घर बनाया 
जोड़े तिनके तिनके 
हमराज खोजा
 सोचते सोचते 
रिश्ते जुड़े 
कुछ खून के 
कुछ बनाए हुए 
उन्ही में खोते गए
खुद को भूल के 
पर आज लगते 
सब खोखले रिश्ते 
ठेस पहुंचाते 
कई सतही रिश्ते 
जब पास होते 
जला करते 
दूर होते ही 
शोशा  उछालते 
कटुता भर जाते मन
में 
कभी जज्बाती 
दुखी कभी  कर जाते रिश्ते 
होते कुछ कपूर से 
तुरत जल जाते 
तरल हुए बिना ही 
बस अहसास छोड़ जाते 
अपना होने का 
रिश्ते तो रिश्ते ही
हैं 
क्या सतही क्या गहरे
अलग अलग रंग लिए
 कितनी दूर 
कितने करीब
रिश्ते कठिन पहेली
से |
आशा 

 
 
बहुत अच्छी रचना आशा जी ...
जवाब देंहटाएंरिश्तों तो कहाँ परिभाषित किया जा सकता है...समझ के परे होते हैं ये...
निभ गए तो बहुत बड़ी बात...
सादर.
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सार्थक सटीक रचना,...
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST... फुहार....: रिश्वत लिए वगैर....
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंलेकिन जीजी हमारा रिश्ता तो सचमुच बहुत गहरा और सच्चा है बिलकुल खरे सोने सा ! शाम को मिलते हैं !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
रिश्ते तो रिश्ते ही हैं.
जवाब देंहटाएंक्या सतही क्या गहरे.
अलग अलग रंग लिए ...
निभाना तो पड़ता ही है इन्हें, चाहे कितनी भी कठिन पहेली से क्यों न हों... सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार...
रिश्ते तो रिश्ते ही हैं
जवाब देंहटाएंक्या सतही क्या गहरे
अलग अलग रंग लिए
कितनी दूर
कितने करीब
रिश्ते कठिन पहेली से |
सही है !!
बहुत सुंदर भाव, अभिव्यक्ति, सार्थक रचना,...
जवाब देंहटाएं"रिश्ते तो रिश्ते ही हैं
जवाब देंहटाएंक्या सतही क्या गहरे
अलग अलग रंग लिए
कितनी दूर
कितने करीब
रिश्ते कठिन पहेली से"
खुबसूरत अभिव्यक्ति .... अदभुत.
रिश्तों को गहराई से नापा है..बेहद सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंसच में रिश्ते ....निभाने बहुत कठिन हैं
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