सब जान कर अनजान बना रहता
यूं वैमनस्य लिए कब तक जियेगा
आज नहीं तो कल
सत्य उजागर होगा |
बिना बैर किये जो जी लिया
कुछ तो अच्छा किया
जिंदगी नासूर बनने न दी
चंद क्षण खुशियों के भी जिया |
कुछ नेक काम भी किये
जो जिंदगी के बाद भी रहे |
जिसने नज़र भर देखा उन्हें
उसे भरपूर सराहा याद किया |
जिसके ह्रदय में बैर पनपा
कुछ नहीं वह कर पाया
खुद जला उस आग में
दूसरों को भी जलाया उसी में |
आत्म मन्थन तक न किया
आत्म विश्लेषण भी न कर पाया
बस मिट गया यह सोच कर
क्या चाहा था क्या पाया ?
आशा