10 फ़रवरी, 2019

शायरी सरल नहीं लिखना


नहीं कोई मन में मलाल
नियमों को तोड़ने का
छिपे भाव उजागर करने का
हर गज्ञल बेबहर हो गई है |
नाम हुए उसके हजार
हर शख्स गजल पढ़ नहीं सकता
उसमें निहित अर्थ
समझ नहीं सकता
चाहता है शायर कहलाना |
है शायरी के नियमों से अनिभिग्य
जानना भी नहीं चाहता
पर शायरी से हैउसका गहरा नाता
तभी तो हर गजल
बेबहर हो कर रह गई है |
ना तो काफिया ना मक्ता
न कोई जानकारी कैसे लिखी जाए 
शायरी में आनेवाले क्रम की |
पर अरमान नहीं छूटते
शायर कहलाने के
मंच पर शेर सुनाने के
तभी शायरी बेबहर हो गई है |
आशा



08 फ़रवरी, 2019

गुलाब
























गुलाब तो गुलाब रहेगा
चाहे जिस भी रंग का हो
चाहे जिस काम आए
उसकी सुगंध वैसी ही रहेगी
जब प्रेमी को दिया जाए
या भगवान को चढ़ाया जाए
या अर्थी की शोभा बने
जाने वाले को विदा करे
या हो रस्मअदाई
हो अकेली या गुलदस्ते में
उसे तो समर्पण करना ही है
चाहे भक्ति के लिए
 लाया गया हो
या प्रेम प्रदर्शन का माध्यम बने
आत्म हनन करना ही है
स्वेच्छा से या अनिच्छा से
है वह  परतंत्र
 स्वतंत्र छवि  नहीं उसकी
जब पेड़ पर होता है
 काँटों से घिरा होता है
तोड़ मरोड़ कर
 चाहे जब पैरों के तले
 मसल दिया जाता है
राह पर फैक दिया जाता है
उसकी है नियति यही |

आशा

06 फ़रवरी, 2019

नजर अपनी अपनी








है नजर अपनी अपनी
  जैसा सोचते है वही दिखाई देता है
जो देखना चाहते हैं अपने   नजरिये से
करते  हैं टिप्पणी अपने ही अंदाज में
कभी सोच कर देखना
एक ही इवारत पर
 अलग अलग टिप्पणीं होती हैं कैसे ?
यही तो फर्क है लोगों  के नजरिये में
कारण जो भी रहता हो
 पर  है  सत्य यही  
जिसे दस बार देख कर
 कोई पसंद नहीं आता
एक ही नजर में वही
 अपना सुख  चैन  गंवा देता है
कुछ लोग ऐसे होते हैं
 जो होते  निश्प्रह
ठोस धरातल पर रहते हैं
उन  पर अधिक   प्रभाव  नहीं
जो भी जैसा सोचता
 वही उसे नजर आता
यह तो है प्रभाव  अपनी सोच का 
आज के सन्दर्भ में बदले सोच का
अक्स स्पष्ट नजर आता है
कहीं कोई चित्र न बदलता
 पर बदलाव नजर आता है
एक ही लड़की किसी को
 दिखाई देती जन्नत की  हूर
किसी और  को वही बेनूर नजर आती
है अलग  अंदाज  अपनी सोच का
नजर नजर का फेर है
 कोई कह नहीं सकता
 किसका है कैसा नजरिया
 कोई सोच नहीं पाता
 है क्या पैमाना नजर की  खोज का |
आशा
                             

03 फ़रवरी, 2019

शाम कोई फिर सुहानी चाहिए






व्यस्तता इतनी कि
सर उठाने की फुरसत नहीं
पर कभी बेचैनी मन की
  रुक नहीं पाती
 वह  चाहती है
 शान्ति की तलाश
शाम की बेला में
 कहीं  विचरण करना
शाम कोई फिर सुहानी चाहिए
हरियाली मखमली बिछी हो
रंग बसंती दे दिखाई  दूर तक 
बयार वासंती चुहल करे फूलों से
 उसमें  बसे  फूलों की महक
पक्षियों की मधुर  चहचहाहट
और  हो  एहसास
 पुरसुकून जिन्दगी का
जागृत हो भावों का मेला
न हो तन्हाई का झमेला
चारों ओर हों खुशरंग चहरे
 कलम और कॉपी लिये
और हों लालायित
कुछ नया लिखने के लिये
शाम कुछ  ऐसी ही
 सुहानी  होना चाहिए
संध्या हो रूमानी सुहानी 
और  जीवंत मुखर
बस  है मन की आकांक्षा यही
शाम कोई ऐसी  ही होना चाहिए  |

आशा

31 जनवरी, 2019

संग्रह यादों का


                                         

       
                      कुछ तो ऐसा है तुममें    

तुम्हारी हर बात निराली है
कोई भावना जागृत होती है
एक कविता बन जाती है
लिखते-लिखते कलम न  थकती
हर रचना कुछ कह जाती
मुझको स्पंदित कर जाती 
है गुण तुममें सच्चे मोती सा
निर्मल सुंदर चारु चंद्र सा
एक-एक मोती सी 
तुम्हारी  लिखी हर  कविता
कैसे चुनूँ और पिरोऊँ 
फिर उनसे माला बनाऊँ
 माला में कई होंगे मनके 
 किसी न किसी की कहानी कहेंगे
संग्रह उन सब का करूँगा
और रूप पुस्तक का दूँगा
हर कृति कुछ बात कहेगी
मन को भाव विभोर करेगी
तुम्हारी याद मिटने ना दूँगा
हर किताब सहेज कर रखूँगा |

30 जनवरी, 2019

उन यादों में खो जाएं




 
यहां आओ पास बैठो
 हम उन यादों में खो जाएं
वे गीत गुनगुनाएं जो कभी गाया करते थे
उन्हें रचते थे एक दुसरे को सुनाया करते थे
जो प्यार छिपा था उनमें आओ उसे फिर दोहराएं
मुझसे कहीं दूर न जा सकोगे
अटूट प्यार के बंधन को यूं ठुकरा न सकोगे
कैसे भुला पाओगे
जब भी यह मौसम आएगा उन यादों को साथ लाएगा
बार बार वहीँ ले जाएगा
जहां कभी हम मिलते थे अपनी रचनाएं गाते थे
कई धुनें बनाते थे
जब भी आँखें बंद करोगे याद आएंगे वे लम्हें
आखें नम हो जाएगीं
उन्हें विदा ना कर पाओगे
ऐसा कुछ भी तो नहीं था जिसे सच समझ बैठे
कुछ ऐसा कर गए
जिसे सोचना भी कठिन था
अब सीख लिया है वह चर्चा कभी ना हो
जो दिल में चुभ जाए
 घाव कर जाए हमें दुखी कर जाए
कभी लव पर वे बातें नहीं आएंगी
गैरों के समक्ष चर्चा का विषय ना बन पाएंगी
चिंता नहीं है कि लोग क्या कहेंगे
पर बंधन यदि टूटा
मुझे मिटा कर रख देगा जीवन वीरान कर देगा
है मेरी इच्छा बस इतनी
हम दौनों फिर से गीत लिखें पहले से प्यार मैं खो जाएं
मेरी  अधूरी चाह छोड़
तुम कहीं भी ना जा सकोगे
यदि भूले से हुआ ऐसा मुझे कभी ना पा सकोगे
फिर एकाकी कैसे रह पाओगे |
आशा

26 जनवरी, 2019

बाई पुराण



बाई पुराण पर कितना लिखूं
शब्द कम पड़ जाते हैं
हमारी बाई है  सब से अलग  
चाहे जब छुट्टी  मनाती
आती है  होली दीवाली
आते ही बड़ा उपहार मांगती
काम की न काज की
ढाई मन अनाज की की
 कहावत पूर्ण रूप से चरितार्थ करती
उस पर करना पड़ता एतवार
रह गए उपहास बन कर
हमारी वेदना कोई न समझे
बेवकूफ समझ कर हमें
समझ में आता है सब
पर क्या करें अब
बुढ़ापे का कोई न सहारा
यही जान जीना हराम किया हमारा
अपना दुःख किसे बताएं
जो भी आता ज्ञान बाटता
क्या है दोष हमारा
कोई समझ नही न पाता
सारा दोष हमारा ही बताता |
आशा

23 जनवरी, 2019

अवसाद








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अवसाद





थी   प्रसन्न  अपना घर  संसार बना कर
व्यस्तता ऎसी बढ़ी
 कि खुद के वजूद को  भूली
वह यहाँ आ कर ऐसी उलझी
 समय ही न मिला खुद पर सोचने का
जब भी सोचना प्रारम्भ किया
मन में हुक सी उठी
वह क्या थी ?क्या हो गई ?
क्या बनना चाहती थी ?
क्या से क्या होकर रह  गई ?
 अब तो  है निरीह प्राणी
अवसाद में डूबती उतराती
सब के इशारों पर भौरे सी नाचती 
रह गई है  हाथ की कठपुतली हो कर
ना सोच पाई इस से   अधिक कुछ
कहाँ खो  गई आत्मा की  आवाज उसकी
यूँ तो याद नहीं आती पुरानी घटनाएं
 जब आती हैं अवसाद से भर देती हैं 
 मन   ब्यथित कर जाती हैं
उसका अस्तित्व कहीं  गुम हो गया है
उसे  खोजती है या अस्तित्व उसे
कौन किसे खोजता है?
है एक  बड़ी पहेली जिसमें उलझ कर रह गई है 
अवसाद में फँसी ऐसी कि
कोई मार्ग नहीं मिलता आजाद होने का
 अपना अस्तित्व खोजने  का 
  समस्याओं का समाधान खोजने का |

आशा