18 सितंबर, 2020

मेरी बहन

 



    दो दिन पहले मैंने अपनी प्यारी बहिन को खोया है उसकी याद में कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं
     
    थीं तुम गुमसुम गुड़िया जेसी
    शांत सोम्य मुखमंडल तुम्हारा 
    मन मोहक मुस्कान तुम्हारी
    सब से प्यार करनेवाली 
    सब से प्यारी सबकी दुलारी
    बचपन से ही थीं ऐसी
अब भी कुछ परिवर्तन नहीं हुआ 
कम बोलना कायदे से बोलना
है  बड़ा गुण तुममें
हर कोई नहीं हो सकता तुम जैसा
अपने काम में हो दत्त चित्त
सुन्दर कृतियाँ उकेरीं तुमने
हर वह चित्र बोल उठता है ऐसे
प्राणप्रतिष्ठा की हो जैसे
तुम्हारी हर कृति का एहसास
सजीव जगत से आया है जैसे
तुम्ही मुखरित हुई हो हर कृति में
वैसे तो अंतर मुखी रहीं सदा
अब तुमने  चिर मौनं को वरा है
सो गई चिर निंद्रा में सदा के लिए
तुम्हारी कमी की पूर्ती कभी नहीं होगी |
आशा

15 सितंबर, 2020

हिन्दी



 

हिंदी दिवस

है हमारी  भाषा हिन्दी

हमें बहुत प्यार है

अपनी भाषा से

हिंदी दिवस मना रहे

बड़ा धूमधाम से |

दिन रात बोलते नहीं थकते 

है इतनी प्यारी भाषा 

दूसरी  भाषाओं से घुलमिल जाती 

पानी में चीनी जैसी |

है सरल भाषाविज्ञान इसका 

बोधगम्य है व्याकरण  इसकी 

आसानी से समझी जा सकती है 

lलिखी पढ़ी जा सकती है |

तभी तो है प्यारी दुलारी हिन्दी 

है यही विशेषता इसकी 

जिसने इसे सीखना चाहा 

उसमें ही खो जाता है |

14 सितंबर, 2020

वृक्ष

 
 
 
 

वर्षों से एक ही स्थान पर
 बनकर समय के परिचायक
 बिना कोई प्रतिक्रया दिए 
चुप चुप से मौन खड़े हो
| गरमी में तेज धुप सही 
पर विरोध नहीं दर्शाया 
वर्षा हुई जब तेज
 तन भीगा मन भी भीगा 
तुमने कोई प्रभाव नहीं दिखाया | 
जैसे थे वैसे ही खड़े रहे 
 एक सजग प्रहरी की तरह 
जाने कितने पक्षियों का आसरा बने 
 एक पालक की तरह |
 प्रातः काल जब कलरव सुनाई देता
 कानों में रस घोलता 
एक अनोखा एहसास मन में होता 
चेहरा प्रसन्न खिला खिला रहता 
 सच में तुमने एक महान कार्य किया है
 हमने तो तुमसे शिक्षा ली है
 कैसी भी परिस्थिती हो
 मोर्चे पर खड़े रहेंगे
 पीठ दे कर भागेगे नहीं |

13 सितंबर, 2020

है क्या सोच तुम्हारा


 

कभी   तुम  ने सोचा नहीं

बताया नहीं है क्या तुम्हारे  मन में

क्या चाहते हो मुझ से |

अनगिनत  आकांक्षाएं  अपेक्षाएं

मुझे भी तुम से होगी

कोई तो अपेक्षा तुमसे

कभी जानना चाहा नहीं |

हो कितने निजी स्वार्थ में लिप्त

कभी सोचतो लेते मैंने तो

प्यार किया था तुमसे

 शायद तुम्हें अब याद न हो

जब होती विरह वेदना

तब पता चलता तुम्हे |

कभी तुम  ने सोचा नहीं

बताया नहीं है क्या तुम्हारे  मन में

क्या चाहते हो मुझ से |

अनगिनत  आकांक्षाएं  अपेक्षाएं

मुझे भी तुम से होगी

कोई तो अपेक्षा तुमसे

कभी जानना चाहा नहीं |

हो कितने निजी स्वार्थ में लिप्त

कभी सोचतो लेते मैंने तो

प्यार किया था तुमसे

 शायद तुम्हें अब याद न हो

जब होती विरह वेदना

तब पता चलता तुम्हे |

11 सितंबर, 2020

क्या सोच रहे हो ?

 

 


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क्यूँ अकेले खड़े निहार रहे

मौन व्रत धारण किये

मूक मुख मंडल पर  

मुखर होने को बेकल

शब्दों को पहरा मिला |

दिल पहले तो बेचैन हुआ

फिर तुम्हें समझना चाहा

ऐसी उथल पुथल है

आखिर मन में क्यूँ  ?

हो इतने बेवस लाचार क्यूँ ?

शायद  यही सोच रहता है

हर पल  तुम्हारे मन में |

पर क्या कभी सोचा है

इस दुनिया में हैं

अनगिनत ऐसे  इंसान

 बुरी स्तिथी  है जिनकी

पर जिन्दगी से हार नहीं मानी है

अभी भी जीने की तमन्ना बाक़ी है | 

उनसे प्रेरणा मिलती है

पल भर के क्षण भंगुर जीवन में

प्रभु के सिवार किससे  आशा करें

खुद जिए और जीने दें  औरों को |

आशा