
    निभ गए तो बहुत बड़ी बात...

    सादर.

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  2. बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सार्थक सटीक रचना,...

    MY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....

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  3. लेकिन जीजी हमारा रिश्ता तो सचमुच बहुत गहरा और सच्चा है बिलकुल खरे सोने सा ! शाम को मिलते हैं !

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  4. रिश्ते तो रिश्ते ही हैं.
    क्या सतही क्या गहरे.
    अलग अलग रंग लिए ...
    निभाना तो पड़ता ही है इन्हें, चाहे कितनी भी कठिन पहेली से क्यों न हों... सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार...

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  5. रिश्ते तो रिश्ते ही हैं
    क्या सतही क्या गहरे
    अलग अलग रंग लिए
    कितनी दूर
    कितने करीब
    रिश्ते कठिन पहेली से |

    सही है !!

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  6. बहुत सुंदर भाव, अभिव्यक्ति, सार्थक रचना,...

    जवाब देंहटाएं
  7. "रिश्ते तो रिश्ते ही हैं
    क्या सतही क्या गहरे
    अलग अलग रंग लिए
    कितनी दूर
    कितने करीब
    रिश्ते कठिन पहेली से"

    खुबसूरत अभिव्यक्ति .... अदभुत.

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  8. रिश्तों को गहराई से नापा है..बेहद सुंदर रचना.

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  9. सच में रिश्ते ....निभाने बहुत कठिन हैं

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