02 जून, 2011
दूर कहीं चले जाते
पहले उनका इन्तजार
बड़ी शिद्दत से किया करते थे
हर वक्त एक उम्मीद लिए
नजरें बिछाए रहते थे |
इन्तजार उसका क्यूँ करें
जिसने हमें भुला दिया
जब उसे ही हमारी फिक्र नहीं
गैरों से गिला क्यूँ करें |
हाले दिल बयां क्यूँ करें
परेशानी का सबब क्यूँ बनें
जब रुलाने में ही उसे मजा आए
उसकी खुशी में इज़ाफा क्यूँ करें |
गर अल्लाह से कुछ मांगते
जो भी पाते खैरात में देते जाते
दवा तो लगती नहीं
तब सदका भी उतारते
दुआ से ही काम चला लेते
वह भी अगर नहीं मिलाती
जिंदगी से पनाह मांग लेते |
वह भी अगर भुला देते
तब दूर कहीं चले जाते
उससे रहते दूर बहुत
दामन भी कभी ना थामते |
आशा |
आशा
बेचैन पक्षी
नीलाम्बर में
प्रकृति के आँचल में
नीली छतरी के नीचे
यहाँ वहाँ उड़ते फिरते
थे स्वतंत्र फिर भी
भयाक्रांत रहते थे |
डर कर चौंकते थे
विस्फोटों से
कर्ण कटु आवाजों से
पंख फैला कर उड़ते
या उन्हें फड़फड़ाते
कभी आँखें मूँदे
अपने कोटर में
या पत्तियों की आड़ में दुबके
यही सोचते रहते थे
ना जाने कब परिवर्तन होगा
भय मुक्त वातावरण होगा
डर डर कर कब तक जियेंगे
कैसे ये दिन बीतेंगे |
जब सुखद वातावरण होगा
मौसम सुहावना होगा
बाधा मुक्त जीवन होगा
भय मुक्त हो
स्वतंत्र विचरण करेंगे |
प्रसन्न मन दाना चुगेंगे
स्वच्छ जल की तलाश में
मन चाहा सरोवर चुनेंगे
बेचैनी से दूर बहुत
वृक्षों पर बैठ
चहकेंगे चहचहाएंगे |
आशा
01 जून, 2011
चाँद भी लजाया है
चितचोर बना मोर
पंख फैला थिरकता |
रंगों की छटा देखता
मन में समाया है |
ये मधुर स्वर सुन
कानों में गूंजती धुन |
जब स्वर पास आया
और पास लाया है |
है अद्भुद रूप तेरा
आकर्षित करता है |
अपने जादू से तूने
सब को लुभाया है |
काकुल चहरे पर
आ छु गयी इस भांति
काली घटा देख कर
चंद्र शरमाया है |
अपने जादू से तूने
सब को लुभाया है |
काकुल चहरे पर
आ छु गयी इस भांति
काली घटा देख कर
चंद्र शरमाया है |
मधुर मुस्कान भरी
ऐसी प्यारी छवि तेरी |
देखी सुंदरता तेरी
चाँद भी लजाया है |
आशा
31 मई, 2011
भरम टूट ना जाए
इस बेरंग उदास जिंदगी में
तुम बहार बन कर आए
काली घटाएं जब छाईं
स्नेह की फुहार बन कर आए |
रास्ता भूली भटक गयी
गंतव्य तक ना पहुँची
तभी सही मार्ग दर्शन दिया
मेरी राह बन कर आए |
इस सूखी बंजर भूमि पर
बहुत थी वीरानगी
नए पौधे लगाए
हरियाली बन कर छाए |
अब सजने लगे सपने
कई लगने लगे अपने
आसपास बने झूठे आवरण से
बाहर मुझे निकाल पाए |
नैराश्य भरे जीवन में
कुछ इस तरह छाए
जैसे किसी सरोवर में
कई कमल खिलाए |
इस बेरंग जीवन में
जब सब से दूर रही
अवसाद ने जड़ें जमाईं
मेरे लिए मनुहार बन कर आए |
मैं हूँ बहुत खुश
आज की स्थिती के लिए
कहीं जाने की बात ना करना
कहीं मेरा भरम टूट ना जाए |
आशा
29 मई, 2011
कुछ समय आदिवासियों के संग
जब पहली बार साथ गयी
था दिन हाट का
कुछ सजे संवरे आदिवासी
करने आए थे बाजार
थीं साथ महिलाएं भी |
मैं दरवाजे की ओट से
देख रही थी हाट की रौनक
उन्हें जैसे ही पता चला
कुछ मिलनें आ गईं
पहले सोचा क्या बात करू
फिर लोक गीत सुनना चाहे
उनकी मधुरता लयबद्धता
आज तक भूल नहीं पाई|
थे गरीब पर मन के धनी
गिलट के जेवर ही काफी थे
रूप निखारने के लिए
केश विन्यास की विशिष्ट शैली
मन को आकृष्ट कर रही थी |
धीरे से वे पास आईं
घर आने का किया आग्रह
फिर बोलीं जरूर आना
स्वीकृति पा प्रसन्न हो चली गईं |
प्रातः काल हुए तैयार
कच्ची सड़क पर उडाती धूल
गराड पर चलती हिचकोले खाती
आगे बढ़ने लगी जीप|
जब मुखिया के घर पहुंचे
हतप्रभ हुए स्वच्छता देख
था झोंपडा कच्चा
पर चमक रहा था कांच सा |
द्वार सजा मांडनों से
भीतरी दीवार सजी
तीर कमान और गोफन से
मक्का की रोटी और साग
साथ थी छाछ और स्नेह का तडका
वह स्वाद आज तक नहीं भूली |
दिन ढला शाम आई
फिर रात में चांदनी नें पैर पसारे
सज धज कर सब आए मैदान में |
ढोल की थाप पर कदम से कदम मिला
गोल घेरे में मंथर गति से थिरके
नृत्य और गीतों का समा था ऐसा
पैर रुकने का नाम न लेते थे |
एक आदिवासी बाला ने मुझे भी
नृत्य में शामिल किया
वह अनुभव भी अनूठा था
रात कब बीत गयी पता ही नहीं चला |
सुबह हुई कुछ बालाओं नें
अपनी विशिष्ट शैली में
मेरा केश विन्यास किया
कच्चे कांच की मालाओं से सजा
काजल लगाया उपहार दिए
वह साज सज्जा आज भी भूली नहीं हूँ
वह प्यार वह मनुहार
आज भी बसी है यादों में |
अगली हाट पर
भिलाले आदिवासी भी आए
बहुत आग्रह से आमंत्रित किया
पर हम नहीं जा पाए
एक अवसर खो दिया उनको जानने का
उनका प्रेम पाने का |
आशा
था दिन हाट का
कुछ सजे संवरे आदिवासी
करने आए थे बाजार
थीं साथ महिलाएं भी |
मैं दरवाजे की ओट से
देख रही थी हाट की रौनक
उन्हें जैसे ही पता चला
कुछ मिलनें आ गईं
पहले सोचा क्या बात करू
फिर लोक गीत सुनना चाहे
उनकी मधुरता लयबद्धता
आज तक भूल नहीं पाई|
थे गरीब पर मन के धनी
गिलट के जेवर ही काफी थे
रूप निखारने के लिए
केश विन्यास की विशिष्ट शैली
मन को आकृष्ट कर रही थी |
धीरे से वे पास आईं
घर आने का किया आग्रह
फिर बोलीं जरूर आना
स्वीकृति पा प्रसन्न हो चली गईं |
प्रातः काल हुए तैयार
कच्ची सड़क पर उडाती धूल
गराड पर चलती हिचकोले खाती
आगे बढ़ने लगी जीप|
जब मुखिया के घर पहुंचे
हतप्रभ हुए स्वच्छता देख
था झोंपडा कच्चा
पर चमक रहा था कांच सा |
द्वार सजा मांडनों से
भीतरी दीवार सजी
तीर कमान और गोफन से
मक्का की रोटी और साग
साथ थी छाछ और स्नेह का तडका
वह स्वाद आज तक नहीं भूली |
दिन ढला शाम आई
फिर रात में चांदनी नें पैर पसारे
सज धज कर सब आए मैदान में |
ढोल की थाप पर कदम से कदम मिला
गोल घेरे में मंथर गति से थिरके
नृत्य और गीतों का समा था ऐसा
पैर रुकने का नाम न लेते थे |
एक आदिवासी बाला ने मुझे भी
नृत्य में शामिल किया
वह अनुभव भी अनूठा था
रात कब बीत गयी पता ही नहीं चला |
सुबह हुई कुछ बालाओं नें
अपनी विशिष्ट शैली में
मेरा केश विन्यास किया
कच्चे कांच की मालाओं से सजा
काजल लगाया उपहार दिए
वह साज सज्जा आज भी भूली नहीं हूँ
वह प्यार वह मनुहार
आज भी बसी है यादों में |
अगली हाट पर
भिलाले आदिवासी भी आए
बहुत आग्रह से आमंत्रित किया
पर हम नहीं जा पाए
एक अवसर खो दिया उनको जानने का
उनका प्रेम पाने का |
आशा
28 मई, 2011
अन्तर मन
तेरे मन के अन्दर
है ऐसा आखिर क्या |
जो कोइ नहीं देखता
तुझे नहीं जानता |
हल्की सी छाया दिखती
तेरा वजूद जताती |
तूने भी न पहचाना
पर मैं उसे देख पाया |
देखा तो तूने भी उसे
पर अनदेखा किया |
मुँह और फेर लिया
यह क्या उचित था |
यदि उलझन नहीं
है क्या यह बेचारगी |
तू कितना सोचती है
अंतस में खोजना |
तभी तो जान पाएगी
कुछ कहना सुनाना |
फिर सोचना गुनना
सक्षम तभी होगी |
अपने को समझेगी
ख़ुद को पा जाएगी |
चमकेगी चहकेगी
रूठी ना रहेगी |
आशा
है ऐसा आखिर क्या |
जो कोइ नहीं देखता
तुझे नहीं जानता |
हल्की सी छाया दिखती
तेरा वजूद जताती |
तूने भी न पहचाना
पर मैं उसे देख पाया |
देखा तो तूने भी उसे
पर अनदेखा किया |
मुँह और फेर लिया
यह क्या उचित था |
यदि उलझन नहीं
है क्या यह बेचारगी |
तू कितना सोचती है
अंतस में खोजना |
तभी तो जान पाएगी
कुछ कहना सुनाना |
फिर सोचना गुनना
सक्षम तभी होगी |
अपने को समझेगी
ख़ुद को पा जाएगी |
चमकेगी चहकेगी
रूठी ना रहेगी |
आशा
26 मई, 2011
ज़रा सोच कर देखो
सारे सुख सारी सुविधाएं
पा कर भी कुछ नहीं किया
झूठी सच्ची बातों से
सारे घर को बहकाया |
हर सुविधा का दुरूपयोग किया
खुद को बहुत योग्य समझा
सभी की सलाहों को
समय की बरबादी समझा |
इधर उधर यारी दोस्ती में
बहुमूल्य समय बरबाद किया
क्या यह भी कभी सोचा
आखिर भविष्य क्या होगा |
यह भी जानना नहीं चाहा
बीता कल लौट कर नहीं आता
जब अपनी अंक सूची दिखाओगे
दस जगह ठुकराए जाओगे |
आगे बढ़ने के लिए
कोई रास्ता नहीं होगा
हर ओर अन्धकार होगा
तब तक बहुत देर हो जाएगी |
आज की मौज मस्ती
और यही भटकाव
जीवन भर सालता रहेगा
दुःख के सिवाय कुछ भी
प्राप्त न हो पाएगा |
अपने को नियंत्रित रखने के लिए
सफलता पाने के लिए
प्रलोभनों से बचने के लिए
कष्ट तो उठाने पड़ते हैं
पर जब मीठा फल मिलता है
आनंद कुछ और होता है |
आशा
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