30 अक्तूबर, 2018
27 अक्तूबर, 2018
है आज बाल दिवस
है आज बाल दिवस
चचा नेहरू का जन्म दिवस
बहुत प्यार करते थे बच्चों से
यही जज्बा सदा रहना चाहिए
बाल विकास का कार्य होना चाहिए
केवल पन्नों में नहीं
ठोस धरातल पर सही योजना
उन तक पहुँचना चाहिए
बिचोलिये नहों तो है बहुत अच्छा
योजनाओं का लाभ
उन तक पहुँचना चाहिए
लाल गुलाब बहुत प्रिय था चाचा को
वही सब नन्हों तक जाना चाहिए |
यही जज्बा सदा रहना चाहिए
बाल विकास का कार्य होना चाहिए
केवल पन्नों में नहीं
ठोस धरातल पर सही योजना
उन तक पहुँचना चाहिए
बिचोलिये नहों तो है बहुत अच्छा
योजनाओं का लाभ
उन तक पहुँचना चाहिए
लाल गुलाब बहुत प्रिय था चाचा को
वही सब नन्हों तक जाना चाहिए |
आशा
26 अक्तूबर, 2018
शरद पूर्णिमा
चांदी के थाल सा चमकता
चौदह कलाओं से परिपूर्ण
खिड़की से अन्दर झांकता
खुद की चांदनी से
दिग्दिगंत रौशन करता
है पूर्णिमा की रात
चन्द्रमाँ करेगा
अमृत की वर्षा
वही प्यार से समेट लेना
अपनी कविता में
उसका उल्लेख करना
कोई मीठा सा गीत गा लेना
शरद पूर्णिमा मना लेना
नृत्य को न भूल जाना
सरस्वती का आवाहन कर
शरद ऋतू का स्वागत करना |
आशा
चौदह कलाओं से परिपूर्ण
खिड़की से अन्दर झांकता
खुद की चांदनी से
दिग्दिगंत रौशन करता
है पूर्णिमा की रात
चन्द्रमाँ करेगा
अमृत की वर्षा
वही प्यार से समेट लेना
अपनी कविता में
उसका उल्लेख करना
कोई मीठा सा गीत गा लेना
शरद पूर्णिमा मना लेना
नृत्य को न भूल जाना
सरस्वती का आवाहन कर
शरद ऋतू का स्वागत करना |
आशा
25 अक्तूबर, 2018
आज के परिप्रेक्ष्य में
आधुनिकता के वेश में
जो पहुँँची चरम पर
बहुत बदलाव आया है
छोटे घरौंदों में रहने वाले
नहीं होते अधिक कद्दावर
और अधिक रसूख वाले
पर होते विशाल हृदय वाले
सरल सहज और
स्नेह से भरे
जब भी मिलते
आत्मीयता से मिलते
घर जैसा घर लगता
कहीं भी दिखावा न होता
सुदामा के चावल
मिल बाँँट कर खाते
पर शहरीकरण के जोश में
न रह गया है होश अब
सब रिश्ते बदल गए
सभी मुँँह पर मुखौटा
लगा कर घूूमते हैं
अन्दर कुछ
पर बाहर कुछ
वह सम्मान
मेहमान का
तन मन धन
से होता था
तिरोहित सा हो गया
अब सोच बदल गया है
कहाँ आ गई मुसीबत
जाने कब जाना चाहेगी
यह भी भूल जाते हैं
कोई अपना कीमती
समय निकाल कर
मिलने आया है
सब यहीं बह जाता
मिट्टी के घड़े के
रिसते पानी की तरह
रह जाता है पानी
बिना ठंडा हुए
न तो मिठास
न प्राकृतिक स्वाद
सभी बातें सतही
बड़े से बैनर के लिए
नारों में समा गई हैं
कद्दावर लोगों से
अच्छे करोड़ दर्जे
सामान्य जन
जो हैं बहुत दूर
आधुनिकता से |
वसुधैव कुटुम्बकम की
अवधारणा रह गई
केवल कल्पना हो कर
सहेजी गई किताबों में |
आशा |
24 अक्तूबर, 2018
22 अक्तूबर, 2018
पल
पल पल बढ़ता
तिल सा चटकता
महकता बेला गुलाब
चम्पा चमेली सा |
हर पल जीना चाहता
भयाक्रांत न होता
कभी ठहरना
किसी पल में
खुद के हाथ में नहीं |
|अंतिम पल ही है एक
जिस की जानकारी
किसी को नहीं
पर यहीं वह पल है
जिसकी बेचैनी
से प्रतीक्षा है |
तिल सा चटकता
महकता बेला गुलाब
चम्पा चमेली सा |
हर पल जीना चाहता
भयाक्रांत न होता
कभी ठहरना
किसी पल में
खुद के हाथ में नहीं |
|अंतिम पल ही है एक
जिस की जानकारी
किसी को नहीं
पर यहीं वह पल है
जिसकी बेचैनी
से प्रतीक्षा है |
आशा
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