उस दिन जब आँख खुली
प्रथम किरण सूरज की
जैसे ही चेहर पर पड़ी
दमकने लगा
वह और अधिक |
आँखें झुकी वह शरमाई
उसे देख कर सकुचाई
खोजी नजर जब उधर गयी
प्यार भरे नयनों से देखा
धीमें से वह मुस्काई |
जो संकेत नयनों से मिले
मन की भाषा पढ़ पाया
पहले प्यार की पहली सुबह
और उष्मा उसकी
अपने मन मैं सजा पाया |
जाने कितनी रिक्तता
है आज ह्रदय में
आँखें धुंधलाने लगी हैं
बीते दिन खोजने में |
प्रति वर्ष आता रक्षा बंधन
उसे खोजती रह जाती
फिर अधिक उदास हो जाती |
भूल नहीं पाती बीता कल
जाने कब बीत गया बचपन
वह उल्लास वह उत्साह
जाने कहाँ गया |
जब रंगबिरंगी राखी की
दुकानों पर पडती नजर
याद आती हैं वे गुमटियां
जो पहले सजा करती थीं |
घंटों बीत जाते थे
एक राखी खोजने में खरीदने में
जो भैया के मन भाए
पा कर खुशी से झूम जाए |
सुबह जल्दी उठ जाती
नए कपडे पहन तैयार होती
थाली सजाती दिया लगाती
घेवर और फैनी लाती |
टीका लगा आरती करती
राखी बाँध मुंह मीठा कराती
जैसे ही वह पैर छूता
मन मयूर दुआ देता |
जब एक रुपया
उपहार मिलता
बड़े जतन से उसे सहेजती
आज यह सब कहाँ |
ना भाई है न स्नेह उसका
बस रह गयी
यादें सिमिट कर
हृदय के इक कौने में |