तुम्हारी सादगी ने
सदाचरण ने
मुझे जीना सिखाया
मधुर स्वरों ने
गाना गुनगुनाना सिखाया
पहले कभी गीतों की
नई धुन न बन पाती थी
वही स्वर वही राग
आरोह अवरोह स्वरों का
और भेद स्थाई अंतरे का
सभी तुम से सीख पाया
साज़ जब भी बेसुरा हुआ
स्वर में ला बजाया तुमने
स्वर में लाना सिखाया तुमने ,
सोचा न था कभी
मंच पर भी जाऊँगा
तुमसे सीखी धुनों को
अपने गीतों में सजाऊँगा
अब जब भी
तालियाँ बजती हैं
प्रोत्साहन मुझे मिलता है
पर मुझसे पहले
तुम्हें याद किया जाता है
क्योंकि मैंने तुमसे
शिक्षा ली है
गुरू शिष्य परम्परा
भी निभाई है
तुमसे ही प्रेरणा ली है
गीतों को नया रंग दे कर
जब भी प्रस्तुत करता हूँ
तुम्हारी सादगी, सदाचार
मधुर, मन छूती आवाज़
का ही बल मिलता है
सच्ची साधना
संगीत की आराधना
ओर बिंदास प्रस्तुति
सभी सराहे जाते हैं
मुझे मंच पर देख
सब तुम्हें याद करते हैं
तुम जैसे लोगों को
सादर प्रणाम करते हैं |
आशा