जिसकी कभी कल्पना की थी
मन बल्लिओं उछला
उसे समक्ष देख कर
मेरा था बड़ा अरमां
उसे इस वर्दी में देखूं
अपने अरमान पूर्ण करपाऊँ
है देश का ऋण मुझ पर
उसे कैसे पूर्ण कर पाऊँ
आज आया अवसर ऐसा
सर गर्व से उन्नत हुआ
उसे इस वर्दी में देख
दी उसे शिक्षा देश की रक्षा की
देश के प्रति पूर्ण निष्ठा की
समर्पण की |
आशा
मन बल्लिओं उछला
उसे समक्ष देख कर
मेरा था बड़ा अरमां
उसे इस वर्दी में देखूं
अपने अरमान पूर्ण करपाऊँ
है देश का ऋण मुझ पर
उसे कैसे पूर्ण कर पाऊँ
आज आया अवसर ऐसा
सर गर्व से उन्नत हुआ
उसे इस वर्दी में देख
दी उसे शिक्षा देश की रक्षा की
देश के प्रति पूर्ण निष्ठा की
समर्पण की |
आशा