मन बंजारा भटक रहा
अनजाने में जाने कहाँ
बिना घर द्वार
जीवन से हो कर बेजार |
राहें जानता नहीं
है शहर से अनजान
पहचानता नहीं
अपने ही साए को
अनजान निगाहों को |
आगे बढ़ता बिना रुके
यह अलगाव
यह भटकाव
ले जाएगा कहाँ उसे |
चाहता नहीं कोइ रोके टोके
जाने का कारण पूंछे
खोना ना चाहे आजादी
वर्जनाओं का नहीं आदी |
है स्वतंत्र स्वच्छंद
चाहता नहीं कोइ बंधन
बस यूं ही विचरण कर
अपने अस्तित्व पर ही
करता प्रश्न |
आशा
अनजाने में जाने कहाँ
बिना घर द्वार
जीवन से हो कर बेजार |
राहें जानता नहीं
है शहर से अनजान
पहचानता नहीं
अपने ही साए को
अनजान निगाहों को |
आगे बढ़ता बिना रुके
यह अलगाव
यह भटकाव
ले जाएगा कहाँ उसे |
चाहता नहीं कोइ रोके टोके
जाने का कारण पूंछे
खोना ना चाहे आजादी
वर्जनाओं का नहीं आदी |
है स्वतंत्र स्वच्छंद
चाहता नहीं कोइ बंधन
बस यूं ही विचरण कर
अपने अस्तित्व पर ही
करता प्रश्न |
आशा