कैसे भूलूं
था एक विशिष्ट दिन
जब दी आवाज नव जीवन ने
कच्ची मिट्टी थी
आ सिमटी माँ की गोद में
नए आकार में |
वह स्पर्श माँ का पहला
बड़े जतन से उठाना उसका
बाहों के झूले में आ
उसकी गर्मी का अहसास
बड़ा सुखद था
पर शब्द नहीं थे
व्यक्त करने के लिए |
प्रति उत्तर में थी
मीठी मधुर मुस्कान
उसकी ममता और दुलार
आज भी छिपा रखा है
अपनी यादों की धरोहर में |
झूले से उतर
चूं -चूं जूते पहन
धरती पर पहला कदम रखा
पकड़ उंगली चलना सीखा
अटपटी भाषा में
अपनी बात कहना सीखा
कैसे भूलूं उसे |
बचपन की अनगिनत यादें
सजी हुई हैं मन में |
गुड़ियों के संग खेल
बिताए वे पल कहाँ खो गए
कैसे खोजूं ?
था पहला दिन शाला का
इतनी दूर रहना माँ से
उसके प्यार भरे आंचल से
था कितना कठिन
कैसे भूलूं
छोटी सी बेबी कार
स्टेयरिंग पर हाथ
और चलते पैर पैडल पर
तेज होती गति देख
पीछे से काका की आवाज
बेबी साहब ज़रा धीरे
दृश्य है साकार आज भी
मन के दर्पण में
कितना अच्छा लगता है
वह समय याद करना |
शाला में आधी छुट्टी में
जाड़ों की कुनकुनी धूप में
रेत के ढेर पर खेलना
मिट्टी के घरोंदे बनाना
फूलों से उन्हें सजाना
बागड़ पर टहनियों की कतार
घर के आगे
बगीचे की कल्पना
आज भी भूल नहीं पाई |
था डर बस नक्कू सर की
स्केल की मार का
पर आस पास होता था
बस प्यार ही प्यार
कैसे भूलूं उन यादों को
सोचती हूँ वह समय
ठहर क्यूँ नहीं गया |
आशा
था एक विशिष्ट दिन
जब दी आवाज नव जीवन ने
कच्ची मिट्टी थी
आ सिमटी माँ की गोद में
नए आकार में |
वह स्पर्श माँ का पहला
बड़े जतन से उठाना उसका
बाहों के झूले में आ
उसकी गर्मी का अहसास
बड़ा सुखद था
पर शब्द नहीं थे
व्यक्त करने के लिए |
प्रति उत्तर में थी
मीठी मधुर मुस्कान
उसकी ममता और दुलार
आज भी छिपा रखा है
अपनी यादों की धरोहर में |
झूले से उतर
चूं -चूं जूते पहन
धरती पर पहला कदम रखा
पकड़ उंगली चलना सीखा
अटपटी भाषा में
अपनी बात कहना सीखा
कैसे भूलूं उसे |
बचपन की अनगिनत यादें
सजी हुई हैं मन में |
गुड़ियों के संग खेल
बिताए वे पल कहाँ खो गए
कैसे खोजूं ?
था पहला दिन शाला का
इतनी दूर रहना माँ से
उसके प्यार भरे आंचल से
था कितना कठिन
कैसे भूलूं
छोटी सी बेबी कार
स्टेयरिंग पर हाथ
और चलते पैर पैडल पर
तेज होती गति देख
पीछे से काका की आवाज
बेबी साहब ज़रा धीरे
दृश्य है साकार आज भी
मन के दर्पण में
कितना अच्छा लगता है
वह समय याद करना |
शाला में आधी छुट्टी में
जाड़ों की कुनकुनी धूप में
रेत के ढेर पर खेलना
मिट्टी के घरोंदे बनाना
फूलों से उन्हें सजाना
बागड़ पर टहनियों की कतार
घर के आगे
बगीचे की कल्पना
आज भी भूल नहीं पाई |
था डर बस नक्कू सर की
स्केल की मार का
पर आस पास होता था
बस प्यार ही प्यार
कैसे भूलूं उन यादों को
सोचती हूँ वह समय
ठहर क्यूँ नहीं गया |
आशा