एक दिन आत्म मंथन किया
देखीं अपनी कमजोरियां
मन में कहाँ कहाँ थीं
उनसे बच निकलने की
तरकीबों पर विचार किया
फिर मन को आगाह किया
कहाँ था वह गलत |
कितनी तल्खियां रहीं
मन में जिनसे
निकल नहीं पाया
और बढ़ावा दिया उनको |
आशा
दिखता बड़ा कच्चा सा
पर होता इतना प्रगाढ़
कि सात जन्मों तक नहीं टूटता |
कितनी भी बाधाएं आएं
उस बंधन पर
कोई प्रभाव नहीं होता
साथ बना रहता जन्म जन्मान्तर तक |
यही विशेषता है उस बंधन की
किसी की नजर नहीं लगती उसको
मन में कभी उलझन कोई चिंता
कुंठाएं नहीं पनपतीं |
प्यार की क्या बात करें
दिन दूना रात चौगुना
परवान चढ़ता मंजिल पर
परिवार फलता फूलता खुशहाल रहता|
यही सुख मिलता रहे सब को
है यही ग्रंथि बंधन की विशेषता
कोई अलग न हो एक दूसरे से
छिपा रहा मन में
दीखता नहीं
२-हाथ पकड़
चलना सिखा कर
खडा किया है
३-पिता बनके
दाइत्व निभाया है
सफल रहा
४-ख्याल खुद का
परिवार का रखा
सब प्रसन्न
५-तपती धूप
व्यवहार तुम्हारा
प्यार न दिखा
६-कठिन कार्य
सभी को खुश रखा
समेत तेरे
७-ख्याल अपना
सपने जैसा दिखा
याद न रहा
८-तुम्हारे बिना
हम सब अधूरे
याद करते
९-पितृ दिवस
याद तो किया गया
फिर से भूले
१०-कठिन हुआ
है जीवन व्यापन
तुम्हारे बिना |
आशा
तुम्हारा स्नेह और दुलार है
एक गुलदस्ते सा
जिसकी पनाह में पलते
कई प्रकार के पुष्प |
बहुत प्रसन्न रहते
एक साथ घूलमिल कर
कोई नहीं रहता अलग थलग
मानते एक ही परिवार का सदस्य अपने को |
यही बात मुझे अच्छी लगती
उस रंगबिरंगे गुलदस्ते की
सबके साथ एकसा
सामान व्यवहार होता वहां
कोई भेद भाव नहीं आपस में|
वे एक ही बात जानते
वे बने हैं गुलदस्ते के लिए
तभी सब मिलजुल कर रहते
यही गुलदस्ते को देता विशिष्ट स्थान |
मनभावन पुष्पों को माली सजाता
सब को समान रूप से देखता
पुष्पों को रंग के अनुसार सजाता
वह पुष्प चुनने में सहायक होता
मुझे उस में तुम्हारा
ममता भरा चेहरा दीखता
यही आकलन है मेरा तुम में
तुम गुलदस्ते सी हो
परिवार के लिए |
आशा
किसी के कहने सुनने से
कुछ ना होता पर
जब मन को धुन आए
बिना कहे रह न पाए |
मनमोजी होना मन का
कोई नई बात नहीं है
पर खुदगर्ज होना है गलत
यही समझ समझ का है फेर |
यही बात समझ में आजाए
मानव मन को संतुष्टि आजाए
फिर जो चाहे कर पाओगे
कोई कठिनाई न होगी |
आपस में तालमेल की जरूरत न होगी
अपने आप सामंजस्य
हो जाएगा दौनों में |
आशा
तुम किसी को पत्र लिखो न लिखो
किसी को क्या फर्क पड़ता है
पर मुझे बहुत फर्क पड़ता है
क्यों कि तुम्हारे लिखे हुए पत्र के
जब तुम कभी लिखना भूल जाते हो
या अधिक व्यस्त रहते हो और पत्र नहीं लिखते
मैं बहुत उदास हो जाती हूँ |
मन में भय उपजने लगता है
कहीं कुछ कमीं तो नहीं रही मुझमें
जो तुम्हें मेरी याद न आई
पर मिलने पर कारण बताया जब
मन बहुत लज्जित हुआ |
फिर मन में प्रश्नों का अम्बार लगा
क्या इतना भी आत्म बल नहीं रहा मुझमें
विश्वास खुद पर कैसे न रहा ?
या कोई कमीं पैदा हुई है मेरे आकर्षण में
अभी तक सोच में डूबी हूँ
पर कारण तक खोज न पाई |
यदि मेरा मनोबल मेरा साथ न देता
इतने दिनों का साथ
कैसे छूटने के कगार पर होता
हमारा मनोबल है सच्चा साथी हम दोनों का
जो एक साथ बांधे है हमें कच्ची डोर से |
दिखने में तो बहुत कमजोर दिखती ग्रंथि
आशा
किस्से तोता मैना के
कितनी बार सुने
उनसे प्रभावित भी हुए
पर अधिक बंध न पाए उनमें
उनमें सच की कमी रही
केवल सतही रंग दिखे वहां |
मन ने बहुत ध्यान दिया
सोचा विचारा उन कथाओं के अन्दर
छिपे गूढ़ अर्थों पर
पर संतुष्टि न मिल पाई उसे |
मन की भूख समाप्त न हो पाई
कैसे उसे खुश रखूँ सोच में हूँ |
कई और रचनाएं खाखोली
मन जिन में लगा
वही किताबें पसंद आईं |
मन को संतुष्टि का चस्का लगा
अब वह भी खुश और
मैं भी प्रसन्न होने लगी |
जल्दी ही मन उचटा
कुछ नया पढ़ने का मन हुआ
रोज नई किताबें कहाँ मिलतीं
तभी पुस्तकालय का ख्याल आया |
अब मैं और किताबें रहीं आसपास
मन को चैन आया
और मुझे आनंद मिला
यही क्या कम था
मैं कुछ तो सुकून
आशा