खेतों में झूमती बालियाँ गेहूं की
फूलों से लदी डालियाँ पलाश की
मद मस्त बयार संग चुहल उनकी
लो आ गया मौसम फागुन का |
महुए के गदराय फल
और मादक महक उनकी
भालू तक उन्हें खा कर
झूमते झामते चलते |
किंशुक अधरों का रंग लाल
गालों पर उड़ता गुलाल
हो जाते जब सुर्ख लाल
लगती है वह बेमिसाल |चौबारे में उडती सुगंध
मधु मय ऋतु की उठी तरंग
मनचाहा पा हो गयी अनंग
गुनगुनाने लगी फाग आज |
भाषा मधुर मीठे बोल
चंचल चितवन दिल रख दे खोल
अपने रसिया संग
आज क्यूँ ना खेले फाग |
मन को छूती स्वर लहरी
और फाग का अपना अंदाज
नाचते समूह चंग के संग
रंग से हो सराबोर |
वह भीग जाती प्रेम रंग में
रंग भी ऐसा जो कभी न उतारे
तन मन की सुध भी बिसरा दे
वह खेलती होली
रसिया मन बसिया के संग |
आशा