
आसमान छूने को
कई स्वप्न सजाए
साकार उन्हें करने को |
उड़ती मुक्त आकाश में
खोजती अपने अस्तित्व को
सपनों में खोई रहती थी
सच्चाई से दूर बहुत |
पर वह केवल कल्पना थी
निकली सारी खोखली बातें
ठोस धरातल छूते ही
लगा वे थीं सतही बातें |
और तभी समझ पाई
कल्पना हैं ख्याली पुलाव
होते नहीं सपने भी सच्चे
होती वास्तविकता कुछ और |
आशा