जब से सुना उसके बारे में
कई कल्पनाएँ जाग्रत हुईं
जैसे ही देखा उसे
लगी आकर्षक प्रतिमा सी |
था चंद्र सा लावण्य मुख पर
थी सजी सजाई गुडिया सी
आँखें थीं चंचल हिरनी सी
और चाल चंचला बिजली सी |
काले केश घनघोर घटा से
लहराते चहरे पर आते
प्रकाश पुंज सा गोरा रंग
लगी स्वर्ग की अप्सरा सी |
उसकी सुंदरता और निखार
और आकर्षण ब्यक्तित्व का
सम्मोहित करता
लगता प्रतीक सौंदर्य का |
जैसे ही निकली समीप से
उसके स्वर कानों में पड़े
उनकी कटुता से
सारा मोह भंग हो गया |
वह सोचने को बाध्य हुआ
कहीं न कहीं
कुछ तो कमी रह ही जाती है
कोइ पूर्ण नहीं होता |
आशा