सारी सत्ता सारा बैभव
यहीं छूट जाता है
बस यादे रह जाती हैं
व्यक्तित्व की छाप की |
आकर्षण उनका भी
उन लोगों तक ही
सिमट जाता है
यदि कोई काम
उनका किया हो
या कोई अहसान
उन पर किया हो |
कुछ लोग ऐसे भी हैं
होता कोई न प्रभाव जिन पर
जैसे ही काम निकल जाता है
रास्ता तक बदल जाता है |
कहीं कुछ भी होता रहे
अनजान बने रहते हैं
भूले से भी यदि
पहुंच गये
तटस्थ भाव
अपना लेते हैं
जैसे पह्चानते ही न हों |
क्यूँ कि संवेदनाएं
मर गई हैं
वे तो वर्तमान में जीते हैं
कल क्या होगा
नहीं सोचते |
यदि दुनिया के सितम
बढ़ गए
उन्हें कंधा कौन देगा
उनके दुःखों को
बांटने के लिए |
आशा