पालापोसा बड़ा किया
जाने कितनी रातें
आँखों आँखों में काटीं
पर उसे कष्ट न होने दिया
पढ़ाया लिखाया
सक्षम बनाया
जो हो सकता था किया
पर रही पालने में कही कमीं
बेटी बेटी न रही
कितनी बदल गयी
जिस पर रश्क होता था
कहीं गुम हो गयी
जाने कब खून सफेद हुआ
संस्कार तक भूली
धन का मद ऐसा चढ़ा
खुद में सिमट कर रह गयी
यही व्यवहार उसका
मन पर वार करता
आहत कर जाता
हो अपना खून या पराया
रिश्ता तो रिश्ता ही है
सूत के कच्चे धागे सा
अधिक तनाव न सह पाता
झटके से टूट जाता
ममता आहत होती
दूरी बढ़ती जाती |