पलट कर जब उसने देखा विगत में
यादों का पिटारा खुलने लगा
पहुच गया उसका मन मस्तिष्क
बीते दिनों की यादों में |
पहले कल्पनाओं में खोई रहती
थी
सुख निंदिया सोई रहती थी
रही वास्तविकता से दूर बहुत
जीवन कितना है कठिन कभी सोचा नहीं था |
एक दिन चिलचिलाती धुप में
पैर पड़े जब कठोर धरा पर
वास्तविकता से हुआ सामना
झुलसा तन मन ऊष्मा की तीव्रता से |
पहले वह सहन न कर पाई
उलटे पैर पलायन का हुआ मन
सोचा जाने क्यूँ
मुसीबत गले लगाई|
मुसीबत गले लगाई|
फिर विचारों ने करवट बदली
और लोग भी तो जीते है
उसी घुटन भरे माहोल में
फिर वह क्यूँ पीछे हटने की सोचे |
तब दृढता से कदम उठाए आगे बढी
बापसी का ख्याल न आया मन में
बापसी का ख्याल न आया मन में
यही दृढ़ता आत्मसंयम तो जरूरी है
किसी कार्य को प्रारम्भ करने में |
आशा